सत्ता संभालने के बाद शुरुआती 6 महीनों में हुए पुलिस एनकाउंटरों पर नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन के निशाने पर आई CM योगी आदित्यनाथ की अगुआई वाली बीजेपी सरकार उत्तर प्रदेश पुलिस के एनकाउंटरों के दौरान हुई मौतों के सरकारी आंकड़ों में हेराफेरी करने को लेकर एक बार फिर चर्चा में आ रही है। लखनऊ निवासी आरटीआई कंसलटेंट और इंजीनियर संजय शर्मा ने अपनी एक आरटीआई पर राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो से आये जबाब के आधार पर योगी आदित्यनाथ की सरकार पर पुलिस के एनकाउंटरों में हुई मौतों के आंकड़ों में हेराफेरी करने का गंभीर आरोप लगाया है।

बताते चलें कि देश में मानवाधिकार संरक्षण के लिए बनी सबसे बड़ी संस्था नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) ने बीते दिनों मीडिया रिपोर्ट्स का स्वतः संज्ञान लेकर यूपी पुलिस द्वारा सरकार के आरंभिक 6 महीने में हुए एनकाउंटरों पर मुख्य सचिव को नोटिस जारी करके 6 हफ़्ते में जबाव मांगा था। NHRC के नोटिस में पुलिस विभाग द्वारा जारी आंकड़ों की बात कहते हुए छापी गई मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर बीते 14 सितम्बर तक के 6 महीने में 420 पुलिस मुठभेड़ों में 15 लोगों की मौत की बात कही गई थी। पर अब मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय शर्मा को राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो जो सूचना दी है उससे यह कडवी सच्चाई सामने आ रही है कि योगी सरकार ने मुठभेड़ से हुई सभी मौतों को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया है और आयोग की कार्यवाही से बचने के लिए आंकड़ों में हेराफेरी की है।

लोकजीवन में पारदर्शिता, जबाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण के लिए काम कर रहे संजय शर्मा ने बीते 14 सितम्बर को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के कार्यालय में साल 2012 से 2017 तक की अवधि में पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए अपराधियों और पुलिस कर्मियों की संख्या की सूचना माँगी थी। मुख्य सचिव कार्यालय ने संजय की अर्जी शासन के गृह विभाग को अंतरित की जहाँ से यह अर्जी पुनः अंतरित होकर लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश पुलिस मुख्यालय के पुलिस अधीक्षक (अपराध) के कार्यालय में पंहुची। इस आरटीआई अर्जी पर राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो के जन सूचना अधिकारी ने जो सूचना दी है वह बाकई चौंकाने वाली है।

संजय को बताया गया है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार यूपी में साल 2012 में 10, साल 2013 में 05, साल 2014 में 07, साल 2015 में 09, साल 2016 में 04 और साल 2017 के 14 सितम्बर तक 09 व्यक्ति पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए। साल 2012 में शून्य, साल 2013 में शून्य, साल 2014 में 04, साल 2015 में 01, साल 2016 में शून्य और साल 2017 के 14 सितम्बर तक 01 पुलिस कर्मी के पुलिस मुठभेड़ों में मारे जाने की सूचना भी संजय को दी गई है। संजय के अनुसार वर्तमान सीएम योगी के कार्यकाल के राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो के ये आंकड़े यूपी पुलिस द्वारा पूर्व में जारी किये गए आकड़ों से मेल नहीं खाते हैं और इस आधार पर संजय ने योगी सरकार पर मानवाधिकार आयोग के नोटिस के बाद की कार्यवाही से बचने के लिए मुठभेड़ों की मौतों के आंकड़ों में हेराफेरी कर सरकारी रिकॉर्ड में मृतकों की संख्या कम करने का गंभीर आरोप लगाया है।

संजय के अनुसार सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूर्व सीएम अखिलेश यादव के 5 वर्ष के कार्यकाल में 35 व्यक्ति पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए तो वहीं वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ के 14 सितम्बर तक के कार्यकाल में में 09 व्यक्ति पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए हैं। बकौल संजय अखिलेश के समय इन मौतों का औसत 7 प्रतिवर्ष था जो योगी के समय बढ़कर 9 से अधिक हो गया है जो अखिलेश के कार्यकाल के मुकाबले 28% से अधिक है। संजय ने यह भी बताया कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूर्व सीएम अखिलेश यादव के 5 वर्ष के कार्यकाल में 5 पुलिसकर्मी मुठभेड़ों में मारे गए तो वहीं वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ के 14 सितम्बर तक के कार्यकाल में में 1 पुलिसकर्मी पुलिस मुठभेड़ों मारा गया है। बकौल संजय इस प्रकार अखिलेश के समय इन मौतों का औसत 1 प्रतिवर्ष था जो योगी के समय भी वही है।

पुलिस मुठभेड़ों की मौतों को सीधे-सीधे मानवाधिकारों से जुड़ा मुद्दा बताते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय शर्मा ने संत से सीएम बने योगी आदित्यनाथ से उच्च अपेक्षाओं की बात कही है और अपने अपंजीकृत संगठन ‘तहरीर’ की ओर से योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर पुलिस मुठभेड़ों की मौतों के आंकड़ों को दर्ज करने में की जा रही सरकारी अनियमितता के सम्बन्ध में जांच कराने की मांग करने के साथ-साथ पूरे मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में लाने की बात इस स्वतंत्र पत्रकार उर्वशी शर्मा से की गई एक वार्ता में कही है।

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