निजी अस्पतालों की मरीजों के प्रति संवेदनशीलता के मायने ही खत्म हो गए हैं। ऐसे में डॉक्टरी एक पेशा और अस्पताल एक धंधा कहना गलत नहीं होगा, क्योंकि वाकई दौर ऐसा है, कि पैसों के खातिर मरीजों की जान लेना एक आम बात हो गई है|

महंगी दवाओं की स्लिप पर मरीजों को देते हैं सस्ती दवाएं:

ताजा मामला है, लखनऊ के आलमबाग स्थित अजंता हॉस्पिटल का, जहां अस्पताल संचालकों को पैसा कमाने का ऐसा भूत सवार है कि जनरल वार्ड में ही तीमारदारों के आंखों का ऐसा काजल चुराते हैं, आप भी जानकर दंग रह जाएंगे।

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जी हां इस खेल के बारे में हम आप को समझाते हैं। बता दें कि पैसे ऐंठने के चक्कर में मरीज के लिए महंगी से महंगी दवा रजिस्टर और पर्चे में लिखते हैं और अस्पताल के दवा खाने से सस्ती से सस्ती दवा आती है जो मरीज को दी जाती है।

मान कर चलिए कि अगर 1500 MRP की दवा रजिस्टर में लिखी जाती है तो मात्र 100 रुपए की कीमत की दवा मरीज़ को दी जाती है. यह खेल तीमारदार ने रंगे हाथों पकड़ा तो उनके होश ही उड़ गए.

क्या है मामला: 

बता दें लखनऊ निवासी पीड़ित दीपक कुमार तिवारी ने UttarPradesh.Org को साक्ष्य दिखाने के साथ-साथ अपने हाल बयां करते हुए बताया कि उनकी नानी अजंता अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थी.

कई दिन इलाज चलता रहा, जिससे चिंता और कमजोरी के चलते उनके नाना भी जनरल वार्ड में एडमिट हो गए।

6 सितंबर को उनकी नानी को डेड डिक्लेयर कर दिया गया. इसके बाद नानी का अंतिम संस्कार किया गया और नाना को भी डिस्चार्ज कराकर नानी के अंतिम संस्कार में शामिल भी किया गया।

लेकिन कमजोरी के चलते दोबारा से अजंता अस्पताल के जनरल वार्ड में भर्ती कर दिया गया। वहीं इस दौरान अजंता अस्पताल के डॉक्टरों का खेल भी सामने आया।

1390 रुपये की दिखा कर 56 रुपए की दी जाती थी एंटीबायोटिक:

दीपक कुमार तिवारी ने बताया कि उनके नाना के लिए 1390 रुपये कीमत वाली जो एंटीबायोटिक Meropenem उनके फ़ाइल में लिखी जाती है, उसकी जगह नर्स मात्र 56 रुपए की कीमत वाली एंटीबायोटिक इंजेक्शन Monocef लगाती है.

ajanta hospital fraud use cheap medicine charged expensive

वहीं पर्चे में महंगी दवा का नाम नोट करके टिक कर देती है और मरीज को दवा देने की पुष्टि करती है।

चूंकि दीपक तिवारी और उनकी बहन भी पेशे से एक डॉक्टर ही हैं जिससे आंखों के सामने हुए इस खेल को उन्होंने पकड़ लिया और उस सस्ती एंटीबायोटिक दवा का रैपर अपने कब्जे में ले लिया.

शिकायत दर्ज होने पर भी नहीं हुई कोई कार्रवाई:

इतना ही नहीं जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उन्हें धमकाया गया और हिदायत दी गयी कि जब आप प्रैक्टिस करेंगे, तो आप भी यही करेंगे।

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दीपक कुमार तिवारी के मुताबिक वह अपने नाना जी को वहां से डिस्चार्ज कर घर ले आये हैं और आलमबाग थाने में तहरीर दे दी है लेकिन 96 घंटे बीत जाने के बाद भी थाने में FIR दर्ज नहीं की गयी, साथ ही न कोई कार्रवाई की गयी.

बड़ा सवाल:

इतना ही नहीं बड़ा सवाल यह भी उठता है कि आखिर जब दीपक के नाना के साथ आंखों के सामने इतना सब कुछ हुआ तो आईसीयू में भर्ती उनकी नानी या अन्य किसी भी मरीज के साथ पैसों के खातिर क्या-क्या होता होगा?

इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, जिसके पास कोई तीमारदार मौजूद नहीं होता।

वहीं दीपक कुमार के मुताबिक खास बात यह है कि उनके नाना रेलवे कर्मचारी थे जिससे उनके सम्पूर्ण इलाज का पैसा रेलवे को भुगतान करना था, जिससे अस्पताल प्रशासन का पूरा उद्देश्य रेलवे से अधिक से अधिक पैसा ऐंठना था।

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