27 साल यूपी बेहाल के नारे के साथ कांग्रेस यूपी चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही है. यूपी की सत्ता से कांग्रेस को दूर रखने का काम करने वाली समाजवादी पार्टी से गठबंधन को लेकर बातचीत लगातार चल रही है. कांग्रेस गठबंधन में 120 सीटों की मांग कर रही है जिसपर समाजवादी पार्टी तैयार नहीं है. कारण स्पष्ट है. 27 साल में कांग्रेस ने कभी भी 50 सीटों का आंकड़ा नहीं छुआ है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस 28 सीटें मिली थीं. इसको आधार बना सपा 80-85 सीटों पर कांग्रेस को चुनाव लड़ने का ऑफर दे चुकी है. हालाँकि गठबंधन को लेकर संशय बना हुआ है और अभी भी इसपर निर्णय आना बाकी है.

1889 के बाद पार्टी ने नहीं छुआ है 50 का आंकड़ा:

1989 के चुनाव में कांग्रेस ने 94 सीटें हासिल की थी लेकिन इसके बाद कभी भी कांग्रेस के खाते में 50 सीटें भी नहीं आयीं. 1991 के चुनाव में 46 सीटें , 1993 विधानसभा चुनाव में 28 सीटें, 1996 चुनाव में 33, 2002 चुनाव में 25 सीटें जबकि 2007 में 22 और 2012 के चुनाव में 28 सीटें ही कांग्रेस के खाते में आई थीं.

  • हाल के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो कांग्रेस गठबंधन की कवायद में जुटी हुई है.
  • एक समय कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रही थी.
  • लेकिन अब गठबंधन होने की सूरत में उतनी सीटों पर कैंडिडेट उतारने की आज़ादी नहीं होगी.
  • जितनी पहले कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा थी.
  • पार्टी के सूत्रों की मानें तो कांग्रेस अगर अकेले चुनाव में उतरती है तो 150 से 200 सीटों पर उनके उम्मीदवार मैदान में उतरेंगे.

पिछले चुनाव के कांग्रेस उम्मीदवारों के प्रदर्शन पर नजर डालने पर जो परिणाम सामने आते हैं, वो कांग्रेस नेताओं के उत्साह को फीका कर सकते हैं.

240 उम्मीदवारों की जमानत हुई थी जब्त:

  • 2012 के चुनाव में 32 सीटों पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी.
  • इनमें से 3 सीटों पर जीत-हार का अंतर 500 वोटों का था.
  • वहीँ 18 अन्य सीटों पर जीत-हार का अंतर 5 हजार से 15 हजार वोटों का था.
  • जबकि कांग्रेस को 240 सीटों पर शर्मसार होना पड़ा था जब इनके प्रत्याशी जमानत नहीं बचा पाए थे.
  • ऐसे में कांग्रेस का 50 से 70 सीटें जीतना पहला लक्ष्य होगा.

ऐसे में कांग्रेस अब मुस्लिम-दलित वोटरों पर फोकस करने की तैयारी में है. बीजेपी यहाँ कमजोर कड़ी साबित हुई और कांग्रेस इसका फायदा उठाने की कोशिश करती रही है. ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने में भी पार्टी कोई कमी नहीं रखना चाहती है. समाजवादी पार्टी और बसपा में भी मुस्लिम वोट बैंक को लेकर होड़ मची है जबकि कांग्रेस तीसरे दल के रूप में इसका फायदा उठाना चाहती है. वहीँ कांग्रेस की नजर बीजेपी की ध्रुवीकरण की रणनीति पर भी होगी और ऐसे में पार्टी को विशेष समुदाय का साथ मिल सकता है, ऐसा पार्टी का थिंक टैंक मान रहा है.

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