उत्तर प्रदेश का समाजवादी परिवार विधानासभा चुनाव के तहत प्रत्याशियों के टिकट वितरण पर एक बार फिर दो धड़ों में बंट गया है, गौरतलब है कि, बुधवार 28 दिसम्बर को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने प्रेस कांफ्रेंस कर प्रत्याशियों की सूची जारी की थी।

सपा प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों ने सौंपी थी लिस्ट:

समाजवादी परिवार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर टिकट वितरण पर एक बार फिर से आमने-सामने हो गया है। जिसके चलते गुरुवार 29 दिसम्बर को एक के बाद एक बैठकों का दौर पार्टी में जारी रहा। इतना ही नहीं इस विषय की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, सपा प्रमुख ने इस मामले में भी अखिलेश यादव की जगह अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को वरीयता दे दी।

ज्ञात हो कि, सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दोनों ने सपा प्रमुख को अपनी अपनी लिस्ट सौंपी थी। जिसके बाद सपा प्रमुख को ही लिस्ट पर अपना अंतिम फैसला लेना था।

पलटवार के खेल में शिवपाल सिंह ने बनायी बढ़त:

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 403 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों की सूची दी थी। जबकि, शिवपाल सिंह यादव 172 सीटों पर पहले ही प्रत्याशियों की घोषणा कर चुके थे। जिसके बाद सपा प्रदेश अध्यक्ष ने 325 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगा दी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री अखिलेश ने जो लिस्ट सपा प्रमुख को सौंपी थी, उस लिस्ट में से सपा प्रदेश अध्यक्ष के करीबियों पर मुख्यमंत्री ने कैंची चलायी थी। वहीँ शिवपाल सिंह यादव की लिस्ट में मुख्यमंत्री अखिलेश के करीबियों की बलि दी गयी थी।

सपा प्रमुख ने एक बार फिर दिया भाई का साथ:

कौमी एकता दल के सपा में विलय से शुरू हुआ सपा का नाटक आज टिकट बंटवारे पर आकर एक बार फिर से मुखर हो गया है। कौमी एकता दल के विलय का समर्थन करने वाले मंत्री बलराम यादव को बर्खास्त कर सीएम अखिलेश ने समाजवादी परिवार में ‘गृहयुद्ध’ की शुरुआत की थी। हालाँकि, मुख्यमंत्री अखिलेश को सपा प्रमुख के दबाव में आकर इस फैसले को बदलना पड़ा था।

जिसके बाद नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश ने शिवपाल सिंह यादव को कैबिनेट से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था। जिसके बाद इस्तीफा देने पर उतारू शिवपाल सिंह यादव को अपने बड़े भाई सपा प्रमुख का साथ मिला, सपा प्रमुख ने मुख्यमंत्री अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद से निष्कासित कर शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था। इस घटनाक्रम के बाद से आज तक चाचा-भतीजे के बीच सब कुछ ठीक नहीं हो पाया है। जिसका ताजा उदाहरण टिकट वितरण है।

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