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व्यंग: कुर्सी प्रेम!

Literature special poetry on election

कुर्सी तो पे बार बार बलिजाऊं।

तू ही मात पिता हैं मेरी, ईश्वर सम पुष्प चढ़ाऊं।

कोई नही बहन नही कोई भ्राता, सबको मैं ठुकराऊं।

तेरे बिन ये जग हैं सूना, भूखा मैं मरिजाऊं।

प्रधान बनूं या प्रधानमंत्री, बस अपनी भूख मिटाऊं।

लूट और अपहरण हुए बौने, भू-माफिया बनाऊं।

जो कोई मोते बिरुद्द चले तो, बाको सीस कटाऊं।

कोई नीति अनीति न सोचूं, भ्रष्टाचार बढ़ाऊं।

जय सारस्वत

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