बदायूं लोकसभा क्षेत्र जो पहले वोदामयुता कहलाता था, उत्तर प्रदेश का एक लोकसभा क्षेत्र है, जो पश्चिम उत्तर प्रदेश में है. यह एक मशहूर ऐतिहासिक और धार्मिक शहर है. यह रोहिलखंड में मध्य में होने की वजह से इसका दिल कहलाता है. मुख्य पर्यटन स्थल न होते हुए भी, यहाँ हर साल लाखों सैलानी आते हैं. ज़्यादातर लोग यहाँ जियारत के लिए आते हैं. इल्तुतमिश के शासन काल के दौरान बदायूं 4 साल तक उसकी राजधानी रहा.

प्राचीन शिलालेश के आधार पर प्रोफेसर गोटी जॉन ने बताया की बदायूं का पुराना नाम बेदामूथ था. ये शिलालेश पत्थर लिपियों पे लिखे गये और लखनऊ म्यूजियम में संरक्षित हैं. मुस्लिम इतिहासकार रोज़ खान लोधी ने बताया की महँ अशोक ने यहाँ बुद्ध विहार और किला बनवाया जिसको उन्होंने बुद्ध्माऊ (बदायूं का किला) बनवाया. जॉर्ज स्मिथ के अनुसार बदायूं का नाम अहीर राजकुमार बुध के नाम पे रखा गया था.

संभवतः 12वीं शताब्दी के एक शिलालेख पर 12 राठोर राजाओं की तालिका लिखी हुई है. उस समय बदायूं वोदामयुता कहलाता था. 1196 में क़ुतुबुद्दीन द्वारा कब्ज़ा किया जाना ही बदायूं की पहली विश्वसनीय ऐतिहासिक घटना है. इसके बाद ये दिल्ली सल्तनत का सबसे अवाश्यक सीमान्त बन गया. 1223 में यहाँ बहुत खूबसूरत गुम्बद वाला मस्जिद बनवाया गया. 13वीं शताब्दी के 2 राज्यपाल शम्स उद्दीन इल्तुतमिश और उसका बेटा रुक्न उद्दीन फिरूज़ ने दिल्ली की शाही गद्दी हथिया ली. 1801 में अवध के नवाब ने बदायूं को अंग्रेजों को सौंप दिया.

2011 की जनगणना के अनुसार बदायूं जिले की जनसँख्या 3,681,896 है, जिसमें से 1,967,759 पुरुष और 1,714,137 महिलाएं हैं. यहाँ जनसँख्या घनत्व 712 प्रति वर्ग किलोमीटर है. बदायूं 4,234 किलोमीटर वर्ग में फैला है. यहाँ प्रति 1000 पुरुषों पे 871 महिलाएं हैं. बदायूं की साक्षरता दर देश की औसत साक्षरता दर से बहुत कम 51.29% है. यहाँ 61% पुरुष साक्षर हैं, वहीं केवल 40.09% महिलाएं ही साक्षर हैं.

भतीजे धर्मेन्द्र यादव इस कुर्सी पर बैठे. बदायूं के तत्कालीन सांसद ये ही हैं.

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]भतीजे धर्मेन्द्र यादव इस कुर्सी पर बैठे. बदायूं के तत्कालीन सांसद ये ही हैं.[/penci_blockquote]

यह देश की 250 सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है.

बदायूं लोक सभा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं;

गुन्नौर

बिसौली- अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित

सहसवान

बिल्सी

बदायूं

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1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बदन सिंह विजयी हुए और बदायूं के पहले सांसद बने. अगले चुनाव में भी कांग्रेस ने ही जीत हासिल की पर इस बार रघुबीर सहाय कुर्सी पे बैठे.

1962 के चुनाव में भारतीय जन संघ के ओमकार सिंह भारी मतों से विजयी हुए और ये लगातार 2 बार बदायूं के सांसद बने. 1971 में हार के बाद 1977 में ओमकार फिर वापस आये.

1971 में कांग्रेस के करण सिंह यादव बदायूं के सांसद की कुर्सी पे बैठे. 1980 में इंदिरा गाँधी की पार्टी कांग्रेस के नेता मोहम्मद असरार अहमद. 1984 में कांग्रेस दोबारा सलीम इकबाल शेरवानी यहाँ जीत के सांसद बने.

1989 में जनता दल के नेता शरद यादव बदायूं के सांसद बने.

1991 में भारतीय जनता पार्टी के स्वामी चिन्मयानन्द ने जीत हासिल की. भाजपा की ये बदायूं में पहली और आखिरी जीत थी. तब से अब तक भाजपा एक बार भी इस सीट से नै जीती.

1996 से ले कर अब तक ये सीट समाजवादी पार्टी के हाथ में ही है. सलीम इकबाल शेरवानी 1996 से लगातार 4 बार इस सीट से जीते और उनके बाद मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेन्द्र यादव इस कुर्सी पे बैठे. बदायूं के तत्कालीन सांसद ये ही हैं.

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लोकसभा वर्ष से वर्ष तक नाम पार्टी
पहली 1951 1957 बदन सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
दूसरी 1957 1962 रघुबीर सहाय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
तीसरी 1962 1967 ओंकार सिंह भारतीय जन संघ
चौथी 1967 1971 ओंकार सिंह भारतीय जन संघ
पांचवी 1971 1977 करण सिंह यादव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
छठवीं 1977 1980 ओंकार सिंह भारतीय लोक दल
सातवीं 1980 1984 मोहम्मद असरार अहमद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा)
आठवीं 1984 1989 सलीम इकबाल शेरवानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
नौवीं 1989 1991 शरद यादव जनता दल
दसवीं 1991 1996 स्वानी चिन्मयानन्द भारतीय जनता पार्टी
ग्यारहवीं 1996 1998 सलीम इकबाल शेरवानी समाजवादी पार्टी
बारहवीं 1998 1999 सलीम इकबाल शेरवानी समाजवादी पार्टी
तेरहवीं 1999 2004 सलीम इकबाल शेरवानी समाजवादी पार्टी
चौदहवीं 2004 2009 सलीम इकबाल शेरवानी समाजवादी पार्टी
पंद्रहवीं 2009 2014 धर्मेन्द्र यादव समाजवादी पार्टी
सोलहवीं 2014 अब तक धर्मेन्द्र यादव समाजवादी पार्टी
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