आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति भारतवर्ष ही नहीं विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद जैसी पुरातन चिकित्सा पद्धति से जुड़ी लुप्तप्राय विधायें व चिकित्सा उपक्रम को वापस लोगों के आम जीवन में उपयोगी बनाया जाये। ये बातें  केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के महानिदेशक प्रोफेसर वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहीं। प्रोफेसर धीमान क्षेत्रीय आयुर्वेद नेत्र रोग अनुसंधान संस्थान द्वारा ‘नेत्र रोगों पर अनुसंधान नीति निरूपित करने के लिये विचार मंथन कार्यशाला’ में बतौर मुख्य अतिथि के तौर पर सम्बोधित कर रहे थे।

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उपचार पद्धति की दी जानकारी

  • कार्यक्रम के शुभारम्भ में भगवान धनवंतरि के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।
  • प्रोफेसर धीमान ने नेत्र रोगों के आवश्यक अनुसंधान व इससे आमजनों को होने वाले व्यवहारिक लाभ पर प्रकाश डाला।
  • इसी क्रम में सीसीआरएएस के उपमहानिदेशक डॉ. एन श्रीकांत ने कहा कि  वैसे तो नेत्र रोगों के उपचार में आयुर्वेद में कई बेहतर दवायें हैं।
  • मगर जहां पर शल्य चिकित्सा की जरूरत होगी वो वही पद्धति कारगर होगी।
  • इस मौके पर केरल से डॉ. पीके शांता कुमारी व गुजरात के प्रोफेसर हरिद्रा दवे  भी पहुंचे।
  • आईएमएस बीएचयू के प्रोफेसर मुखोपाध्याय ने नेत्र रोगों के अनुसंधान व इससे होने वाले बेहतर उपचार पद्धति के बारे में जानकारी दी।

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  • अनुसंधान संस्थान के प्रभारी व सहायक निदेशक डॉ. जीके स्वामी ने सभी विशिष्ट आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।
  • जबकि मंच का सफलतापूर्वक संचालन संस्थान के अनुसंधान अधिकारी डॉ. संजय कुमार सिंह ने किया।

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