आजादी के बाद बिजली की राह देख रहे ग्रामीणों की उम्मीद हुई पूर, जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर पहाड़ो की गोद में बसा नक्सल प्रभावित रामपुर ढबहि गांव में 70 वर्ष बाद बिजली आने से ग्रामीणों के चेहरे खिले। लालटेन और ढिबरी की सहायता से पढ़ने वाले छात्रों के सपनो को लगे पंख, सूखे पड़े खेतों में अब लहलहायेगी फसल

आईये हम आपको ले चलते हैं एक ऐसे गांव रामपुर ढबहि गांव में जहां आजादी के 70 वर्षों बाद बिजली आने से ग्रामीणों का जीवन उत्साह से भर गया है । बिजली आने के पहले इस गांव के ग्रामीण दुनिया में होने वाले बदलाव से अछूते नजर आते थे । बिजली से चलने वाले उपकरण इनके लिए किसी काम के नही थे ।शाम होते ही गाँव मे सन्नाटा पसर जाता था , पढ़ने वाले छात्र किसी तरह ढिबरी और लालटेन के सहारे अपनी पढ़ाई कर पाते थे, इसी गांव की एक गरीब की बेटी जिसने ऑस्कर पुरस्कार भी जनपद को दिया है, अपने होंठ कटे होने के नाते समाज में उपेक्षा का शिकार बनी पिंकी को एक सामाजिक संस्था ने उसके होठ का ऑपरेशन करवाया, उसके बाद एक डॉक्यूमेंट्री पिक्चर में पिंकी ने प्रतिभाग किया, पिक्चर को अमेरिका में प्रदर्शित किया गया जिसमे पिंकी को ऑस्कर अवार्ड से नवाजा गया ।

गांव के खेतों की सिंचाई पूरी तरह से प्रकृति के द्वारा होने वाली वर्षा पर निर्भर थी। खेत होने के बाद भी किसानों के सामने फसल के सिंचाई की समस्या खड़ी रहती थी। सिंचाई के अभाव में अक्सर फैसले सूख जाने से काफी नुकसान उठाना पड़ता था।

यहां ये भी बता दें कि  बोर्ड परीक्षा-2018 की तैयारियों में जुटे परीक्षार्थियों के लिए योग प्रशिक्षण परेशानी का सबब बन गया है। छह फरवरी से शुरू होने वाली परीक्षा के लिए लगभग प्रत्येक विद्यालय पर शिक्षक भी अपने छात्रों को जरूरी टिप्स दे रहे हैं। लेकिन दो घंटे के योगा प्रशिक्षण ने छात्रों के साथ ही शिक्षकों का भी मन खट्टा कर दे रहा है।

असल परेशानी तो यह है कि  राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना कार्यालय की ओर से योग प्रशिक्षण कराने के निर्देश तो दे दिए गए हैं। लेकिन प्रशिक्षण की समय सारिणी क्या होगी, इसे तय ही नहीं किया गया है। हालत यह है कि चयनित संस्था के प्रशिक्षक जब चाहे किसी स्कूल पर धमक पड़ रहे हैं और योग कराने में जुट जा रहे हैं। चूंकि शासन का आदेश होने की वजह कोई प्रधानाचार्य, शिक्षक कुछ बोल नहीं पा रहे है।

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