एमिटी विश्वविद्यालय ने छात्रों से फीस जमा करने के लिए दबाव बनाया, छात्रों में अफरा तफरी का माहौल.

 

 

पिछले कुछ महीनों में कोरोना नामक वैश्विक महामारी ने पूरे विश्व को अस्त व्यस्त कर दिया है। और हम सब जानते हैं कि भारत भी इस महामारी से लड़ने के लिए युद्ध स्तर पर दिन रात काम कर रहा है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वर्तमान स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था का हाल बदहाल हो गया।

इन सबके चलते शिक्षण संस्थानों एवं छात्रों को भी ढेरों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यूं तो छात्रों की समस्याओं का समाधान निकालने के लिए सरकार ने विभिन्न स्तरों पर निर्देश जारी किए हैं। ऐसे बहुत सारे उदाहरण देखने मिलते हैं जिनमें शिक्षण संस्थानों ने छात्रों से एवं उनके अभिभावकों से फीस जमा करने के लिए दबाव बनाया। इन्हीं सब के चलते यूजीसी ने एक दिशा निर्देश दिनांक 27 मई 2020 जारी किए जिनमें सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को यह कहा गया की फिलहाल छात्रों एवं उनके अभिभावकों पर फीस जमा करने का दबाव ना बनाया जाए एवं उनके लिए ऐसी व्यवस्था करी जाए जिसमें उनको फीस जमा करने का अतिरिक्त समय प्रदान हो और साथ ही साथ किस्तों में फीस जमा करने की सुविधा भी उन्हें मिल पाए।

परंतु पिछले कुछ दिनों में शिक्षण संस्थानों ने अचानक फीस की मांग रखकर छात्रों एवं उनके अभिभावकों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। ऐसा ही एक उदाहरण है एमिटी विश्वविद्यालय जोकि एक बहुत ही जाना माना एवं प्रतिष्ठित संस्थान माना जाता है। छात्रों में उस वक्त अफरा तफरी का माहौल पैदा हो गया जब अचानक उनके पास या खबर पहुंची कि उनको अपनी फीस तत्काल रुप से 12 से 13 दिनों के भीतर जमा करवानी है और अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनसे जबरन फाइन भी वसूला जाएगा। इतना ही नहीं अगर छात्र 1 महीने के भीतर अपनी फीस नहीं जमा करता तब उसका एडमिशन भी कैंसिल किया जा सकता है। यह मांग अचानक 29 मई 2020 को छात्रों तक इंटरनेट के द्वारा यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पहुंचाया। और उनको यह सूचित किया गया की छात्रों को 11 जून तक अपनी सारी फीस संस्थान में जमा करवानी पड़ेगी।
यहां यह जानना अति आवश्यक है की विश्वविद्यालय में पढ़ रहे छात्रों का एक बड़ा तबका ऐसा है जिनके अभिभावक या तो व्यापारी हैं या प्राइवेट संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारी जिनके पास लॉक डाउन के चलते आय का कोई अतिरिक्त माध्यम नहीं है। ऐसे में क्या यूनिवर्सिटी प्रशासन का अचानक यूं फीस की मांग करना क्या वाजिब है?
इसके अतिरिक्त यूनिवर्सिटी प्रशासन हर वर्ष अपनी फीस में 5% की वृद्धि कर देता है, और ऐसे वक्त पर जबकि पूरे देश की अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है क्या यह वृद्धि ठीक है?

असहाय छात्रों ने जब इस बारे में विश्वविद्यालय प्रशासन से बात की तो उनकी तरफ से कोई भी जवाब नहीं मिला।
2 दिन बाद जब छात्रों ने संगठित होकर एक मुहिम के रूप में अपनी समस्याएं एमिटी विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रोफेसर सुनील धनेश्वर से बात की तब उन्होंने छात्रों को सिर्फ एक सांत्वना दी की मैंने बात विश्वविद्यालय के उच्च अधिकारियों तक पहुंचा दिए एवं इसके आगे मैं कुछ नहीं कर सकता क्योंकि अंत में जो भी निर्णय लेना है वह निर्णय विश्वविद्यालय प्रशासन के शीर्ष पर बैठे पदाधिकारियों के द्वारा लिया जाएगा।

छात्रों ने अपनी सारी समस्याएं विश्वविद्यालय प्रशासन की हर एक अधिकारी तक एक एप्लीकेशन द्वारा पहुंचा दिए इसके अलावा भारत सरकार के विभिन्न मंत्रियों एवं उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री और इस मुद्दे से जुड़े हुए सभी प्रशासनिक अधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाने का काम किया। सिर्फ इतना ही नहीं छात्रों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का भी इस्तेमाल निरंतर किया जा रहा है जिसमें छात्र अपनी-अपनी समस्याएं लिखकर एमिटी यूनिवर्सिटी तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
यूनिवर्सिटी प्रशासन तक अपनी बात पहुंचाए 3 दिन हो चुके हैं परंतु अभी तक इसमें कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। छात्रों के बीच फिलहाल असमंजस का माहौल बना हुआ है और उनके अभिभावक बेहद चिंतित हैं कि आखिर किस प्रकार लाखों की फीस अचानक यू भरी जाएगी। अतः मामला संवेदनशील बना हुए है।

छात्रों की मांग कुछ इस प्रकार है-

१. यह की विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा फीस भरने की आखिरी तिथि 2 महीने बढ़ाकर एक नई तिथि की घोषणा की जाए।
२. यह की विश्वविद्यालय द्वारा असहाय छात्रों को किश्त में फीस भरने की अनुमति दी जाए।
३. यह की विश्वविद्यालय द्वारा हर वर्ष जो अतिरिक्त 5% की बढ़ोतरी होती है उसे माफ किया जाए।
४. यह की छात्रों की सुविधा के लिए अलग से एक इंटरनेट पोर्टल की व्यवस्था की जाए जिसमें छात्र अपनी समस्याएं विश्वविद्यालय प्रशासन तक पहुंचा सके।

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