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गर्मियों में बढ़ता प्रदूषण का स्तर: महिलाएं, बच्चे और बुजुर्गों की सेहत को सबसे ज्यादा खतरा

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक:

गर्मियों की शुरुआती यानी प्रदूषण का स्तर भी बढ़ना। विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान के बढ़ने से वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ने लगता है। क्योंकि प्रदूषण बढ़ाने वाले तत्व (पार्टिकुलेट मैटर या पीएम, ग्राउंड-लेवल ओजोन, कार्बन के ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड) गर्म हवाओं के संपर्क में आने से और ज्यादा जहरीली गैस छोड़ने लगते हैं। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन ने एक अध्ययन में पाया कि गर्मी के दिनों में सांस के मरीजों की दिक्कत बढ़ जाती है। इसका सीधा कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ना है। इको-वॉच पर्यावरण के लिए काम कर ही एनजीओ के निदेशक अक्षय हेबलीकर ने बताया कि गर्मियों की तेज धूप के संपर्क में जब नाइट्रोजन आक्साइड, हाइड्रोकार्बन और अन्य रसायन आते है तो इससे कण और गैस निकलती है। जो वायुमंडल में घुल जाती है। इससे हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। जो सांस के रोगियों के लिए दिक्कत पैदा करता है। दोहपर के वक्त जब धूव सीधी पड़ती है, तब तो यह प्रदूषण सबसे ज्यादा हो जाता है। इस तरह का वातावरण बच्चे, महिलाएं (गर्भवती महिलाओं में) और बुजुर्गों की सेहत के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है। खपत में वृद्धि, प्रदूषण में वृद्धिअमेरिका में किये गए एक शोध के अनुसार प्रदूषण से होने वाली मौत में पांच से छह प्रतिशत की वृद्धि सिर्फ इस वजह से हो जाएगी क्योंकि गर्मियों में भवनो को ठंडा रखने के लिए बिजली की ज्यादा जरुरत पडे़गी।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (आईआईएससी ) के प्रोफेसर डॉ टीवी रामचंद्र के अनुसार गर्मियों में एयर कंडीशनर का जितना प्रयोग होगा, उतनी ही बिजली की खपत होगी, और इस बिजली को पैदा करने में थर्मल में उतना ही कोयला जलाना पडे़गा, अब जब कोयला जलेगा तो प्रदूषण तो होगा ही। कोयल से होने वाले प्रदूषण से दमा, फेफड़ों की समस्या, दिल की बीमारी और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रदूषण का असर नवजात पर पड़ रहा है। जो माता गर्भ के दौरान प्रदूषण भरे वातारण में रहती है, उनके नवजात में कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत आ जाती है। यहां तक की उन्हें मधुमेह तक हो हो जाता है।

रिपोर्टों के अनुसार दक्षिणी बेंगलुरु के हेमिगेपुरा इलाके के तुरहल्ली रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में हर साल आग लगती है। वह जंगल जो आक्सीजन देता है।

फाउंडेशन ऑफ़ इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ़ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल मेंबर डॉ. येलापा रेड्डी ने बताया कि जंगल की आग से धुआं, पीएम, ओजोन, कार्बन, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के ऑक्साइड जैसी गैस छोड़ता है। यह गैस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

विशेषज्ञों ने बताया कि गर्मियों में बैक्टीरिया और फंगस भी प्रदूषण को बढ़ावा देता है। बैंगलोर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, मानसून से पहले मार्च से मई के बीच हवा में बैक्टीरिया और फंगस का स्तर काफी बढ़ जाता है।

अध्ययन में कहा गया है कि इस प्रदूषण भरे वातावरण में सांस लेने से फेफड़ों, किडनी और पेशाब की नली में संक्रमण होने की संभावना तेजी से बढ़ जाती है।

बेंगलुरु में सेंटर फॉर साइंस स्पिरिचुअलिटी के एक बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शशिधर गंगैया ने बताया कि गर्मी में वायु प्रदूषण के कारण एलर्जी, सांस से जुड़ी बीमारियों, और संक्रमणों के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है।

(कपिल काजल बेंगलुरु स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं , वह 101क्त्रद्गश्चश्रह्मह्लद्गह्मह्य.ष्श्रद्व के अखिल भारतीय ग्रासरूट रिपोर्टर्स नेटवर्क के सदस्य हैं।

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