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संघ की सलाह है प्रायश्चित करे सरकार..

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जनता अगर सत्ता की विचारधारा का समर्थन करने लगे तो वहां जनता सत्ता की ही एक इकाई बन जाती है औऱ दरअसल बाद मे यह एहसास होता है कि जनता ही अल्पमत में आ चुकी होती है क्योंकि सत्ता की विचारधारा का समर्थन करने वाली जनता तो एक अप्रत्यक्ष कार्यकर्ता की भूमिका मे  होती है जो दिन रात घूम घूम कर उस विचारधारा का प्रचार करती है. तो फिर जनता के दुख दर्द की बात कौन करेगा. लोकतंत्र की खूबसूरती यह होती है कि यहा विपक्ष जनता की प्रतिनिधि के तौर पर होता है लेकिन जब विपक्ष भी समाप्त हो जाये और जनता का एक बडा भाग कार्यकर्ता बनकर सत्ता की जायज-नाजायज बातों का समर्थन करने लगे तो असल मे सरकारे निरंकुश हो जाती है.

आज जब हम आजादी का जश्न मना रहे हैं और 70 साल के अपने लोकतंत्र पर गली मोहल्लों से लेकर देश के तमाम राज्यों की विधानसभाओं और लालकिले की प्राचीर से झंडा फहराते हुये खुद को दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था बता कर गर्व कर रहे तो उसी वक्त उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार को उसकी ही जननी ने आईना दिखा दिया है.

प्रदेश की योगी सरकार ने गोरखपुर मे हुये बाल संहार पर जिस तरह के तर्क औऱ कुतर्क पेश किये उससे देश ही नही बल्कि खुद उसका मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ तक नाराज हो गया. हो सकता है कि संघ की यह नाराजगी उसकी अन्तरात्मा की आवाज से प्रेरित होकर निकली हो या फिर संघ यह समझ रहा है कि शायद आम जनता के बीच गुस्से की आग धीरे धीरे धधकना शुरु हो रही है.

वजह चाहे कुछ भी हो लेकिन संघ के अवध प्रांत के संघचालक प्रभुनारायण ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा कि हादसे से देश स्तब्ध है, लेकिन मुख्यमत्री, स्वास्थय़ मंत्री व चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने जो विचार इस घटना पर रखे वह दुखी करने वाले है.

सरकार इस हादसे की नैतिक जिम्मेदारी से नही बच सकती है इसके लिये पूरे मंत्रिमंडल औऱ भाजपा संगठन को प्रायश्चित करना चाहिये. जब राजनेता शौर्य औऱ विरोध दिवस मना सकते है तो फिर इस मुद्दे पर प्राय़श्चित क्यों नही करते.

संघ के अवध प्रांत के संघचालक का यह बयान और उसी वक्त राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का यूपी की योगी सरकार को नोटिस देकर पूछना कि वह चार हफ़्तों में बताये कि दोषियो के खिलाफ क्या किया. यह अपने आप मे साबित करता है कि सरकार चाहे माने या न माने उससे बडी चूक हो गई है.

पहले तो हादसे का होना औऱ फिर हादसे की जिम्मेदारी से बचने के लिये गैर जिम्मेदाराना बयानों ने न केवल पीड़ित परिवार के जले पर नमक छिड़का बल्कि जनता की उन आशाओं औऱ भावनाओं पर भी कुठाराघात किया जिसने बीजेपी को पहली बार यूपी मे इतना प्रचंड बहुमत दिया. सवाल इसलिये भी गंभीर है कि हादसे की जगह गोरखपुर है, सीएम योगी का अपना घर, उनका अपना क्षेत्र.

आजादी के जश्न के नाम पर राष्ट्रवाद को साबित करने के लिये मदरसों की वीडियोग्राफी का आदेश देने से बेहतर होता कि वीडियोग्राफी उस सिस्टम की कराई जाये तो सड चुका है और जिसे ठीक करने के लिये यूपी की जनता ने बीजेपी को 403 मे से 325 सीटे थमा दीं. सत्ता की महक से मदहोश मंत्रिमंडल शायद यह नही समझ रहा है कि इससे पहले इसी मदहोशी मे दो पूर्ण बहुमत की सरकारे पैदल हो गई और इस बार मौका उन्हे दिया गया है. आपको जानकर हैरत होगी कि उत्तर प्रदेश मे 5 साल तक के 48 फीसदी से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार है औऱ यह आकंडा बिहार से भी ज्यादा है. यानि बिहार इस मामले में हमसे बेहतर है.

बेहतर होगा कि इस ह्दयविदारक घटना से योगी सरकार सबक ले. इस घटना को एक हादसा समझ कर भूल न जाये औऱ न ही इस घटना के सियासी नुकसान की भरपाई की कोशिश मे उल्टे सीधे तर्क दिये जाये. सरकार की जिम्मेदारी इस बात की है प्रदेश में सड़ चुकी स्वास्थय सेवाओ को बेहतर बनाया जाये. अस्पतालों में जमीन पर तड़पते मरीजो के दर्द को समझा जाये. कोई जूनियर डाक्टर किसी मरीज औऱ उसके तीमारदारो को पीटने न पाये. कोई डाक्टर किसी गरीब को इलाज के नाम पर लूटने न पाये. कम से कम 70 साल बाद देश को जीने की आजादी तो मिलनी ही चाहिये.

Writer:

Manas Srivastava

Associate Editor

Bharat Samachar

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