Political History of Milkipur : अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास दिलचस्प और विविध रहा है। यह सीट उत्तर प्रदेश की उन महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों में से एक है, जहां कई प्रमुख दलों ने अपना प्रभाव छोड़ा है। इस सीट पर पिछले कई दशकों से विभिन्न दलों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला है।

प्रारंभिक राजनीतिक पृष्ठभूमि Political History of Milkipur

मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1967 में हुआ था। इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाई और तीन बार इस सीट से जीत दर्ज की। उस समय कांग्रेस का क्षेत्रीय राजनीति में बड़ा प्रभाव था, और शुरुआती चुनावों में कांग्रेस ने यहाँ अपना वर्चस्व बनाए रखा।

मित्रसेन यादव और कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव

मिल्कीपुर सीट का एक महत्वपूर्ण पहलू मित्रसेन यादव का राजनीतिक योगदान रहा है। मित्रसेन यादव ने चार बार कम्युनिस्ट पार्टी से और एक बार समाजवादी पार्टी से इस सीट पर जीत दर्ज की, जिससे यह साबित होता है कि वे इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में उन्होंने यहाँ लंबे समय तक सेवा की और अपनी जमीनी पकड़ मजबूत रखी। यह तथ्य कि वे पांच बार विधायक चुने गए, उनके राजनीतिक कौशल और क्षेत्र में जनसमर्थन को दर्शाता है।

समाजवादी पार्टी का उदय

समाजवादी पार्टी ने भी इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाई है। सपा के पांच विधायक यहाँ से चुने गए, जो कि इस पार्टी की व्यापक पकड़ और जनसमर्थन को दर्शाते हैं। समाजवादी पार्टी का ध्यान पिछड़े वर्ग और किसानों के मुद्दों पर रहा, जिसने इस क्षेत्र के मतदाताओं को प्रभावित किया।

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अन्य दलों का योगदान

मिल्कीपुर सीट पर भारतीय जनसंघ पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को एक-एक बार जीत मिली है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो विधायक यहाँ से चुने जा चुके हैं। भाजपा ने हाल के चुनावों में अपने विकास और हिंदुत्व के एजेंडे के आधार पर जीत हासिल की, जबकि बसपा ने दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के समर्थन से सीट पर कब्जा किया था।

उपचुनावों का इतिहास Political History of Milkipur

मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर यह तीसरी बार उपचुनाव हो रहा है। पहले दो उपचुनाव तब हुए जब इस सीट के निर्वाचित विधायक ने इस्तीफा दे दिया था या फिर किसी अन्य कारण से सीट खाली हो गई थी। उपचुनावों में भी हमेशा कड़ा मुकाबला देखने को मिला है, और यह सीट विभिन्न दलों के बीच राजनीतिक संघर्ष का केंद्र रही है।

प्रमुख घटनाक्रम और दलों का प्रभुत्व Political History of Milkipur

 1. कांग्रेस का वर्चस्व:
प्रारंभिक चुनावों में कांग्रेस पार्टी का मिल्कीपुर पर मजबूत प्रभाव था। 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस के उम्मीदवारों ने इस सीट पर कई बार जीत हासिल की, जब तक कि अन्य क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल यहां मजबूत नहीं हुए।

2. बहुजन समाज पार्टी (बसपा):
1990 के दशक में बसपा ने दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर फोकस कर अपनी पकड़ मजबूत की। इस दौरान मिल्कीपुर सीट पर बसपा के उम्मीदवारों ने भी चुनावों में जीत दर्ज की। बसपा के नेतृत्व ने इस क्षेत्र में पार्टी के प्रभाव को बढ़ाया, खासकर कांशीराम और मायावती के नेतृत्व में।

3. समाजवादी पार्टी (सपा):
1990 और 2000 के दशक में समाजवादी पार्टी ने इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाया। मुलायम सिंह यादव और बाद में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा ने पिछड़े वर्ग और मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ते हुए मजबूत स्थिति बनाई। सपा के उम्मीदवारों ने इस सीट पर कई बार जीत दर्ज की, और यह सीट सपा का गढ़ बन गई।

4. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा):
2017 के चुनावों में, जब भाजपा ने प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की, मिल्कीपुर भी उस लहर से अछूता नहीं रहा। भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे और विकास के मुद्दों के साथ यहां भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

मिल्कीपुर विधानसभा के अब तक के विधायक:

  1. 1967: रामलाल मिश्रा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
    रामलाल मिश्रा ने 1967 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर कटेहरी से जीत दर्ज की थी।
  2. 1969: हरिनाथ तिवारी (भारतीय जनसंघ)
    हरिनाथ तिवारी भारतीय जनसंघ के टिकट पर 1969 में विधायक चुने गए थे।
  3. 1974: धर्म चंद्र (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
    1974 में धर्म चंद्र ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी।
  4. 1977: मित्रसेन यादव (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी)
    1977 के चुनाव में मित्रसेन यादव ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर कटेहरी सीट जीती थी।
  5. 1989: बृज भूषण मणि त्रिपाठी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
    बृज भूषण मणि त्रिपाठी ने 1989 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी।
  6. 1991: मथुरा प्रसाद तिवारी (भारतीय जनता पार्टी)
    1991 में मथुरा प्रसाद तिवारी ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की थी।
  7. 1993: मित्रसेन यादव (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी)
    मित्रसेन यादव 1993 में फिर से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुने गए थे।
  8. 1996: समाजवादी पार्टी
    1996 में समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर कब्जा किया था, हालांकि नाम की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  9. 1998: राम चंद्र यादव
    राम चंद्र यादव 1998 में विधायक बने थे।
  10. 2002: आनंद सेन यादव
    आनंद सेन यादव ने 2002 में जीत दर्ज की थी।
  11. 2004: राम चंद्र यादव
    2004 में फिर से राम चंद्र यादव विधायक चुने गए थे।
  12. 2007: आनंद सेन यादव (बहुजन समाज पार्टी)
    2007 में आनंद सेन यादव बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीते थे।
  13. 2012: अवधेश प्रसाद (समाजवादी पार्टी)
    2012 में समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद विधायक चुने गए।
  14. 2017: बाबा गोरखनाथ (भारतीय जनता पार्टी)
    बाबा गोरखनाथ ने 2017 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की।
  15. 2022: अवधेश प्रसाद (समाजवादी पार्टी)
    2022 के विधानसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद फिर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए। 2024 में सांसद बनने के बाद अवधेश प्रसाद ने यह सीट छोड़ दी थी। UP Election 2022 : मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव 2022 नतीजे

हालिया चुनाव परिणाम

मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हाल के चुनावों में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला है।

2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के उम्मीदवार ने इस सीट पर जीत हासिल की थी, जो भाजपा की प्रदेशव्यापी जीत का हिस्सा थी।
2022 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। सपा ने जातिगत समीकरण और क्षेत्रीय विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भाजपा को कड़ी टक्कर दी।

मौजूदा परिदृश्य

मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर फिलहाल समाजवादी पार्टी का प्रभाव है, लेकिन भाजपा ने भी यहां अपना आधार मजबूत किया है। आगामी चुनावों में भी यह सीट दोनों दलों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा का केंद्र बनी रहेगी।

मिल्कीपुर विधानसभा से समाजवादी पार्टी उम्मीदवार अजीत प्रसाद का राजनीतिक सफर

मिल्कीपुर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास काफी विविध और दिलचस्प रहा है। विभिन्न दलों ने इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाया है, लेकिन वर्तमान में यह समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच एक महत्वपूर्ण मुकाबले का केंद्र है। स्थानीय मुद्दों, जातिगत समीकरणों और विकास कार्यों पर जोर देकर विभिन्न दल इस सीट पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करते हैं।

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