HoliSpecial-हिरण्यकश्यप की राजधानी रही है हरदोई, यही से शुरू हुई थी होली,यहीं जली थी होलिका। देखें वीडियो।

हरदोई से शुरू हुई थी होली,यहीं जली थी होलिका
-हिरण्यकश्यप की राजधानी रही है हरदोई
-आज भी मौजूद है वह कुंड जहां भगवान ने लिया था नरसिंह अवतार
-भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए यही अवतिरत हुए थे भगवान
-हिरण्यकश्यप की सगी बहन थी होलिका
-होलिका के जलने के बाद प्रह्लाद के भक्तों ने अबीर गुलाल उड़ाया रहा
-हरदोई में दो बार लिया था भगवान ने अवतार
-एक बार नरसिंह व दूसरी बार बावन अवतार हुआ था
-पूरे देश मे धूमधाम से मनाया जाता है होली का त्यौहार
-हिरण्यकश्यप था भगवान का शत्रु इसलिए कोई नही लेता था राम का नाम
-र के उच्चारण पर हिरण्यकश्यप ने लगाया था प्रतिबंध
-आज भी हरदोई के कई हिस्सों में बोलचाल की भाषा मे मुह से नही निकलता र शब्द
-कई हिस्सों में आज भी लोग हरदी को हददी,उरद को उद्द व बर्ध को बद्ध बोलते

पूरे देश मे रंगों का पर्व होली बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।इस होली के त्यौहार की शुरुआत हरदोई से ही हुई थी।हरदोई का यह प्रह्लाद कुंड जहां होलिका जली थी और भगवान ने नरसिंह अवतार लिया था आज भी मौजूद है। राक्षसराज हिरण्यकश्यप जो कि भगवान का शत्रु था यहां उसकी राजधानी थी।माना जाता है कि हिरण्यकश्यप हरि द्रोही था इसलिए इस नगरी को हरिद्रोही कहा जाता था जो आज हरदोई के नाम से जाना जाता है।वहीं यह भी कहा जाता है कि यहां हरि ने दो बार अवतार लिया था इसलिए हरिद्वई के नाम से जाना था जो अब हरदोई हो गया।यहां यह भी प्रचलित है कि हिरण्यकश्यप भगवान का शत्रु इसलिए उसकी राजधानी में कोई राम का नाम नही लेता था क्योंकि उसने “र” शब्द के उच्चारण पर प्रतिबंध लगाया था।ऐसे में आज भी हरदोई के कई हिस्सों में लोगों की बोलचाल की भाषा मे मुह से “र” शब्द नही निकलता है और कई हिस्सों में आज भी लोग हरदी को हददी,उरद को उद्द व बर्ध को बद्ध बोलते है।

बतादें की देशभर में 17 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा।इस होलिका दहन को लेकर मान्यता है कि आधुनिक होली के बीज इसी हरदोई शहर से पड़े थे। आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्‍यप की नगरी के नाम से जाना जाता था।यह वहीं हिरण्यकश्‍यप था जो खुद को भगवान से बड़ा बताने लगा था। हिरण्यकश्‍यप भगवान को बिलकुल नहीं मानता था और इसीलिए हिरण्यकश्‍यप की राजधानी का नाम हरी द्रोही था।प्राचीन काल से ही मान्यता है कि इसी हरदोई जिले में इसी कुंड के पास ही हिरण्यकश्‍यप की बहन होलिका जलकर राख हो गई थी और उसी के बाद यहां के लोगों ने खुश होकर होली का उत्सव मनाया था।हिरण्यकश्‍यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था और उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्‍यप पुत्र प्रह्लाद से नाराज रहते थे।उन्होंने अपने बेटे की इसी ईश्वरीय आस्था से नाराज होकर कई बार मरवाने की कोशिश की लेकिन सफल न हुए।हिरणकश्यप की बहन होलिका आग में जल नही सकती थी और हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को बुलाया और प्रह्लाद का वध करने के लिए कहा।

हिरणकश्यप ने बहन होलिका से बेटे प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा, जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाए, लेकिन भगवान की कृपा से हुआ उल्टा यानी होलिका जब प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठीं तो उनकी शक्ति कमजोर पड़ गई और होलिका खुद जलकर राख हो गई और भक्त प्रह्लाद बच गए।होलिका के जलने के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरणकश्यप का वध कर दिया।होलिका के जलने और हिरणकश्यप के वध के बाद लोगों ने यहां होलिका की राख को उड़ाकर उस्तव मनाया।. कहा जाता है मौजूदा वक्त में अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा की शुरुआत यहीं से शुरू हुई।

Report – Manoj

 

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