यूपी के बहराइच जिले के महसी विधानसभा क्षेत्र में बाढ़ पीड़ितों के विस्थापन की प्रक्रिया फाइलों में उलझी हुई है। महसी और कैसरगंज तहसील क्षेत्र में लगभग 4500 परिवार तटबंध किनारे गुजर बसर कर रहे हैं। शासन ने विस्थापन के लिए निर्देश जारी किया था, लेकिन फिर मामला फाइलों में उलझ कर रह गया। कटान व बाढ़ पीड़ित ग्रामीणों को अपना आशियाना मुहैया नहीं हो सका है। ऐसे में इस बार यह कटान व बाढ़ पीड़ित प्रत्याशियों के लिए मुसीबत का सबब बन सकते हैं। सभी प्रत्याशियों के आने पर उन्हें जवाबदेह बनाने की तैयारी में हैं।

बाढ़ और कटान कहर बरपाती है कहर

  • बहराइच जिले में हर साल बाढ़ और कटान कहर बरपाती है। यहां औसतन 250-300 परिवार बेघर होते हैं।
  • बीते एक दशक से घाघरा नदी में आठ गांव समाहित हुए हैं।
  • इन गांवों के लगभग 4500 परिवार इस समय बेलहा-बेहरौली तटबंध पर महसी में और आदमपुर रेवली तटबंध पर कैसरगंज में गुजर-बसर कर रहे हैं।
  • इनके पास न तो मकान है न ही खेती।
  • दिन भर मजदूरी करने के बाद जो हासिल होता है, उसी से दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं।
  • इन बाढ़ और कटान पीड़ितों को आशियाना मुहैया कराने के लिए विस्थापन नीति के तहत जमीन और मकान देने के निर्देश शासन ने दिए थे।
  • लेकिन जिले में विस्थापन प्रक्रिया परवान नहीं चढ़ सकी।
  • इस कारण घाघरा के कहर से बेघर हुए परिवार तटबंध की पटरियों पर झोपड़ी बनाकर जिंदगी काट रहे हैं।

नरक हो गई जिंदगी, वोट के लिए आते हैं नेता

  • बाढ़ आने पर अधिकारी और नेता दिखाई पड़ते हैं। लइया, चना और बिस्कुट बांटकर चले जाते हैं।
  • इसके बाद कोई सुधि नहीं लेता। यह कहना है तटबंध पर निवास कर रहे निरहू का।
  • वहीं कोइली देवी तथा महेश भी प्रशासनिक उपेक्षा से आहत हैं।
  • दोनों का कहना है कि नेता तो वादे करते रहते हैं।
  • अधिकारियों से आस थी कि हक दिलाएंगे, लेकिन अधिकारी भी आज तक हक नहीं दिला सके।
  • ऐसे में जैसे-तैसे जिंदगी कट रही है। इन ग्रामीणों का कहना है कि फिर चुनाव आ गया है।
  • ऐसे में नेताओं के इर्द गिर्द चक्कर लगाने वाले वोट लेने के लिए फिर आने लगे हैं।
  • नेताओं के आने पर उनसे अपनी बदहाली के मामले में सवाल पूछेंगे। इस बार मान मनौवल पर वोट नहीं मिलेगा।
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