जनपद ग़ाज़ीपुर का जिला अस्पताल वैसे तो अपनी अव्यवस्थाओं के लिये ही जाना जाता है। इस अस्पताल में एक एनेस्थिसिया के डॉक्टर जिनका काम मरीजों के उस अंग को सुन्न करना है। जिसका ऑपरेशन होना है पर वो गायनो का इलाज करते नजर आ रहे हैं। महिलाओं के सामान्य मर्ज की भी बात करें, तो उसके इलाज के लिये डॉक्टर को कम से कम फिजिसियन होना चाहिये और यदि महिला संबंधी बीमारी जैसे बच्चा न होना, बच्चे दानी में कोई समस्या आदि।

डिग्री किसी औऱ इलाज कर रहे है किसी और का

इस तरह की समस्या गायनो का डॉक्टर ही देख समझ और ठीक कर सकता है।

ऐसे में एक ऐसे डॉक्टर का महिला अस्पताल में महिलाओं का इलाज करना जिनके पास न तो गायनो की डिग्री है,

और न ही वो फिजिशियन हैं, जहां एक ओर महिलाओं की निजता का उल्लंघन हैं,

वहीं उनकी जिंदगी से भी खिलवाड़ इस अस्पताल में किया जा रहा है। हम बात कर रहे हैं

महिला अस्पताल में तैनात डॉक्टर गुलाब का जिनके पास बताया जाता है कि डिग्री तो एनेस्थिसिया की है

पर काम वो गायनो का कर रहे हैं। यही नही महिला अस्पताल में तैनात डॉक्टर मोटी रकम कमाने

के लिए महिलाओं को जो दवा लिखते हैं। वह जिला अस्पताल से बाहर की होती है

जिसमें उन्हें अच्छी खासा कमीशन मिल जाता है।

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अस्पताल में नहीं मिलती है दवाएं

गाजीपुर के जिला महिला अस्पताल के ओपीडी में बैठे ये है डॉ गुलाब।

वैसे अगर इनके पद की बात करे तो इनकी नियुक्ति इस अस्पताल में डिलेवरी के लिए आई महिलाओ को बेहोश करने के लिए है।

लेकिन ये तो धड़ल्ले से महिलाओं का इलाज कर रहे है।

ऐसा भी नही की महिलाएं इनसे इलाज कराना चाहती है।

क्योंकि महिलाए अपनी अंदरूनी समस्या कैसे एक पुरुष को बता व दिखा सकती है।

लेकिन मजबूरी में जहाँ कुछ महिलाए अपनी नार्मल समस्या बताती है तो

कुछ अपनी समस्या बताने के बजाय निजी डाक्टरों के पास चली जाती है।

वैसे ये जिनका इलाज करते है, उसको कंगाल करने से परहेज नही करते।

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क्योंकि इनके पर्चे में वो भी दवा बाहर से लिखी जाती है, जो अस्पताल में उपलब्ध हो।

और इनकी दवा सभी दुकानों पर भी नही मिलती बल्कि चुनिंदा एक ही दुकान पर मिलती है।

आज भी एक महिला जो अपने पति के साथ इलाज के लिए आई थी

उसने बताया कि वो मजबूरी में डॉ गुलाब को दिखाया है।

उन्होंने दवा लिखा जो करीब 2000 के आस -पास है और ये दवा अस्पताल में नही

बल्कि बाहर से मिली है। इसी दौरान इन दंपत्ति से सामाजिक कार्यकर्ता मीले और

जब इनकी समस्या के बारे में जाना तो उन लोगो ने इसकी

शिकायत सीएमएस से किया लेकिन कुछ भी समस्या का हल नही निकला।

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डॉ पल्लवी कभी- कभी आती है जिला अस्पताल में

चलिए अब आपको बता देते है की इस अस्पताल में मात्र एक महिला सीएमएस के साथ 3 पुरुष डॉक्टर है,

तो वही एक संविदा डॉक्टर पल्लवी है जो नाम के लिए कभी कभार अस्पताल आती है।

ऐसे में एक दिन पूर्व महिला बाल विकास व कल्याण समिति की सभापति व सदस्यों की पूरी टीम

इस अस्पताल का निरीक्षण किया था तब मीडिया के द्वारा महिलाओ की यह समस्या सभापति की सामने रखा गया

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तो उनके बोलने से पहले ही सीएमओ गिरीश चंद मौर्या ने सभापति को बताया कि

ऐसी बात नही है यहाँ महिलाओ का इलाज महिला ही करती है पुरुष नही बल्कि वे लोग अन्य कार्य के लिए है।

सभापति भी इसी जनपद की है जिन्हें सारी समस्या पता है बावजूद उनका कहना था कि

हमे ऐसी कोई शिकायत नही मिली है। अगर शिकायत मिलती है तो आगे देखेंगे।

ऐसे में आज जो यह तस्वीर देखने को मिली वह साफ बया करता है कि

यहाँ के अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों को महिलाओ की अस्मिता से कोई लेना देना नही

बल्कि उन्हें तो अपनी नौकरी और आने वाले बजट में से मोटी कमीशन से मतलब है।

सीएमएस ने बताया कि मैं नहीं सीएमओ ने यह बात कही थी।

मैं तो डाक्टरो की कमी के चलते किसी तरह से इन 3 डाक्टरों के सहारे अपना ओपीडी चलाने के प्रयास करती हूं।

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