सनातन धर्म के सप्तपुरीयों में प्रमुख, बौद्ध, जैन, इस्लाम धर्म से जुड़े हुए अवशेषों को अपने में समेटे अयोध्या में भय और अनहोनी की आशंका के बादल छाए हैं। अयोध्यावासियों ने इसी के मद्देनजर कई दिनों पहले ही राशन पानी जमा कर लिया। लोगों की आंखों में अनिश्चितता भरी है, चेहरे पर भय का डेरा है और हाथ महफूज अयोध्या के लिए अपने-अपने तरीकों से उठे हुए हैं। राम मंदिर मुद्दे पर केंद्र पर दबाव बनाने और दिखाने के लिए विश्व हिंदू परिषद के धर्म संसद कार्यक्रम में लाखों राम भक्तों का हुजूम पहुंच रहा है। रामनगरी छावनी में तब्दील हो चुकी है। यह छावनी संतों की नहीं, खाकी पहने जवानों की है। आदिकवि वाल्मीकि, कबीर, गुरु नानक और तुलसी के राम जिस भूमि पर ‘ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियाँ’ की लीला करते थे, वहां जवानों के बूटों की थाप और मंदिर निर्माण के लिए अधीर जनसमूह के कदमों की चाप की गूँज है। देश ही नहीं विदेशों की मीडिया और सरकारों की निगाहें एक बार फिर रामलला विराजमान बनाम बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर गड़ी है। देश के सबसे पुराने विवाद व मुकदमे की शुरुआत साल 1885 में महंत रघुवर दास के मंदिर निर्माण का वाद फैजाबाद के स्थानीय अदालत में दायर करने से प्रारम्भ हुई थी।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]पुलिस की अभेद्य सुरक्षा के चलते रामनगरी में पर नहीं मार सकता परिंदा[/penci_blockquote]
अयोध्या में धर्म सभा के प्रस्तावित कार्यक्रम को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के चुस्त दुरुस्त होने का दावा कर रहे गृह विभाग व पुलिस प्रशासन के लिए सुबह का सूरज चुनौती भरा हैं। अधिग्रहीत परिसर से सटा क्षेत्र हाई सिक्योरिटी जोन में तब्दील हो चुका है। शासन स्तर से एडीजी टेक्नीकल आशुतोष पांडेय ब्लू व यलो जोन तथा डीआईजी सुभाष सिंह बघेल विहिप के समस्त कार्यक्रमों व रेड जोन के प्रभारी समेत 6 एसपी स्तर के पुलिस अधिकारी राम की नगरी की निगाह बानी करने में लगे हैं। शांति व्यवस्था तथा भीड़ को कंट्रोल करने के लिए जिला पुलिस के अतिरिक्त 5 एसपी,10 डीएसपी, 160 इंस्पेक्टर, 700 कांस्टेबल, 42 कंपनी पीएसी तथा 5 कंपनी आरएएफ तथा एटीएस के कमांडो भी अयोध्या में तैनात हैं। पूरे क्षेत्र पर ड्रोन कैमरे और सीसीटीवी कैमरों का ज़ाल बिछ चुका है।। सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से अयोध्या को 9 जोन, 16 सेक्टर व 30 माइक्रो सेक्टर में बाँटा गया हैं।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]सुप्रीम कोर्ट लगातार दे रही तारीख पे तारीख[/penci_blockquote]
बता दें 133 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी जगत के पालनहार देश की सुप्रीम अदालत में एक अदद तारीख की प्रतीक्षा में हैं। बीजेपी को खाद- पानी देकर केंद्र से लेकर 18 से अधिक राज्यों में सत्ता का सुख भोग करा रहे संघ और विहिप ने सोची समझी रणनीति का सहारा लिया है। जनवरी में सुनवाई की दो टूक बात कह चुके सुप्रीम कोर्ट के शब्दों को पकड़कर ही संघ को मंदिर आंदोलन का सुअवसर फ़िर प्राप्त हुआ है। राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक भले ही सीधे तौर पर विहिप के धर्म संसद में शामिल ना होने की बात कहते हो लेकिन जानकारों की मानें तो यह योजना मोदी और संघ प्रमुख की साझा रणनीति का ही हिस्सा है। केंद्र की मोदी सरकार को नोटबंदी के बाद से ही लगातार गोपनीय इनपुट मिल रहे हैं कि हवा का रुख बदल रहा है। एससीएसटी एक्ट के अध्यादेश का खेल मोदी ने इसी हवा को तूफान बनने से रोकने के लिए खेला था, जिसे संघ ने लपक लिया और राम मंदिर का राग एक बार फिर सुस्त पड़ चुके आंदोलन में कारगर साबित हो रहा है।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]राम मंदिर लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए करेगा संजीवनी का काम [/penci_blockquote]
दशकों से राम मंदिर के लिए व्याकुल भारतीय जन समुदाय का एक वर्ग ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की नीति पर केंद्र सरकार को घेरने में लगा है। यही बहाना मोदी के आगामी लोकसभा चुनाव में संजीवनी का काम करेगा। यही वज़ह है कि भाजपा की इस चाल से बखूबी वाकिफ़ विपक्ष 1992 वाली गलती दोहराना नहीं चाहता। जिससे भाजपा को दोबारा 2019 में अमृतपान का मौका मिल सके। इसीलिए विपक्ष के तमाम बयान बहादुरों को मौन व्रत दिलाकर समूचा विपक्ष तेल और उसकी धार पर नजर गड़ाए है। खुफिया विभाग की रिपोर्टो को अगर माना जाए तो विहिप की धर्म संसद में दो लाख से अधिक लोगों के हिस्सा लेने की सूचना है। विश्व हिंदू परिषद द्वारा राम मंदिर निर्माण के आगामी रणनीति का खुलासा और केंद्र को अध्यादेश की चेतावनी का मंच सज चुका है।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]दबाव बढ़ाने में कारगर हथियार के तौर पर भीड़ करेगी काम[/penci_blockquote]
रामभक्त जनसमूह की भीड़ दबाव बढ़ाने में कारगर हथियार के तौर पर इस्तेमाल की जाएगी। देश का सुप्रीम कोर्ट भी धर्म संसद के गतिविधियों पर अपने कान- आँख खोल कर बैठा है। जिसकी प्रतिक्रिया देश की सबसे बड़ी अदालत किसी ना किसी रूप में अवश्य देगी। इसीलिए भाजपा कैंप की रणनीति के अनुसार सरकार को उचित दूरी बनाकर चलने की सीख दी गई है। फायर ब्रांड, मंदिर आंदोलन से ही फलेफूले सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ इन्हीं वजहों से राम जी जब चाहेंगे मंदिर बन जाएगा का भजन गा रहे हैं। देश में किसी भी प्रकार के संवैधानिक गरिमा से छेड़छाड़ का खामियाजा 1992 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को कुर्सी गंवा कर चुकानी पड़ी थी। बहरहाल राम मंदिर में हो रही हीला हवाली से अधीर रामभक्त अब किसी बहकावें में आने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। जय श्री राम के नारों से गुंजायमान अयोध्या में एक उतावलापन और आक्रोश का मिला जुला संगम सा हो गया।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]क्या कहता है कानून [/penci_blockquote]
30 सितंबर 2010 के फैसले में उच्च न्यायालय लखनऊ खंडपीठ के तीन न्यायाधीशों धर्मवीर शर्मा, सुधीर अग्रवाल तथा एस ए खान की खंडपीठ ने टाइटल डिस्प्यूट (सिविल वाद) के आधार पर राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद मामलें के ऑपरेटिव पोर्शन के फैसले में 2.77 एकड़ अधिग्रहित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने (हिंदू महासभा को राम मंदिर बनाने तथा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा) का फैसला दिया था। जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने अपने अलग से दिए फैसले में विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था। विधि जानकारों के अनुसार सिविल प्रक्रिया के टाइटल डिस्प्यूट मामलों में संपत्ति का बंटवारा या निर्विवाद स्वामी का निर्णय अदालत के सदविवेक तथा सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार होता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश महत्वपूर्ण होगा। जिसे अध्यादेश तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति के आधार पर ही पलटा जा सकता है। जैसा कि पूर्व में भी सोमनाथ मंदिर निर्माण, शाहबानो प्रकरण तथा एससी- एसटी मामले में केंद्र सरकारों ने किया है।

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