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‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूहीं नहीं कोई बेवफा होता’

दीपक सिंघल को बर्खास्त किये जाने के बाद से सपा में जो कलह शुरू हुई वो पार्टी में बंटवारे की नौबत तक आ पहुंची है. इस कलह का बीज तभी बोया जा चुका था जब अखिलेश यादव ने दीपक सिंघल और गायत्री प्रजापति को बर्खास्त किया. बैठकों का दौर उस वक्त भी शुरू हुआ था और मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान की सौंप दी थी. इसके पूर्व अखिलेश यादव मुख्यमंत्री होने के साथ ही संगठन में भी मुखिया थे.

कई मौकों पर अंतिम फैसला मुलायम सिंह करते रहे:

मुलायम सिंह यादव के इस फैसले के बाद शिवपाल के सभी मंत्रालय को अखिलेश ने वापस ले लिया और उन्हें शक्तिविहीन कर दिया था. मामला एक बार फिर मुलायम सिंह यादव के पास पहुंचा और दो दिन की बैठक के बाद अखिलेश-शिवपाल के बीच सुलह हुई. शिवपाल यादव को मंत्रालय भी वापस कर दिया गया. फिर मामले ने दोबारा तूल पकड़ा जब एमएलसी आशु मलिक और पूर्व एमएलसी उदयवीर को लेकर शुरू हुआ विवाद इन दोनों के बीच टकराव का कारण बन गया.

पूरे प्रकरण में रामगोपाल यादव एकतरफ़ा अखिलेश यादव के समर्थन में दिखे वहीँ अमर सिंह भी शिवपाल के खेमें में बने हुए हैं. रामगोपाल लगातार अमर सिंह पर आरोप लगाते रहे और उन्हें पार्टी से निकालने की बात करते रहे. इस मामले पर सुनवाई तो नहीं हुई लेकिन रामगोपाल को शिवपाल ने अनुशासनहीनता के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया. इस निर्णय का खामियाजा शिवपाल को अपने मंत्रालय को गँवाकर भुगतना पड़ा. अखिलेश यादव ने एक बार फिर शिवपाल से मंत्रालय वापस ले लिया.

टिकट बंटवारा बना विवाद का कारण:

मामला मुलायम सिंह यादव के कोर्ट में पहुंचा और दो दिन चली उठापटक के बाद चाचा-भतीजा के बीच सुलह कराने में मुलायम सिंह यादव को कामयाबी मिल गई. लेकिन शिवपाल यादव ने इस बीच मंत्रालय लेने से मना कर दिया और उन्होंने कहा कि संगठन वो चलाएंगे. पूरे मामले में अखिलेश ने मुलायम सिंह यादव के सामने ये कहा था कि उन्हें भी संगठन में अधिकार दिए जाने चाहिए. टिकट बंटवारे को लेकर अखिलेश ने कहा था कि चुनाव में परीक्षा उनकी है इसलिए उनको अपनी टीम चुनने का हक़ मिलना चाहिए.

कुछ दिनों बाद रामगोपाल की भी पार्टी में वापसी हो गई थी और पार्टी में सबकुछ ठीक हो गया. बीते दिनों शिवपाल यादव ने अखिलेश के कुछ करीबियों का टिकट काटकर अपने करीबियों को टिकट दे दिया और 17 नामों की सूची जारी कर दी. इसके तुरंत बाद अखिलेश यादव ने 403 नामों की सूची मुलायम सिंह को सौंप दी. मामला टिकट बंटवारे का था इसलिए मुलायम सिंह यादव ने खुद ही 325 नामों की सूची जारी की. लेकिन इन नामों में 3 मंत्री के टिकट सपा प्रमुख ने काट दिए. अखिलेश को ये सब बिल्कुल भी पसंद नहीं था और उन्होंने अपने 235 उम्मीदवारों की लिस्ट को सार्वजनिक कर दिया. अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह के निर्णय के खिलाफ बगावत कर दी थी.

अखिलेश रामगोपाल हुए बाहर:

मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को इस गुस्ताखी के लिए पार्टी से 6 साल के लिए बाहर कर दिया. रामगोपाल यादव को भी 6 साल के निष्कासन का फैसला सुनाया गया. मुलायम सिंह यादव ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अखिलेश यादव रामगोपाल के इशारे पर काम कर रहे हैं और ये नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. लड़ाई अब आर-पार की हो गई थी. जिसमें अखिलेश भी पीछे नहीं रहने वाले थे. फिर शुरू हुआ बैठकों का दौर और 24 घंटे के अन्दर निलंबन वापस ले लिया गया.

अखिलेश यादव ने कर दी बगावत:

लेकिन अखिलेश यादव यहीं नहीं रुके. रामगोपाल द्वारा बुलाये गए अधिवेशन में उन्होंने खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुलायम सिंह यादव को संरक्षक घोषित कर दिया. शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया तो वहीँ अमर सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया. उधर मुलायम सिंह यादव ने कहा कि ये असंवैधानिक है और पार्टी के प्रमुख वही हैं. उन्होंने एक पत्र जारी किया और रामगोपाल का निलंबन वापस नहीं हुआ था. अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव के आवास पर गए और उन्होंने 200 से ज्यादा विधायकों के समर्थन की सूची मुलायम को सौंप दी. मुलायम सिंह यादव के हाथ से सब कुछ छूटता दिख रहा था लेकिन मुलायम सिंह यादव ने तभी चुनाव चिन्ह को लेकर दावा ठोक दिया. उनके अनुसार, पार्टी के नाम पर सिंबल पर उनके हस्ताक्षर हैं.

5 दिनों से इस मुद्दे पर कई दफे बैठक हो चुकी है लेकिन अभी तक सुलह की कोशिश नाकाम रही है. चुनाव की तारीख तय हो चुकी है. लेकिन समाजवादी पार्टी का दंगल अभी भी जारी है. सुलह की ख़बरों के बीच अभी भी अंतिम फैसला आना बाकी है.

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