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लखनऊ: जमीनी मामले निपटाने में बीकेटी फिसड्डी, 4832 मामले अब तक लंबित

bakshi ka talab

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यूपी की राजधानी लखनऊ से सटे बक्शी का तालाब तहसील का हाल ऐसा है कि भू-माफिया आ जाएं तो बैठिए साहब अभी फाइल लाता हूं और वहीँ गरीब आ जाए तो अगले महीने आना, अभी फुर्सत नहीं है। इस तरीके की भाषा शैली का प्रयोग बीकेटी तहसील में आए दिन देखने को मिल रही है। लेखपाल कानूनगो बगैर सुविधा शुल्क लिए बिना ना तो पैमाइश करने जाते हैं ना ही खसरा उपलब्ध कराते हैं। लेखपाल से एक खसरा लेने के लिए गरीबों को महीनों दौड़ना पड़ रहा है। कभी लेखपाल मिलते नहीं अगर मिल भी जाते हैं तो डांट कर दोबारा आने की बात कहते हैं।

समस्याओं में हो रहा लगातार इजाफा :

बीकेटी में होने वाली अपराधिक घटनाओं में हर चौथी घटना राजस्व जमीनी मामले से जुड़ी हुई है। राजस्व वादों को निपटाने के लिए जिम्मेदार मौके पर पहुंचकर सत्यापन ही करते हैं इसीलिए बीकेटी में राजस्व वादों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी और इजाफा पाया जा रहा है। राजस्व विभागों के अफसरों को जमीनी विवाद देखते ही मामले को सरकाना चालू कर देते हैं।

तहसील में एसडीएम की लापरवाही छोटे छोटे मामलों को निस्तारण में टरका देने की आदत देखी जा रही है। ग्रामीणों का आरोप है कि जब से नए एसडीएम साहब आए तब से बराबर दौड़ रहे हैं। ना तो भूमि की पैमाइश हो रही है, ना ही हकबरारी साहब मिलते ही नहीं कभी कदार साहब मिल भी जाते हैं तो मामले को टरका दिया जाता है इसके चलते जमीनी तगड़ा इजाफा देखा जा रहा है।

समाधान दिवस को कर्मचारियों ने बनाया मजाक :

जमीनी मामलों को निपटाने के लिए थाना दिवस व तहसील दिवस का आयोजन एक मात्र रस्म अदायगी बनकर रह गया है। समाधान दिवस पर जिम्मेदार आते नहीं और अगर आ भी गए तो मौके पर कोई भी भूमि संबंधित मामले को निपटाना नहीं चाहता। बस अपना हाथ खींचने व जूठी आंख्या लगाने में व्यस्त नजर आ रहे हैं जिसके कारण बीकेटी तहसील मैं जमीनी वादों भूमि संबंधित विवादों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी इजाफा पाया जा रहा है। बीकेटी क्षेत्र में मारपीट वाद विवाद की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है जिसका कारण हर चौथा प्रकरण जमीनी राजस्व वाद से जुड़ा हुआ है।

टेलीफोन पर बोले ज़िम्मेदार :

इस पर तहसीलदार बख्शी का तालाब संतोष कुमार सिंह ने कहा कि भूमि संबंधित मामलों में एक पक्ष की तहरीर के आधार पर निर्णय लेना उचित नहीं है। जब तक कि दूसरे पक्ष की बात ना सुन ली जाए। जमीनी मामलों में दोनों पक्ष की बात सुनने के बाद और मौका मुआयना कर निर्णय लेना उचित और गवाहों की मौजूदगी में उचित निर्णय हो पाता है।

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