उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के परिणाम शनिवार 11 मार्च को घोषित कर दिए गए हैं, जिसके तहत भारतीय जनता पार्टी ने 14 साल बाद ऐतिहासिक तौर पर सूबे की सत्ता में प्रवेश किया। जिसके बाद सूबे के एक से बड़े एक राजनीतिक सूरमाओं के समीकरण फेल हो गए। भाजपा ने कुल 403 सीटों में से 325 सीटों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर:

  • यूपी चुनाव के परिणामों को देखने के बाद बेशक ये कहा जा सकता है कि, पीएम मोदी की लहर का असर अभी कम नहीं पड़ा है।
  • ये मोदी लहर ही है, जिसने भाजपा को 14 साल सत्ता का रास्ता दिखाया है।
  • 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उत्तर प्रदेश ने सिर्फ पीएम मोदी के नाम पर 80 में से 73 सांसद दिए थे।
  • जिसके बाद कुछ ऐसा ही कारनामा 2017 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला।
  • जहाँ भाजपा को कुल 312 सीट, उसके सहयोगी दल अपना दल को 9 और भासपा को 4 सीटें मिलीं।

भाजपा को मिला भासपा की सोशल इंजीनियरिंग का फायदा:

  • भासपा ने 2017 के चुनाव में भाजपा को बहुत बड़ा फायदा पहुँचाया है।
  • भाजपा ने 2017 के चुनाव में भासपा को अपना सहयोग दिया।
  • भासपा 2004 से अलग-अलग चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रही थी।
  • जिसके बाद पार्टी ने भाजपा के सहयोग दल के रूप में काम करना शुरू कर दिया है।
  • भासपा पार्टी मूलतः राजभर समुदाय की पार्टी है।
  • गौरतलब है कि, अखिलेश यादव ने जिन 17 OBC जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की बात की थी।
  • राजभर जाति उन्हीं में से एक है।
  • पार्टी के सर्वे-सर्वा ओमप्रकाश राजभर हैं, पार्टी का कार्यालय बनारस के फतेहपुर गाँव में स्थित है।
  • यह पार्टी समय-समय पर पूर्वांचल के गंभीर मुद्दों को उठाते रहते हैं।

भाजपा-भासपा के साथ ने बिगाड़े समीकरण:

  • सूबे के पूर्वांचल में राजभरों की जातिगत गणना में मत का प्रतिशत करीब 17.5 है।
  • भासपा 2004 से ही कई चुनावों में अपनी किस्मत आजमा चुकी है।
  • लेकिन 2017 में पीएम मोदी की लहर के सहारे भासपा ने भी किनारे का सुख पा लिया।
  • पूर्वांचल में तकरीबन-तकरीबन 18 फ़ीसदी राजभर मतों के साथ भासपा कैंडिडेट्स ने भाजपा के साथ अन्य दलों के समीकरण बिगाड़ दिए।
  • अपने कास्ट फैक्टर के चलते भासपा प्रत्याशी 5 हजार से लेकर 50 हजार वोट जीत जाते थे।
  • इस बार मोदी लहर और भासपा की सोशल इंजीनियरिंग के सहारे पूर्वांचल की 128 सीटों पर एक अप्रत्याशित प्रभाव डाला।
  • इन छोटे-छोटे गठबन्धनों के चलते भाजपा ने कई गैर-यादव ओबीसी जातियों को आकर्षित कर लिया।
  • जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे हैं।
  • साथ ही ऐसे छोटे गठबन्धनों ने मायावती की राजनीति को बहुत नुक्सान पहुँचाया है।
  • बसपा सुप्रीमो हमेशा से ही दलितों और पिछड़ों की राजनीति करती रही हैं।
  • दलितों के साथ अति पिछड़ों को जोड़कर सत्ता हासिल करने वाला मायावती का समीकरण अब पूरी तरह बेकार साबित हो चुका है।
  • फिलहाल तो बसपा अपना अस्तित्व बचाते हुए नजर आ रही है।
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