उत्तर प्रदेश की विधानसभा मे आज की तारीख इतिहास बन गई है..यह इतिहास किस तरह से लिखा जायेगा इसका फैसला तो प्रदेश की जनता करेगी लेकिन सियासत की आड़ से जिस तरह से संवैधानिक मूल्य का मजाक उडाया जा रहा है..उसके लिये आज का दिन जरुर याद रखा जायेगा..

उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक विधानसभा मे आज का दिन किस तरह से याद किया जायेगा..सदन की गरिमा का मजाक उड़ाए जाने पर या फिर सिमट चुके विपक्ष की एक ऐसी सियासी चाल के तौर पर जिसे आज पूरे देश ने देखा..विधानसभा परिसर के भीतर आज दो सदन चले एक मुख्य मंडप मे जहा सत्ताधारी बीजेपी औऱ उसके सहयोगी दलो के मंत्री औऱ विधायक थे और दूसरा सदन सेंट्रल हाल मे चला जहा संपूर्ण विपक्ष जमा था..

बेशक सेंट्रल हाल मे विपक्ष द्वारा संचालित सदन की कार्रवाही अभिलेखों मे दर्ज नहीं की जायेगी लेकिन फिर भी यह घटना इतिहास में जरुर दर्ज होगी..और सवाल उठेंगे कि क्या आज सीमित हो चुका विपक्ष खुद को इतना कमजोर समझ रहा है कि वह विधानसभा मे सत्ता पक्ष का सामना करने की हैसियत मे नहीं है..

सदन का उड़ा मजाक:

चलिये पहले बात विपक्ष के सदन की कर लेते हैं.. आज विधानभवन में विपक्षी विधायकों ने अलग सदन चलाकर सेंट्रल हाल में भाजपा के विधायक मथुरा प्रसाद पाल को श्रद्धांजलि दी। इसमें समाजवादी पार्टी के साथ ही बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस व राष्ट्रीय लोकदल के विधायक थे।आज विधानसभा में दिवंगत विधायक मथुरापाल को विपक्ष की गैर मौजूदगी में श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद सदन 26 जुलाई तक स्थगित कर दिया गया..लेकिन इससे पहले विपक्ष ने सत्ता पक्ष पर जमकर हमला किया..आजम खान कह रहे है कि सदन मे विपक्ष के नेताओं के माईक बंद किये जा रहे है, सरकार विपक्ष की सुनना नही चाहती है..जब कहते हो तो सुनने की हिम्मत रखो..लेकिन आजम खान यह क्यों भूल गये सूबे मे पांच साल उनकी सरकार मे भी तो विपक्ष का यही रोना था कि सरकार बोलने नही देती ..क्या भूल गये आजम खान कि सपा सरकार के दौरान लोकायुक्त की जांच मे बीएसपी के किन-किन नेताओं को घेरा गया था…लेकिन अब जो हो रहा है वह क्या है..

सरकार को घेरने की कोशिशों के बीच आज विधान मंडल सत्र के दौरान सदन में जो दृश्य देखने को मिला वो किसी नाटक का भाग लग रहा था लेकिन संवैधानिक मूल्यो के साथ नाटक करना कितना जायज है यह उस तथाकथित सदन मे शामिल वह नेता बतायेगे जो जीवन का लंबा समय इसी सदन मे गुजार चुके है..

विपक्ष ने जब अपने सदन की रचना की तो उसमे लाल जी वर्मा को अध्यक्ष , कांग्रेस विधायक दल के नेता अजय सिंह लल्लू को नेता सदन और राम गोविंद चौधरी नेता प्रतिपक्ष बनाये गये..रामगोविंद कह रहे है कि योगी सरकार विपक्ष को धमका रही है..इसलिये सदन का बहिष्कार किया लेकिन सवाल यह है कि क्या विपक्ष इतना कमजोर है कि सरकार की एक धमकी से डर गया..कम से कम पुराने समाजवादी औऱ जेपी आंदोलन की पैदाईश रहे राम गोविंद चौधरी से यह उम्मीद नही थी..

जाहिर है कि विपक्ष के इस रवैये से सत्ता पक्ष यानि बीजेपी बेहद आहत है..बीजेपी का कहना है कि जनता यह सारी नौटकी देख रही है ..औऱ अब वही फैसला करेगी..

क्या विपक्ष इतना कमजोर हो गया है कि वह सत्ता पक्ष का सामना नहीं कर पा रहा है..

क्या विपक्ष मे अब कोई ऐसा नेता नहीं बचा जिसे सुनने के लिये सरकार को खामोश होना पडे..

क्या सीमित हो गई संख्या से विपक्ष परेशान है..

क्या घोटालो की जांच से विपक्ष भयभीत है..

अगर विपक्ष डरा हुआ नहीं है तो सरकार का सामना क्यों नहीं करता है,..

यह वह सवाल है जिनका जवाब विपक्ष को देना ही होगा..विपक्ष को यह समझना होगा कि यह कोई बाल संसद नही है जो कही भी बैठा दी जाये औऱ न ही यह धर्म संसद है..यह एक संवैधानिक व्यवस्था का जिसकी मर्यादा को बचाये रखने की जितनी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की है उतनी ही विपक्ष की भी.

Writer:

Manas Srivastava

Associate Editor

Bharat Samachar

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