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यूपी में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी है. 11 फ़रवरी से सूबे में चुनाव शुरू हो रहे हैं. 7 चरणों में होने वाले चुनाव की शुरुआत पश्चिमी यूपी के जिलों से होगी. सभी दल और उनके प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. सभी को उम्मीद है कि उनको चुनाव में जीत हासिल होगी. हो भी क्यों ना, आखिर जमीनी हकीकत चाहे कुछ भी लेकिन रिजल्ट आने से पहले तक सभी जीत रहे होते हैं. ये लोकतंत्र की खूबसूरती है और यही हमारे देश के सबसे बड़े महोत्सव की खास पहचान है.

पश्चिमी यूपी के मेरठ जिले की 7 विधानसभा सीटों पर पहले चरण में चुनाव होने जा रहा है. इन सात सीटों पर क्या कुछ चल रहा है, इसकी जमीनी हकीकत से रूबरू कराने के लिए संवाददाता सादिक खान के नेतृत्व में uttarpradesh.org  की टीम ने 7 विधानसभा क्षेत्रों की जनता के बीच जाकर उनकी नब्ज टटोलने की कोशिश की और जानने की कोशिश की, कौन से उम्मीदवार या दल का दावा ज्यादा मजबूत है और किसकी पकवान फीकी रह सकती है.

मेरठ जिले की जमीनी हकीकत देखें अगले पेज पर:

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इस जिले की सात सीटों पर विधानसभा चुनाव 2012 के हार-जीत के आंकड़े को भी ध्यान में रखा गया है. कई नए नाम इस साल चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं वहीँ कई प्रत्याशियों ने अपना पाला भी बदला है.

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मेरठ शहर:

मेरठ शहर की सीट पर 2012 विधानसभा चुनाव में लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सपा के प्रत्याशी रफीक अंसारी को 6 हजार से अधिक वोटों से हराया था लेकिन 2017 आते-आते शहर में लक्ष्मीकान्त बाजपेयी की चमक फीकी पड़ती दिखाई दे रही है. लक्ष्मीकांत बाजपाई के सामने एकमात्र मुस्लिम चेहरा मैदान में होने से बीजेपी खेमे में चिंता साफ देखी जा सकती है. हमारे संवाददाता से शहर के कई मतदाताओं ने बात की और बताया कि एक मात्र मुस्लिम चेहरा होने के कारण सपा प्रत्याशी रफ़ीक़ अंसारी खुद को प्रबल दावेदार बता रहे हैं.

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वहीँ महिलाओं ने भी बीजेपी विधायक लक्ष्मीकांत के काम पर सवाल उठाये है और कहा कि विकास के नाम पर कुछ ख़ास काम क्षेत्र में नहीं हुआ है. कई मतदाताओं का कहना है कि मोदी का प्रभाव ख़त्म होता दिख रहा है और बीजेपी अच्छे दिन लाने में सफल नहीं हो पायी है. लेकिन साथ ही लोगों ने ये भी कहा कि लड़ाई यहाँ सपा और भाजपा के प्रत्याशी में ही होगी. साथ ही हार और जीत का अंतर भी कम रहने की संभावना है.

*( ग्राउंड रियलिटी विभिन्न क्षेत्रों के करीब 2000 लोगों से बातचीत पर आधारित)

मेरठ दक्षिण विधानसभा:

मेरठ दक्षिण विधानसभा सीट से जहाँ भाजपा ने अपना टिकट बदला है और इसके कारण भाजपा को इस सीट पर नुकसान झेलना पड़ सकता है. बसपा के टिकट पर याकूब कुरैशी मैदान में हैं और प्रतिद्वंदी बीजेपी प्रत्याशी सोमेंद्र तोमर उनके सामने चुनौती होंगे. सोमेन्द्र तोमर युवा चेहरा हैं.सपा और कांग्रेस ने यहां पर आजाद सैफी को उतारा है.

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बाहरी प्रत्याशी होने का खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ सकता है क्योंकि स्थानीय जनता द्वारा इनका विरोध भी किया जा रहा है. पिछड़े वर्ग में भी बसपा अपना प्रभाव ज़माने की कोशिश में है. स्थानीय समीकरण देखते हुए मुकाबला बसपा और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है.

*( ग्राउंड रियलिटी विभिन्न क्षेत्रों के करीब 2000 लोगों से बातचीत पर आधारित)

किठौर:

किठौर विधायक और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर के सामने सत्ता विरोध से पार पाना बड़ी चुनौती है. इस बार रालोद ने शाहिद के कट्टर विरोधी मतलूब गौड़ को मैदान में उतारा है. पीएम मोदी के नाम पर भाजपा प्रत्याशी सत्यवीर त्यागी भी सपा को पूरी टक्कर देने की तैयारी में हैं. जनता की मानें तो इस सीट पर सपा व बीजेपी में बराबर की टक्कर होती दिख रही है. जबकि रालोद के प्रत्याशी भी मजबूती से मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में पूरी शिद्दत से जुटे हैं.

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किठौर केकई स्थानीय नागरिकों ने बताया कि सपा विधायक ने 15 सालो पर किठौर की जनता पर सैकड़ों मुकदमें बिना वजह और सत्ता की हनक में लगाये है. जनता में इसको लेकर थोड़ी नाराजगी है. स्थानीय विरोध के कारण इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होता दिखाई दे रहा है.

*( ग्राउंड रियलिटी विभिन्न क्षेत्रों के करीब 2000 लोगों से बातचीत पर आधारित)

सिवालखास:

सिवालखास विधानसभा रालोद का गढ़ है और यहां से यशवीर सिंह अपनी पार्टी के लिए जीत दर्ज करना चाहेंगे. बसपा ने नदीम चौहान को मैदान में उतारा है. सपा प्रत्याशी गुलाम मोहम्मद यहाँ तीसरे प्रबल दावेदार के रूप में देखे जा रहे है. यहाँ मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में प्रत्याशी जुटे हुए हैं.

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*( ग्राउंड रियलिटी विभिन्न क्षेत्रों के करीब 1500 लोगों से बातचीत पर आधारित)

मेरठ कैंट:

मेरठ कैंट विधानसभा सीट की तो यहा पंजाबी मतदाताओं की संख्या काफी है लेकिन इस बार कैंट व बीजेपी प्रत्याशी का यहाँ विरोध हो रहा है. बीजेपी के टिकट वितरण को लेकर भी इस इलाके में नाराजगी देखने को मिली है.

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बसपा ने सत्येंद्र सोलंकी बीजेपी प्रत्याशी को कड़ी चुनौती दे रहे हैं. भाजपा में आंतरिक खींचतान, कांग्रेस-सपा गठबंधन और जाट वोटों में बसपा की सेंधमारी से सत्यप्रकाश की डगर आसान नहीं है। मुकाबला इस सीट पर त्रिकोणीय होता दिखाई दे रहा है.

*( ग्राउंड रियलिटी विभिन्न क्षेत्रों के करीब 2200 लोगों से बातचीत पर आधारित)

हस्तिनापुर:

हस्तिनापुर विधानसभा सीट की जहाँ पिछले चुनावों में हस्तिनापुर से सपा विधायक प्रभु दयाल ने योगेश वर्मा को 6 हजार मतों से हराया था लेकिन अबकी बाजी पलटती हुई दिखाई दे रही है और सत्ता विरोध भी देखने को मिल रहा है. बसपा प्रत्याशी योगेश वर्मा और भाजपा के दिनेश खटीक अपनी-अपनी दावेदारी इस सीट से मजबूत मान रहे है. ऐसे में सपा विधायक व प्रत्याशी प्रभुदयाल को अपनी साख बचाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है.

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*( ग्राउंड रियलिटी विभिन्न क्षेत्रों के करीब 2000 लोगों से बातचीत पर आधारित)

सरधना

सरधना विधानसभा सीट की जहा सरधना विधायक संगीत सोम के गढ़ में सियासत बदल चुकी है. इस सीट से बसपा प्रत्याशी इमरान कुरैशी हैं लेकिन सपा के प्रत्याशी अतुल प्रधान को इस बार मुस्लिम और जाट वोटरों का साथ मिलने के संकेत इस सीट पर सपा को फायदे में रख सकता है. वहीँ बीजेपी विधायक व प्रत्याशी संगीत सोम पहले ही विवादों में आ गए हैं. स्थानीय नागरिकों के अनुसार, इस सीट पर मुकाबला सपा और भाजपा के बीच माना जा रहा है.

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सरधना के स्थानीय नागरिकों ने हमारे संवाददाता से बात की और चुनावी समीकरण पर बात करते हुए कहा कि नोटबंदी के कारण बीजेपी प्रत्याशी को नुकसान उठाना पड़ सकता है जबकि सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप भी बीजेपी प्रत्याशी पर कुछ स्थानीय मतदाताओं ने लगाया. कुल मिलाकर इस सीट पर हार-जीत का फैसला तो 11 मार्च को होगा लेकिन मुकाबला सपा और भाजपा में कांटे होती दिख रही है, इसके पूरे आसार हैं.

*( ग्राउंड रियलिटी विभिन्न क्षेत्रों के करीब 2000 लोगों से बातचीत पर आधारित)

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