प्रधानमंत्री की ग्रामीण आवास योजना से यूपी के बुलंदशहर में भी सैंकड़ो बेघरों को घर दिए जाने की बातें सरकारी मशीनरी के जरिये कही जा रही हैं, घर बेघरों को मिल भी रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके ऐसे पात्रों की फेहरिस्त भी लम्बी है, जो आज भी सरकारी मशीनरी की तरफ ये उम्मीद लगाए हैं कि उन्हें भी रहने को पक्की छत मिल सके।

देशभर में गरीबों, बेघरों को आवास देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना चलाई जा रही है।
लेकिन क्या इस योजना का लाभ वाकई गरीबों को मिल रहा है ?
क्या अधिकारी और ग्राम प्रधान बिना किसी भेदभाव के पात्र लोगों को उनके सपनों का घर बनवाने के लिए धनराशि उपलब्ध करा रहे हैं?

साल 2016 से 2017 तक 640 बेघर ग्रामीणों को मिले सरकारी आवास:

जनपद बुलंदशहर की बात की जाए तो यहां साल 2016 से साल 2017 तक 640 बेघर ग्रामीण परिवारों को सरकारी आवास देने के आंकड़े सरकारी मशीनरी द्वारा बताए जा रहे हैं. जिनमें बुलंदशहर के सिकन्द्राबाद ब्लॉक के महताबनगर गाँव का एक गरीब परिवार भी शामिल है,  जो आर्थिक तंगी के चलते अपना सपनों का घर नहीं बना पा रहा था.
परिवार मजबूरियों के चलते ये सोच भी नहीं पा रहा था कि इनके सिर पर भी पक्की छत हो पाएगी. लिहाजा इन्हें झौंपड़ी में रहकर ही वक्त गुजरना पड़ रहा था.
परिवार की ग्रहणी परवीन ने बताया कि परिवार पहले ही कर्ज में दबा था. जिसके चलते घर बनवाने के लिए और कर्ज नहीं ले सकते थे. लेकिन बाद में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना की वजह से परिवार को घर मिल सका।

बुलंदशहर में कई गरीब परिवारों को घर की आस:

लेकिन बुलंदशहर में परवीन के परिवार जैसे एक दो परिवार नहीं बल्कि हज़ारों परिवार हैं, जो प्रधानमंत्री की इस महत्वकांशी योजना के लिए पात्र हैं लेकिन उनका दुख सुनने कोई ज़िम्मेदार अधिकारी उनके गांव नहीं पहुंचता है और ना ही मकान पाने की उनकी जद्दोजहद देखकर कोई अधिकारी उन्हें इस योजना का लाभ देना चाहता है।

छप्पर के घर में रह रहे लोग:

बुलंदशहर के बिलसुरी गांव में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का एक लाभार्थी परिवार रहता है. इस परिवार को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का लाभ ज़रूर मिला है, लेकिन गाँव के इसी मोहल्ले में कई परिवार छप्पर डालकर रहने को मजबूर हैं. जब हमारी टीम ने इसकी जानकारी जुटाई तो जवाब हैरान कर देने वाले थे, क्योंकि ये मजबूर परिवार ग्राम प्रधान और अधिकारियों की चौखट के चक्कर लगाते-लगाते थक चुके हैं. बस अब इन्हें सरकार से ही कोई उम्मीद बाकि है।

परियोजना निदेशक ने माना की हजारों लोग अब भी बेघर:

इस बारे में जब हमारी टीम ने जिले के जिम्मेदार अफसरों से बात की तो बुलंदशहर के परियोजना निदेशक ने दावा किया कि सैंकड़ों ग्रामीण लाभार्थियों को जिले में छत मिली हैं, लेकिन परियोजना निदेशक ये भी मानते हैं कि हजारों की तादात में आज भी पात्र परिवार जिले में राह ताक रहे हैं कि कोई इनके पास सन्देश लेकर आएगा और इन्हें भी घर मिलेगा।
परियोजना निदेशक सर्वेश चंद की माने तो ये बेघरों को घर देने के सरकार के आदेशों को मद्देनजर रखते हुए जो भी संख्या इन्हें दी जाती है ये उसपर गहनता से छानबीन करके इसमें रिपोर्ट लेकर कार्य करते हैं। वहीं परियोजना निदेशक ने ये भी बताया कि जनपद में करीब सात हजार पांच सौ से भी ज्यादा लोगों ने सरकारी घर के लिए आवेदन किया हुआ है।

सात हजार पांच सौ से ज्यादा लोगों ने किया आवास के लिए आवेदन:

हालांकि अफसर खुद ये ज़रूर मान रहे हैं कि बुलंदशहर में काफी लोग सरकारी मदद के असली हक़दार हैं, लेकिन उन्हें अभी तक भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
यहां सवाल ये उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने योजना गरीबों को घर देने के लिए बनाई है लेकिन काफी हद तक आज भी वो गरीब अधिकारियों की चौखट से निराश होकर ही वापस लौट रहे हैं. यहां ज़रूरत है उन नौकरशाहों को उनकी परेशानी समझने की जिन्हें आवास बनवाने में मदद देने के लिए यहां बैठाया गया है। ताकि पीएम मोदी का वो सपना पूरा हो सके जो उन्होंने गरीबों के लिए देखा है।

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