अन्ना आन्दोलन के नेशनल कोर टीम मेम्बर प्रताप चन्द्रा नें अन्ना हजारे को खुला पत्र लिखा जिसमें लिखा है कि…

आदरणीय अन्ना जी,

आन्दोलन में लगे सदमे से बाहर आने में एक माह लगा खैर अब ठीक हूँ। आपने आन्दोलन के नेशनल कोर टीम में मुझे रक्खा इसके लिए आभार, परन्तु गलत को गलत और सही को सही कहना ही सीखा है। लिहाज़ा आन्दोलन के विषय में अपनी समझ आपको बताना जरुरी समझता हूँ तथा पारदर्शिता के लिए खुला पत्र लिख रहा हूँ।

हमें ऐसा लगता है कि आन्दोलन जिस प्रकार से शुरू हुआ, रणनिति बनी, कोर टीम बनी, आन्दोलन शुरू होकर जिस तरह ख़त्म हुआ वो पूर्व निर्धारित लगती है जिससे संशय होता है जिसका उल्लेख निम्न है।

नेशनल कोर कमिटी का गठन

कोर कमेटी में कई लोग शामिल हुए जैसे कर्नल दिनेश नैन, राकेश रफीक, दशरथ, सुशील भट्ट, भोपाल सिंह समेत कई जो सिर्फ आपके आसपास होने का भ्रम बनाकर करीब दिखने की कोशिश करते रहे, भले ही उनका सार्वजनिक जीवन और जनाधार लगभग शून्य है पर वो खुद को बड़ा बताकर, अन्य लोगों की शिकायत करके आपको सिर्फ भ्रमित करते रहे जिसका खामियाजा आन्दोलन को भुगतना पड़ा जबकि कर्मठ कार्यकर्ता संजय सिसौदिया, अशोक गौतम, विष्णु कान्त शर्मा आदि को नहीं लिया पर ये लोग काम करते रहे, हालाँकि ये आपका पूर्ण अधिकार है परन्तु अयोग्य को स्थान योग्य को बाहर रखने से ये प्रश्न खड़ा होता है।

आपके खिलाफ, आपके बारे में तमाम आरोप यहाँ तक कि भाजपा का एजेंट तक लाखों लोगों नें सोशल मीडिया और सड़कों पे कहा, पर कोई समर्थक उसपर नहीं आपपर यकीन किया परन्तु आपको किसी के बारे में शिकायत मिली, कुछ किसी के लिए कह भर दिया, मेल भेज दे तो आप उसपर यकीन करके उसे दूर कर देते हैं यहाँ तक कि स्पष्टीकरण भी नहीं मांगते, अगर कार्यकर्ता को नेता पे भरोसा है तो नेता को कार्यकर्ता पे क्यूँ नहीं भरोसा हो?

आन्दोलन की शुरुआत की खामी

कोर टीम की कई बैठकें हुई परन्तु संचालन टीम जिम्मेदारी आन्दोलन जानबूझकर देर करके आन्दोलन शुरू होने वाले दिन तय हुआ। जबकि पहले की मीटिंग में तय हुआ था। इससे अव्यवस्था रही और काम करनें वाले किनारे हो गए और बिल्ला बाटनें वाले सैकड़ो वालेंटियर को बिल्ला बाटते रहे पर मौके पर दर्जन भर भी वालेंटियर नहीं दिखे। अंततोगात्व किसी तरह व्यवस्था बनाई गई।

आन्दोलन की बनी रणनीति की अनदेखी

कोर कमिटी और किसान संगठनों नें सर्वसम्मत से प्रस्ताव पारित किया था और आपनें भी यही तय किया था कि संसद मार्च किया जायेगा। पर उसे दरकिनार करके सरकार का प्रस्ताव आनें पर आपने कोर टीम को बोला इसमें करेक्शन करके बताओ। करेक्शन करके कोर कमिटी नें आपको दिया पर कोई करेक्शन पूरा होना तो दूर बल्कि वही सुबह वाला प्रस्ताव मंत्री पढ़ डाले जिसे आपनें मान भी लिया। यहाँ तक कि मंच पर मनिन्द्र जैन के 6 माह में पूरा करनें की बात कहनें को भी दरकिनार कर दिया गया जो निराशाजनक था।

अनशन के टूटनें का तरीका दुर्भाग्यपूर्ण था

प्रधानमंत्री को लिखे 42 चिट्ठियों का मात्र जवाब था सरकार का प्रस्ताव जिसे आप अपनी मांग पूरी हुई बताकर अनशन तोड़ दिए। यहाँ तक कि भाजपा नेता फड़नवीस से नारियल पानी पीकर अनशन तोड़ा जबकि तय ये था कि बच्ची के हाथ से तोड़ेंगे। बच्ची बगल में बैठे इंतज़ार करती रही, जबकि आप कहते रहे थे कि आर पार लड़ेंगे, अंतिम सांस तक बैठेंगे फिर अचानक तोड़कर आन्दोलन ख़त्म करना हास्यास्पद बना दिया…और मजे की बात ये रही कि अनशन शुरू होने पर एक बार भी कोर टीम से बात नहीं की जबकि रोज मीडिया और आन्दोलन में तथाकथित बड़े लोगों के आनें पर बात करते रहे। ऐसे अनशन की समाप्ति सामजिक कार्यकर्ताओं को संदिग्ध बना गया और किसानों को तो मानो लकवा मार गया।

आन्दोलन के हानिकारक तत्व

आन्दोलन को धोखा उन लोगों नें दिया जो किसानों के फर्माबरदार बनकर लाखों किसानों के आनें का वादा व् दावा दोनों कर रहे थे और 31 किसान संगठनों की मीटिंग कराई थी। जिसमें से एक कक्का जी अकेले रोज अपनी ब्रांडिंग के लिए आकर भाषण देते रहते थे बाकी तो खुद भी नहीं आये, ऐसे धोखेबाज़ फोटोबाजों में कर्नल दिनेश नैन, राकेश रफीक, दशरथ, सुशील भट्ट, भोपाल सिंह अव्वल थे। जबकि मैं हमेशा रालेगण को बताता था कि सभी कोर टीम के मेम्बरों को यदि सौ सौ लोगों को लानें की बाध्यता कर दी जाये।

तो तस्वीर कुछ और होगी पर ये लोग अपनें को नेता स्थापित करानें के लिए दूसरों के लोग भी खुद के नाम गिनानें में लगे रहे। इन्होनें न सिर्फ समाज के साथ धोखा किया। बल्कि ये वो गन्दी मछली हैं जो पूरे तालाब को सिर्फ गन्दा ही नहीं करती बल्कि समूल नाश कर देती है। और छोटी मछली को खाने में हमेशा तत्पर रहती है…ये बात आप सहित सबको पता है। फिर भी उनकी चमचागिरी उन्हें श्रेष्ठ बनाये रहती है। इसी तरह जो जिस अनुपात में चाटुकारिता करता है। उसकी श्रेष्ठता तय होती है भले उसकी औकात 4 आदमी जोड़ने की भी न हो। 6000 एफिडेविट मिला रामलीला में पर ये लोग कहाँ हैं पता नहीं।

जनता का सवाल जिससे हम जूझते हैं

➡पार्टी में कोई न जाये इसका हलफनामा लेते हैं कहीं केजरीवाल न बन जाये, पर आप तो खुद ही ममता बनर्जी के पार्टी तृणमूल कांग्रेस के ब्रांड एम्बेसडर बने थे क्यूँ?
➡पार्टी बनाने के बाद दिल्ली के नंदनगरी में अरविन्द केजरीवाल बिजली क्रांति अनशन कर रहे थे वहाँ रात के 11 बजे गए थे, तो देश में तमाम सामाजिक मुद्दों हुए अनशन पर किसी और पार्टी के भी अनशन में कभी क्यूँ नहीं गए?
➡किसी स्क्रिप्ट की तरह आन्दोलन होता रहा, लोग किरदार निभाते रहे, आर पार की लड़ाई लड़ने की बात डायलाग बन कर रह गयी और पर्दा गिर गया….उक्त बाते संदेह पैदा करती हैं और मैच फिक्स जैसा लगता है।
➡मैंने हमेशा आपके अनुशाषित सिपाही के रूप में शिद्दत से तन, मन, धन से सामर्थ्यनुसार काम किया है और मुझे यकीन है आपको भी मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं रही है।
➡आज भी इस पत्र को मेरी वेदना, समीक्षा के रूप में लेना चाहिये मुझे पूरी उम्मीद है कि आप उक्त बातों को गंभीरता से समझेंगे। संशय/सवालों को जरुर बताएँगे अन्यथा उपरोक्त संशय सही माने जायेंगे क्यूंकि सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही से नहीं हटा जा सकता है। आपको जननायक जनता नें माना है।
आशा है आप तक ये पत्र पहुचाया जायेगा।

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