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Video: सालों से यहाँ कूड़े के ढेर में फेंकी गई आंबेडकर और कांशीराम की मूर्तियां

Ambedkar and kanshi ram Statues thrown past year

Ambedkar and kanshi ram Statues thrown past year

जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, दलितों पर राजनीति गरमाती जा रही है. प्रदेश में सभी दल दलितों के हितैषी बनने में लगे हुए हैं, चाहे वो योगी सरकार हो या पूर्व की सपा सरकार. इन दिनों किसी भी सार्वजनिक मंच से भाजपा और सपा नेताओं के भाषण में दलित उत्थान, दलितों का फायदा, दलित का हित सुनना आम हो गया हैं. लेकिन चुनाव के नजदीक आते ही दलित राग गाने वाले सच में कितने गंभीर हैं, इसका पता तो आंबेडकर और कांशीराम की उन टूटी मूर्तियों को देख कर लगता हैं, जिन्हें uttarpradesh.org रिपोर्टर के कैमरे ने कैद किया. 

सालों से सड़ रही महापुरुषों की मूर्तियाँ:

इस साल का आंबेडकर जयंती तो याद ही होगी. हर साल 14 अप्रैल को मनाई जाने वाली आंबेडकर जयंती इस बार कुछ ज्यादा ही ख़ास रही. महीने भर पहले से हर राजनीतिक दल के नेतृत्व ने आंबेडकर जयंती को बड़े स्तर पर मनाने के निर्देश दिए.

हर साल यहीं होता हैं, महापुरुषों की जयंती आती हैं. सत्ताधारी दल हो या अन्य राजनीतिक दल उस ख़ास दिन पर महापुरुषों को याद करते हैं और अगले ही दिन भूल जाते हैं.

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आंबेडकर जयंती की ही बात ले ले, जयंती के दिन आंबेडकर प्रतिमा को साफ़ किया जाता हैं, उनका माल्यार्पण किया जाता हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां दलित राजनीति करते हुए उन सभी जगहों पर जाकर माल्यार्पण करतीं हैं, फोटो खिंचवाते हैं और अगले दिन भूल जाते हैं और जब वोट बैंक की बात आती है तो आंबेडकर फिर से जीवित हो जाते हैं.

करोड़ों की कीमत की थीं मूर्तियाँ:

ऐसे ही एक मंजर पिछले दिनों लखनऊ के संगीत नाटक एकेडमी में देखने को मिला, जहां पर तकरीबन 10 साल से आदमकद मूर्तियों को सड़ने के लिए छोड़ दिया गया. यह मूर्तियां सालों से लकड़ी के ताबूत में पड़ी पड़ी खराब हो रही थी.

उसके बाद उन्हें उठाकर संगीत नाटक अकादमी के पास झाड़ियों  में फेंक दिया गया, जहां पर अब ये मूर्तियाँ कूड़ा बन चुकी हैं.

ये बर्बाद हो चुकी मूर्तियाँ कोई आम मूर्तियाँ नहीं बल्कि दलितों के लिए पूजनीय आंबेडकर और कांशीराम की हैं. इतना ही नहीं ये करोड़ों के खर्च से बनी मूर्तियाँ अब इस हालत में हैं कि कमजोर दिल का इंसान देख ले तो खौफजदा हो जाये.

ये मूर्तियाँ 2012 से पहले प्रदेश की मायावती सरकार के समय की हैं. जो उन दिनों राजधानी में लगनी थीं.

लकड़ी के ताबूतों में बंद ये 11 मूर्तियाँ पिछले कई सालों से राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर स्थित संगीत नाट्य अकेडमी के पार्किंग स्थल पर पड़ी थी जिसके बाद उन्हें उठाकर उन्हें झंडियों के बीच जंगल में डाल दिया गया.

जिनमें से मूर्तियां कई सालों से झाड़ियों के बीच दबे हुए क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं.

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव रामजी आंबेडकर, महात्मा गौतम बुद्ध और तमाम दलित महापुरुषों की मूर्तियां लगनी थी लेकिन करोड़ों की इन मूर्तियों पर अब मकड़ियों ने जाला बुन रखा है.

इन प्रतिमाओं में महात्मा गौतम बुद्ध की मूर्ति का बॉक्स पूरी तरह से टूट चुका है, जिससे मूर्ति अब जमीन पर पड़ी हुई है, वहीं मूर्ति को तिरपाल से ढक कर छुपाया गया है.

पहले ही मूर्तियों को अखिलेश सरकार के दौरान संगीत नाटक एकेडमी के कैंपस में, जहां पर तमाम तरह के सरकारी प्रोग्राम के साथ कल्चरल प्रोग्राम भी होते हैं, रखा गया.

लेकिन हमारे पत्रकार के खुलासे के बाद और मीडिया में इन मूर्तियों की जर्जर हालत की खबर सुर्खियाँ बनने के बाद इन्हें जंगलों में पहुंचा दिया गया.

मरीन ड्राइव के पास लगनी थी मूर्तियाँ:

गौरतलब हैं कि इन मूर्तियाँ को गोमतीनगर के मरीन ड्राइव कहे जाने वाले रूट पर लगाया जाना था . इन मूर्तियों के लिए 25 बूथ बनाये गये थे. जिनमे से 13 मूर्तियों को फिट कर दिया गया था. वहीँ 1 दर्जन मूर्तियों की जगह खाली पड़ी हुई हैं. जो मूर्तियाँ वहां लगनी थी वहीं मूर्तियाँ संगीत नाटक अकेडमी में बाद में रखवा दी गईं.

इन मूर्तियों में महात्मा और महापुरुषों के साथ पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की भी मूर्ति थी जो 26 जुलाई को मायावती की मूर्ति टूटने के बाद लगाया जा चुका है और टूटी मूर्ती को वही SNA में ढक कर रख दिया गया है जिसका सर गायब है .

सपा नेता ने तुड़वा दी थी मायावती की मूर्ति:

बता दें कि साल 2012 के समय जब चुनाव आने वाला था तो समाजवादी पार्टी के एक नेता अमित जानी ने मरीन ड्राइव पर खड़ी हुई मायावती की मूर्ति को हथौड़े से तुड़वा दिया था
जिसके बाद अधिकारियों ने रातोंरात उस मूर्ति को वहां से हटवाकर आनन फानन में ताबूत में बंद मायावती की दूसरी मूर्ति उठाकर टूटी मूर्ति की जगह लगवा  दी थी.

यह मामला पूरे देश में बहुत प्रचलित हुआ था कि किसी पूर्व मुख्यमंत्री की मूर्ति को किसी समाजवादी नेता ने हथौड़े से तोड़ा जिसके बाद सभी सरकारी अमले ने मायावती की मूर्ति को रातों-रात फिर से खड़ा करा दिया. अब जो 11 जर्जर मूर्तियाँ जंगलों में रखवाई गयी हैं उनमे से एक मायावती की वहीं टूटी मूर्ति हैं. इस मामले में कई लोगों पर राजद्रोह के मुकदमे भी चले.
बहरहाल पूर्व मुख्यमंत्री की एक मूर्ति तोड़े जाने को लेकर तो दोषियों के खिलाफ मुकदमा हो गया. लेकिन इतने सारे महापुरुषों की मूर्तियों की सालों से ऐसी हालत करने के बाद अब किनके खिलाफ मुकदमा होगा और क्या कार्रवाई की जाएगी, सवाल ये उठता हैं?

एक तरफ माला तो दूसरी तरफ रस्सी:

सभी राजनीतिक दल एक तरह दलित नेताओं को माल्यार्पण करते हैं, दलित हितैषी राग गाते हैं. वहीं दूसरी तरह गोमती नगर के अंबेडकर पार्क से चंद कदम दूर संगीत नाटक एकेडमी में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की टूटी हुई मूर्ति के साथ कई सारे महापुरुषों की मूर्तियां 1 यार्ड में जंगल में बेहद गंदगी में पड़ी हैं.
एक तरफ सभी राजनीतिक दल महापुरुषों की जयंती पर माला चढ़ाते हैं वहीं दूसरी तरफ इन्हीं महापुरुषों की जमीन पर पड़ी मूर्तियों को रस्सी में बाँध कर रखते हैं. जिनमें कीड़े-मकोड़े अपना घर बनाते हैं.

कुल 12 मूर्तियों के साथ दो हाथियों की मूर्तियां की भी हालत बहुत खराब हो चुकी है. पिछले 10 सालों में इन मूर्तियों की हालत बहुत खराब हो चुकी है. 2008 में बनी ये मूर्तियां अब धूल खा रही हैं. सूत्रों की माने तो पार्क में लगाने के लिए पिछली बसपा सरकार में निर्माण निगम ने करोड़ो की लागत में इन मूर्तियों को बनवाया था.

इन महापुरुषों की प्रतिमाओं की हो रही जर्जर हालत:

मायावती सरकार के जाने के बाद ताबोतों में बंद कर रखी गयी इन 12 मूर्तियों में से एक मूर्ति खुद मायावती की थी जो उन्होंने लगवाने के लिए बनवाई थी. इसके बारे में न तो उन्हें पता था न की प्रशासनिक अधिकारी को.
2012 में संगीत नाटक एकेडमी की पार्किग में रखे इन ताबूतों से जन एक शिक्षक ने लकड़ी का हिस्सा हटवा कर देखा तो इनमे मायावती की मूर्ति की पहचान उनके लिबास से हुई. चेहरे की तरफ जब देखा गया तो उनकी आँखों में हिस्से में मकड़ियों के बुने हुए जाल नजर आये.
अंदर गंदगी का अंबार था.
वहीं मायावती की मूर्ति के बगल में ही भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव रामजी आंबेडकर की मूर्ति का बॉक्स रखा हुआ था. ताबूत में रखी मूर्ति में बाबा साहब एक हाथ में भारतीय संविधान की किताब लिए हुए थे और उनके गले में रस्सी बंधी हुई थी.
इसके अलावा अन्य महापुरुषों की मूर्तियां भी एक लाइन से रखी हुई थीं. इनमे से संत रविदास, ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज जैसे कई दलित महापुरूषों की मूर्तियां रखी हुईं थी.

अकेडमी को भी नहीं थी जानकारी:

2008 से संगीत नाट्य अकेडमी में पड़ी इन मूर्तियों के बारे में नाही एकेडमी के किसी अधिकारी को मालूम था और ना ही वहां के सुरक्षा गार्ड को. नाम न बताने कि शर्त पर वहां के एक कर्मचारी ने बताया कि यह मूर्तियां जब से वह नौकरी कर रहा था, तब से वहीं पड़ी थी.
पहले ये प्रतिमाएं बॉक्स में पड़ी हुई थीं लेकिन जब मायावती की मूर्ति टूटी उसके बाद इन मूर्तियों को आनन-फानन में सबकी नजरों से हटाकर एक कूड़े के ढेर की तरफ फिकवा दिया गया.

जहां पर अब यह मूर्तियां सड़ रही है. कुछ मूर्तियां टूट चुकी है और कुछ के अवशेष अब नहीं रहे. लगभग अरबों की संपत्ति जो सरकारी संपत्ति है, वह इस तरीके से बर्बाद हो रही है.

करोड़ों रुपये मूर्ति ना लगने से बर्बाद:

राजधानी के पार्कों में लगवाने के लिए अनावश्यक खर्च हुए करोड रुपए की मूर्तियां लगाई गई लेकिन कुछ मूर्तियां नहीं लगाई जा सकी जिनकी कीमत भी करोड़ों में है. जिस जगह पर मूर्तियों को लगना था वह आज भी खाली पड़ी हैं.
मूर्तियाँ न लगने से सिर्फ पैसा ही बर्बाद हुआ जो की आम जनता का पैसा था.

 राजधानी लखनऊ के कुछ मूर्तिकारों से बात की गई तो पता चला कि ये सभी मूर्तियां संगमरमर के पत्थर से बनी है. इनमे हर मूर्ति की लागत लाखों में है. इन मूर्तियों की कीमत निकाल पाना मुश्किल है.
इन मूर्तियों की लंबाई 810 फीट की थी.
पिछले 10 साल से यह मूर्तियां कभी नाले के पास तो कभी झाड़ियों में उठा कर फेंक दी गयी. इन करोड़ों की प्रतिमाओं की सुध लेने वाला कोई नहीं.

कार्रवाई का इंतज़ार:

2008 में मायावती की मूर्ति तोड़े जाने के बाद काफी हंगामा हुआ. मामला सुर्ख़ियों में आया और मुद्दा बन गया. मूर्ति तोड़ने वालो के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा भी चल रहा हैं. लेकिन इन महा पुरुषों की प्रतिमाओं की ये हालत देख कर सवाल उठाना लाज़मी हैं कि एक तो करोडो का नुकसान करने वाले और दूसरा महापुरुषों की प्रतिमाओं के साथ इस तरह के व्यवहार पर कौन और किसके खिलाफ कार्रवाई करता हैं?

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