मानव जााति ने पिछले बीस सालों में अपनेे जीने के तौर तरीको को पूरी तरह बदल दिया है। रोज नये नये आविष्‍कार किये जा रहे है। एक जमाना था जब मानव ससांधनों के बिना अपनी जिन्‍दगी जीने केे लिए मजबूूर था। एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए व्‍यक्तिगत संसाधन बेहद कम थे। मौहल्‍ले के दस घरों में बुमश्किल एक घर में टेलीफोन हुआ करता था। घर बहुत छोटे छोटे हुआ करते थेे और बड़ी बड़ी इमारते तो केवल कुछ बड़े शहरो में ही देखने को मिलती थी। ये वो वक्‍त था जब लोग चिट्टी या पत्र के सहारे अपने संदेशो का आदान प्रदान किया करते थेे।

मानवजाति की जिन्‍दगी मेंं सबसे बड़ी़ क्रान्ति 90 के दशक में आई। इस तौर में मानव जाति ने टेक्‍नालाजी के सहारे अपनी जिन्‍दगी को पूरी तरह बदल दिया। टेलीफोन की जगह मोबाइल लोगो के हाथ में नजर आने लगे। पहले जहां खाली मैदान हुआ करते थे वहां बड़े़े बड़े़े मल्‍टीप्‍लेक्‍स माॅॅल बनाये जाने लगे। जंंगलो को काटकर वहां इन्‍सानी बस्‍ती बसाई जाने लगी। खेती करने की जमीनों को किसानों से छीनकर इन जमीनों पर गगनचुम्‍बी इमारते बनाने का काम श्‍ुारू कर दिया गया। विकास के नाम पर नदी तालाबों से लेकर पहाड़ो तक सबको काटकर पब्लिक ट्रान्सपोर्ट के लिए सड़को का निमार्ण होना शुरू हो गया। इन सब योजनाओ ने मानव को इतना ताकतवर कर दिया कि आज ये दुनिया कुछ ताकतवर लोगो के हाथ की कठपुतली बन गयी है। ये ताकतवर लोग जब चाहे इस दुनिया को खत्‍म कर सकते है।

विकास की क्रान्ति ने आज इस दुनिया को बेहद विकट स्थिति में पंंहुुचा दिया है। पिछले बीस सालों में धरती केे तापमान में लगभग दो से ढाई डिग्री तक की बढ़ोतरी हुई है जो पिछले हजारों साल में भी इतना नहीं बढ़ा था। यही वजह है कि आज सुनामी और भूकंप जैसी समस्याएं हमारे सामने हैं, ग्लोबल वार्मिंग और जैव विविधता में आ रही कमी हम देख ही सकते हैं। यहीं वजह है कि पानी की उपलब्धता की समस्या हमारे सामने है जो सीधे तौर पर हमसे जुड़ी है। उसके बाद वनों की कटाई और अवैध खनन जैसे घटनाएं हमारे सामने आम है और हम सुधार करने की वजह पृथ्वी का लगातार दोहन करे रहे हैं, हालांकि संसाधनों को उपयोग करना जरूरी है लेकिन उनका व्यर्थ दोहन हमारे भविष्य के लिए सही नहीं है।

 

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