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सेवानिवृत्ति के बाद सजा के लिए पेंशन देने से इंकार नहीं कर सकती सेना

Army can not refuse to give pension for crime and punishment

Army can not refuse to give pension for crime and punishment

पूर्व सिपाही सतेन्द्र सिंह पाल ने सर्विस पेंशन के लिए पेंशन रेगुलेशन 1961 भाग-2 के पैरा-74 को संविधान के अनुच्छेद-300A के प्रतिकूल बताते हुए सेना कोर्ट से उसे निरस्त कराने में सफलता प्राप्त की एऍफ़टीबार के महामंत्री विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि सतेन्द्र सिंह पाल26 दिसम्बर 1986 में भर्ती हुआ उसके खिलाफ धारा-306 भारतीय दंड-संहिता के तहत मुकदमा दर्ज हुआ और उसे 12 मई 1989 को जेल हुई 16 सितम्बर 1989 को जमानत कराकर डियूटी ज्वाइन की बाद में उसे आई पी सी की धारा-304, भाग-1 के तहत सात साल की सजा और रु.1000 जुर्माना हुआ लेकिन जमानत कराकर दुबारा 2 अगस्त 1996 को ड्यूटी ज्वाइन कर ली।

याची के अधिवक्ता पीके शुक्ला ने जोरदार बहस करते हुए कहा कि डीएसआर 1987 के पैरा 423 के तहत केंद्र सरकार, थल-सेनाध्यक्ष एवं ब्रिगेड कमांडर को कार्यवाही करने को मिली शक्ति सेवानिवृत्त हुए सैनिक के मामले में वैकल्पिक है। जिसका प्रयोग नहीं हुआ और सैनिक की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद भेजी गई अधिवक्ता नोटिस 11 फरवरी 2006 के आधार पर अस्थाई-पेंशन जारी कर दी गई। लेकिन उसे 7 जून 2010 से 6 अप्रैल 2012 तक सजा काटनी पड़ी रिहा होने के बाद उसने 22 जून 2012 को पत्र भेजकर पेंशन सहित सभी लाभ 30 जून 2004 से मांगे लेकिन सेना और सरकार ने इनकार कर दिया। याची के अधिवक्ता पीके शुक्ला ने कहा कि सभी अपील के आर्डर 6 अप्रैल 2012 के आर्डर में समाहित हो गए। क्योंकि ‘लॉ आफ मर्जर’ का सिद्धांत लागू होगा जबकि यह आदेश सेवानिवृत्ति के छः वर्ष बाद जारी हुआ।

विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि सेना और भारत सरकार के अधिवक्ता नमित शर्मा ने जोरदार विरोध करते हुए पेंशन रेगुलेशन-2008, भाग-1 के पैरा 7, 8, 9 और पेंशन रेगुलेशन-1961 भाग-2 के पैरा-74 को उद्धरित किया लेकिन सेना कोर्ट ने उनकी इस दलील को को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहा कि रिटायर्मेंट के बाद सेना सैनिक की मालिक नहीं है रिजर्विस्ट को छोड़कर और रही बात रेगुलेशन की तो इसे संसद ने बनाया ही नहीं उसने अनुच्छेद 33 के तहत अधिकार में कटौती की नहीं और सेना अधिनियम की धारा-21 के सन्दर्भ में मूलभूत अधिकारों में सुधार किए गए हैं जिसमें केवल तीन चीजें शामिल हैं जिसमें पेंशन नहीं है सेना अधिनियम की धारा-25 में कटौती का अधिकार तो है लेकिन तनख्वाह नहीं काट सकते सेना अधिनियम की धारा-31 रिजर्विस्ट को विशेषाधिकार शामिल है वेतन की कटौती और पेंशन रोंकने का अधिकार नहीं है ऐसा करना चन्द्र किशोर झा, दिल्ली प्रशासन, धनञ्जय रेड्डी आयकर आयुक्त मुम्बई, प्रभाशंकर दूबे मामलों में दी गई सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था का उल्लंघन है।

विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि कोर्ट नें चैप्टर-6 की धारा 34 से 70 तक दिए गए अपराधों की सूची में सेवानिवृत्ति के बाद के अपराध को नहीं पाया, धारा-90 से 100 तक पेनल डिडक्शन तो है। लेकिन पेंशन इसमें नहीं है, धारा-191 से 193A तक केंद्र सरकार के अधिकार और गजेट में प्रकाशन संबंधी अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि पेंशन रेगुलेशन कानून नहीं है। कोर्ट ने कहा पेंशन संपत्ति है जिससे किसी कानून के आधार पर ही वंचित किया जा सकता है जो वजीर चाँद बनाम हिमांचल प्रदेश, विश्वनाथ भट्टाचार्या बनाम भारत सरकार की व्यवस्था है। इसके विपरीत कदम अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और बगैर न्यायिक क्षेत्राधिकार के पारित आदेश शून्य है कोर्ट नें पेंशन रेगुलेशन 2008, भाग-1 के पैरा 7,8,9 और पेंशन रेगुलेशन 1961, पार्ट-2 के पैरा 74 को अल्ट्रा-वायरस घोषित करते हुए छः माह के अन्दर पेंशन जारी करने का आदेश जारी किया।

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