राजनीतिक पंडितो के अनुसार राजनीतिक दलों का ध्यान पिछड़ा, दलित, मुस्लिम के बाद के बाद सबसे ज्यादा ब्राह्मण वोटों पर है। यूपी के सवर्णों की संख्या लगभग 20 फीसदी के आसपास है । इनमें ब्राह्मण [ Brahmin Vote Bank ] सबसे ज्यादा प्रभावी हैं ।

उत्तर प्रदेश चुनाव में ब्राह्मण वोट क्यों है अहम?

यूपी के जातीय समीकरण में करीब 12 फीसदी ब्राह्मण हैं । करीब 12 जिलों में 20 फीसदी से ज्यादा इनकी आबादी है । गोरखपुर, प्रयागराज, देवरिया, महाराजगंज, जौनपुर, वाराणसी, चंदौली,  बस्ती, संत कबीर नगर, अमेठी, बलरामपुर, कानपुर में ब्राह्मण मतदाता 15 फीसदी से ज्यादा है । यहां किसी भी उम्मीदवार की हार या जीत में ब्राह्मण वोटर्स [ Brahmin Vote Bank ] का रोल अहम होता है ।

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ब्राह्मण कार्ड [ Brahmin Vote Bank ] का ट्रैक रिकॉर्ड

पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में ब्राह्मण कार्ड और उम्मीदवारों के जीत के ट्रैक रिकॉर्ड को खंगाले तो बीजेपी के 1993 में 17 विधायक, 1996 के चुनाव में 14, 2002 में 8 विधायक, 2007 में 3 और 2012 में 6 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2017 में भी करीब 44 विधायक ब्राह्मण जाति से चुनकर विधानसभा पहुंचे ।

सपा की बात करें तो 1993 में 2 विधायक, 1996 में 3, 2002 में 10 विधायक, 2007 में 11 और 2012 में 21 ब्राह्मण चेहरे जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2017 में भी सपा ने 10% ब्राह्मणों को टिकट दिया था।

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कांग्रेस के 1993 में 5 विधायक, 1996 में 4, 2002 में 1, 2007 में 2 और 2012 में 3 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे जबकि 2017 में कांग्रेस ने 15% ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया था ।

बीएसपी से 1993 में एक भी विधायक ब्राह्मण जाति से नहीं था लेकिन 1996 में 2, 2002 में 4 विधायक, फिर 2007 के चुनाव में बीएसपी ने अपने सियासी फार्मूले में ब्राह्मणों को ऐसा फिट किया जिसकी बदौलत उसके 41 विधायक चुन कर आए और 206 सीटों के साथ बीएसपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई ।

1990 के आंदोलन से पहले ब्राह्मण कांग्रेस का वोट बैंक होता था. 1990 के आंदोलन के दौरान ब्राह्मणों ने बीजेपी का दामन थामा, जिससे पार्टी सीधे 221 सीट जीतकर सूबे की सत्ता पर काबिज हो गई थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर और ब्राह्मणों का साथ मिलने से लोकसभा की प्रदेश से 73 सीट हासिल की थी।

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कुल मिलाकर ब्राह्मण वोटर [ Brahmin Vote Bank ] उत्तर प्रदेश में वोट के हिसाब से एक खास हैसियत रखते हैं और ये जिस तरफ भी मुड़ जाते हैं उस पार्टी की सियासी नैया पार लग जाती है. यही वजह है कि 2022 के सियासी रण में कोई भी दल इनकी नाराजगी का जोखिम नहीं उठाना चाहता।

 

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