उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव काफी दिलचस्प होता जा रहा है। इस उपचुनाव में विपक्षी दल गठबंधन के तहत साझा प्रत्याशी उतारना चाहते हैं मगर सपा ने इस सीट पर अपने दावे से राष्ट्रीय लोक दल की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सपा के इस फैसले से विपक्षी एकता को नुकसान होना तय था। इसका हल निकला है कि सपा नेत्री तबस्सुम हसन अब रालोद के चुनाव निशान पर उतरेंगी। हालाँकि बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं जिस लेकर अब हैरान कर देने वाले खबर सामने आ रही है।

दर्शक की भूमिका में है बसपा :

फूलपुर और गोरखपुर में भाजपा का किला ढहाने और सपा की जीत में बसपा का काफी बड़ा हाथ था। सपा को उम्मीद थी कि इस बार भी उप्चुनावों में उसे बसपा का समर्थन मिलेगा मगर ऐसा होने की उम्मीद काफी कम हैं। बसपा ने फैसला किया है कि वो न ही उपचुनाव लड़ेगी और न किसी दल को अपना समर्थन देगी। ऐसे में इन उपचुनावों में बसपा सिर्फ एक दर्शक की भूमिका में रह कर जनता के मूड को भांपना चाहती है। बसपा इन उपचुनावों के नतीजों के बाद 2019 की अंतिम रणनीति पर काम करेगी। हालाँकि बसपा ने लोकसभा का आम चुनाव सपा के साथ लड़ने का ऐलान किया हुआ है। ऐसे में उपचुनाव में जातिगत समीकरणों को देखते हुए बसपा का समर्थन न मिलने से सपा को दिक्कत हो सकती है।

 

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नहीं खोले हैं पत्ते :

2019 के लोकसभा आम चुनावों के पहले ये उपचुनाव जीतना भाजपा के लिए साख का सवाल है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रालोद के साथ गठबंधन करते हुए विपक्ष की एकता को दर्शाने का प्रयास किया है लेकिन पिछले उप्चुनावों में सपा को समर्थन देने वाली बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बसपा ने न तो कोई प्रत्याशी उतारा है और न ही किसी प्रत्याशी को समर्थन का ऐलान किया है। ऐसे में बसपा सुप्रीमों मायावती की इस बेचैनी ने अखिलेश यादव की बेचैनी बढ़ा दी है। हालाँकि सपा और रालोद के नेता अपने साथ बसपा का गठबंधन होने का दावा कर रहे हैं।

 

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