शर्मसार है देश ।
ऐसा जननेता ।।

भड़काकर भावना ।
बनना अब विजेता ?

विवादों से नाता ।
पूर्व राजनयिक ।।

जहर ये उगलना ।
बार-बार ठीक ?

केवल एक संप्रदाय ।
आपका निशाना ।।

तुष्टीकरण की हद ।
लिख रहे अफ़साना ।।

कृष्णेन्द्र राय

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