सपा और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर सहमति बन चुकी है. कांग्रेस 105 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.  अखिलेश यादव ने कांग्रेस के 105 सीटों को लेकर सहमति जता दी है. राजनीति विशेषज्ञों को का मानना है कि ये गठबंधन काफी हद तक दोनों दलों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. सबसे अहम बात है कि इन दोनों दलों को मुस्लिमों का सहयोग मिलता रहा है जो कि अन्य दलों जैसे बीजेपी और बसपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.

गठबंधन को होने वाले फायदे:

  • बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से ही मुस्लिम सपा को पसंद करते आ रहे हैं.
  • चुनाव में सपा को मुस्लिमों का सहयोग मिलता रहा है.
  • एक समय कांग्रेस की अच्छी पैठ थी इस वोट बैंक में लेकिन सपा ने बखूबी इस वोट बैंक को अपने पाले में किया.
  • यूपी में 18 प्रतिशत मुस्लिम हैं और इन दोनों दलों के गठबंधन के बाद सबसे बड़ा फायदा मुस्लिम वोटों के रूप में मिलता दिख रहा है.
  • बीजेपी को मुस्लिम समुदाय के बहुत कम वोट मिलता रहा है.
  • बीजेपी पर सांप्रदायिक दल होने के आरोप इनकी मुश्किलें बढ़ा सकते हैं.
  • ब्राह्मण मतदाताओं की बात करें तो पूर्वांचल की सीटों पर इनका वोट निर्णायक साबित हो सकता है.
  • गठबंधन की स्थिति में कुछ प्रतिशत ब्राह्मण वोट भी इनके खाते में आ सकते हैं.
  • 2012 चुनाव में कांग्रेस को 32 सीटों पर दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था जबकि 28 पर इन्हें जीत मिली थी.
  • 18 सीटों पर 5 से 15 हजार के बीच जीत-हार का अंतर था जो कि अच्छे उम्मीदवार होने की स्थिति में तय सीटों में बदल सकता है.
  • वोट ट्रांसफर की कांग्रेस की रणनीति कितनी कारगर होती है ये देखना दिलचस्प होगा.
  • बिहार की तर्ज पर कांग्रेस इस उम्मीद में होगी कि सपा का बोत कांग्रेस प्रत्याशियों के खाते में ट्रांसफर होगा.

गठबंधन को होने वाला नुकसान: 

  • कांग्रेस के 105 सीटों पर उम्मीदवार उतारने से कांग्रेस के 298 सीटों पर प्रत्याशी पार्टी से बगावत कर सकते हैं.
  • सीधे तौर पर पार्टी को नुकसान होने की आशंका पार्टी को भी है.
  • 2012 में कांग्रेस की गढ़ कही जाने वाली अमेठी और रायबरेली की सीटें भी सपा के खाते में चली गई थीं.
  • ऐसे में कांग्रेस के सपा को ज्यादा की उम्मीद करना अतिश्योक्ति होगा.
  • वहीँ कांग्रेस के लिए मुश्किल है कि इनके कुछ शीर्ष नेताओं को छोड़कर बाकियों का जनाधार भी मजबूत नहीं रहा है.
  • ऐसे में कांग्रेस सपा के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
  • अब कांग्रेस के वो प्रत्याशी जो करीबी मतान्तर से चुनाव हारे थे, वो निराश हो सकते हैं.
  • टिकट ना मिलने की स्थिति में वो पार्टी को क्षति पहुंचा सकते हैं.
  • राष्ट्रीय पार्टी होकर कांग्रेस का कम सीटों पर चुनाव में उतरना पार्टी समर्थकों के लिए धक्का साबित हो सकता है.
  • इसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ सकता है.
  • वहीँ शीला दीक्षित को सीएम का चेहरा बनाने का वादा कर चुकी कांग्रेस ब्राह्मण मतदाताओं की नाराजगी का शिकार हो सकती है.
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