उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 का पहला चरण 11 फरवरी से शुरू हो रहा है, जिसके तहत सभी राजनैतिक दल लगभग-लगभग अपनी रणनीतियों को अमली जामा पहना चुके हैं। उत्तर प्रदेश की सत्ता के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच सबसे ज्यादा संघर्ष होता है। 2012 में सपा ने बसपा को हराकर सत्ता पाई थी। वहीँ उससे पहले 2007 में बसपा ने सपा को उतारकर अपनी सरकार बनायी थी। विशेषज्ञ 2017 का चुनाव भी मुख्यतः सपा और बसपा के बीच ही देख रहे हैं।

बहुजन समाज पार्टी:

  • बसपा सुप्रीमो मायावती आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के प्रति काफी आश्वस्त नजर आ रही हैं।
  • जिसे बसपा सुप्रीमो मायावती की प्रेस कांफ्रेंस, जनसभा आदि में विरोधियों पर उनके मुखर हमलों के आधार पर कहा जा सकता है।
  • यूपी विधानसभा चुनाव 2017 की तैयारियों पर नजर डालें तो बसपा अन्य दलों से काफी आगे खड़ी नजर आती है।
  • बसपा सुप्रीमो मायावती ने आचार संहिता की घोषणा के अगले दिन ही बसपा के प्रत्याशियों की सूची कर दी थी।
  • वहीँ पार्टी प्रचार अभियान के लिए भी काफी सजग है।
  • बसपा का प्रचार भले ही मुखर रूप से नजर न आता हो, लेकिन पार्टी पिछले एक साल से 2017 चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार कर रही थी।
  • बूथ लेवल पर बसपा की पकड़ अतुलनीय है।
  • इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी का परंपरागत वोटर भी पार्टी के लिए टॉनिक है।
  • 2014 लोकसभा चुनाव में जहाँ बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, बावजूद इसके पार्टी को कुल 20 फ़ीसदी मत मिले थे।
  • वहीँ यूपी में सरकार बनाने की शुरुआत 28 फ़ीसदी मत से हो जाती है।
  • ये बसपा का परंपरागत वोटर ही है जो सूबे में उसकी सबसे बड़ी ताकत है।

समाजवादी पार्टी:

  • सपा की कमान अब अखिलेश यादव के हाथों में आ गयी है।
  • जिसके लिए बड़े ही नाटकीय ढंग से सब कुछ हुआ या किया गया, इस पर सभी के व्यक्तिगत विचार हैं।
  • वहीँ अखिलेश यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी संगठन को ऊपर से लेकर नीचे तक बदल दिया गया है।
  • साथ ही पार्टी ने कांग्रेस से यूपी चुनाव के तहत गठबंधन भी कर लिया है।
  • जिसके बाद थोड़ी सी ही सही अखिलेश यादव को मजबूती मिली है।
  • वहीँ अखिलेश यादव अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
  • जिसका मतलब है कि, अब सारे फैसलों पर एकाधिकार उनका है।
  • अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद ही पार्टी में उन्हें चुनौती देने वालों को या तो बाहर कर दिया है या उनके कद को कम कर दिया है।
  • कद की बात करें तो बीते 3 महीनों से समाजवादी पार्टी में मचे घमासान के बाद अखिलेश यादव का कद बढ़ा है।
  • वहीँ अखिलेश यादव के परंपरागत यादव-मुस्लिम वोटर्स के साथ कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स भी जुड़ गए हैं।

समाजवादी पार्टी की चुनौतियां:

  • अखिलेश यादव की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि, उन्हें 2017 में सरकार बनानी है।
  • जिसके लिए अखिलेश यादव ने अपने परिवार और अपने पिता से दगा कर ली थी।
  • अखिलेश की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती सपा प्रमुख मुलायम सिंह को साधना होगी।
  • ये बात अखिलेश यादव भी बखूबी जानते हैं कि, नेताजी ने जिद पकड़ ली तो सपा को हारने से कोई रोक नहीं सकता है।
  • वहीँ सपा प्रमुख के चुनाव प्रचार में न जाने से भी पार्टी को काफी नुक्सान उठाना पड़ सकता है।
  • सपा को सरकार बनाने के लिए मुस्लिम वोटर्स की जरुरत है, लेकिन सपा प्रमुख ने कार्यालय में भावुक होते हुए उस पर भी पानी फेरने की कोशिश की थी।
  • जब उन्होंने कह दिया था कि, अखिलेश ने मुस्लिमों को कम टिकट दिए हैं।
  • जिसके बाद ऐसा मुमकिन है कि, सपा के परम्परागत मुस्लिम वोटर्स सपा से विमुख हो सकते हैं।
  • अखिलेश यादव हर सार्वजानिक मंच से अपने विकास कार्यों की तारीफों के पुल बाँधने से नहीं थकते हैं।
  • लेकिन क्या बूथ लेवल पर सपा की तैयारी अपनी प्रतिद्वंदी बसपा के जैसी ही मजबूत है?
  • अखिलेश यादव की एक और चुनौती बहुत ही बड़ी है जो है क़ानून-व्यवस्था।
  • इस एक मुद्दे ने सरकार को पिछले साढ़े 4 सालों से परेशान किया है और चुनाव में भी यह जारी है।
  • विरोधी कोई भी मौका इस विषय पर नहीं चूकते हैं।

बहुजन समाज पार्टी की चुनौतियां:

  • बसपा की सबसे बड़ी चुनौती पार्टी छोड़कर गए नेता हैं।
  • जिन्होंने दूसरे दलों खासकर भाजपा की शरण ली है।
  • गौरतलब है कि, चुनाव से पहले कई कद्दावर बसपा नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया है।
  • हालाँकि पार्टी के लिए यह चिंता का विषय नहीं है, चिंता का विषय है बसपा नेताओं का आरोप।
  • स्वामी प्रसाद मौर्य समेत सभी नेताओं ने बसपा सुप्रीमो पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया था।
  • सूबे की जनता पर इसका कुछ ख़ास अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा होगा।
  • इसके अलावा पार्टी की चुनौतियों में दूसरी चुनौती यह है कि, 2007 से लेकर 2012 के शासन में बसपा ने विकास कार्यों के नाम पर सिर्फ पत्थर लगवाए।
  • शायद इसीलिए बसपा सुप्रीमो को कई बार यह कहना पड़ चुका है कि, इस बार सरकार आने पर पार्टी स्मारक नहीं बनवाएगी।
  • गुंडाराज पर सपा का घेराव करने वाली बसपा सुप्रीमो को CMO हत्याकांड नहीं भूले होंगे और न ही जनता को।
  • चुनौतियां दोनों ही दलों के सामने हैं, लेकिन कौन सा दल चुनौतियों का दलदल पार कर के विधानसभा पहुंचेगा ये 11 मार्च को पता चलेगा।
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