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UP Election 2017

सहारनपुर: बेहट सीट पर मुकाबला बेहद रोमांचक!

behat seat

सहारनपुर जिले की सात विधानसभा सीटों के लिए 15 फरवरी को होने वाले मतदान से पहले सियासत बेहद रोचक मोड़ पर है। सारे दल भीतरघात से सहमे हैं। जातीय समीकरणों के पेंच हर सीट पर हैं। जिले के क्षत्रप अपने ही चक्रव्यूह में फंसते नज़र आ रहे हैं।

जिले की सातों विधानसभा सीटों के सिलसिलेवार विश्लेषण में  uttarpradesh.org ने विधानसभा सीट संख्या 1 बेहट के समीकरण जानने की कोशिश की. घाड़ और पहाड़ में सिमटी बेहट सीट पर 2012 में बसपा ने जीत हासिल की थी। महावीर राणा यहां से 500 से अधिक वोटों से जीते थे और उन्होंने कांग्रेस के नरेश सैनी को हराया था। सपा के उमर अली खान तीसरे नंबर पर रहे थे।

कमजोर कड़ी ही बनेगी राह का रोड़ा:

महावीर राणा अब पाला बदलकर भाजपा के टिकट पर दावेदार हैं। उनके सामने टिकट से असंतुष्ट पार्टी के पुराने लोगों की चुनौती है। यहां से भाजपा के टिकट के दावेदार कुंवर आदित्य प्रताप राणा निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं। लेकिन पार्टी के आधार वोट के बूते महावीर राणा मजबूती से मुकाबला करेंगे। कांग्रेस से समझौता न होने तक सपा ने यहां से उमर अली खान को उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन अंतिम समय पर हुए गठबंधन में यह सीट कांग्रेस को दे दी गई।

सिंबल हासिल करके भी उमर अली खान ने हाईकमान के फैसले को स्वीकार कर लिया, लेकिन उनके समर्थकों के चेहरे की मायूसी किसी से छिपी नहीं है। बड़ा सवाल ये है कि उनके समर्थक कहां जाएंगे? क्योंकि कांग्रेस के क्षत्रप इमरान मसूद ने इस सीट से नरेश सैनी पर ही दोबारा भरोसा जताया है। इमरान मसूद और उमर अली खान के बीच छत्तीस का आंकड़ा है, जो गठबंधन धर्म से कहीं बढ़कर है।

जातीय समीकरण से ज्यादा द्वेष है यहाँ टकराव की वजह:

2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सबसे पहला टिकट उमर अली खान का घोषित किया था। तब इमरान मसूद और उनके चाचा काजी रशीद मसूद ने इस टिकट का खुलकर विरोध किया था। चाचा-भतीजे उस वक्त एक साथ थे। इसी विरोध ने इन्हें सपा छोड़कर कांग्रेस में जाने को मजबूर किया था। आज चाचा-भतीजे दो अलग ताकत हैं और एक दूसरे के धुर विरोधी भी।

2012 का प्रदर्शन ऐसे में चुनौती से कम नहीं है। बहुजन समाज पार्टी ने यहां से पूर्व एमएलसी हाजी मोहम्मद इकबाल को मैदान में उतारा है, जो इस सीट पर अकेले मुस्लिम प्रत्याशी हैं। इस सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाताओं की तादाद निर्णायक है।

ऐसे में उमर अली खान के समर्थकों की क्या दिशा होगी? भाजपा के असंतुष्ट अपना कितना भला कर पाएंगे और भाजपा का कितना नुकसान? 2014 में जो दलित भाजपा के पाले में थे, क्या वे इस बार पूरे बसपा के पाले में होंगे? ये वो सवाल हैं जो प्रत्याशियों की नींद हराम कर रहे हैं. इन सवालों के जवाब ही इस सीट पर जीत का समीकरण तय करेंगे।

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