रुपये में गिरावट का दौर जारी है और इसके कारण भारत की अर्थ व्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ रहा है लेकिन डॉलर की तुलना में रुपये में आई गिरावट का असर केवल भारतीय अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि भारतीय उद्योगों खास कर बनारसी साड़ी उद्योग में खासा देखने को मिल रहा है.

बढ़ते डॉलर के चलते कच्चा माल हुआ महंगा: 

डॉलर की तुलना में भारतीय रूपया में लगातार गिरावट आती जा रही है, जिससे भारतीय बनारसी साड़ी उद्योग पर गहरा असर पद रहा है. रुपये के कमजोर होने के चलते सूत के दामों में वृद्धि हो गयी है.

इसके कारण बनारसी साड़ियों की कीमत भी बढ़ गयी. ऐसे में इनके निर्यात और विक्रय में कमी होना लाज़मी है.

वहीं पहले से आर्डर प्राप्त कर चुके सैकड़ों कारोबारियों को तो अब से ज्यादा परेशानी हो रही है. क्योंकि उनके लिए तो अब ये घाटे का सौदा बन चुका है.

[penci_blockquote style=”style-3″ align=”none” author=””]गौरतलब है कि बनारसी साड़ी में इस्तेमाल होने वाला सूत जापान से आयात होता है. डॉलर का दाम बढ़ने से सूत महंगा हो गया है। इससे साड़ी बनाने में लागत बढ़ गई है।[/penci_blockquote]

जापान से आयात होता है सूत:

बता दें कि पिछले छह महीने में सूत के दाम में 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. जिसके चलते विदेशी बाजार में एक साड़ी की कीमत दस से पंद्रह डॉलर बढ़ गई।

डॉलर की मजबूती और रुपए की कमजोरी से कच्चे धागों की कीमतों में भी लगातार इजाफा हो रहा है।

वहीं विदेश से मिले साड़ी के पुराने ऑर्डर को पुराने दर पर ही देने का लगातार दबाव भी साड़ी कारोबारियों पर बन रहा है।

पुराने आर्डर को पूरा करना कारोबारियों के लिए घाटे का सौदा:

साड़ी निर्माण में प्रयोग होने वाला कच्चा माल जैसे सूत पहले कारोबारियों को 4 हजार रुपये तक में मिल जाता था लेकिन अब क्योंकि डॉलर महंगा हो गया है.

इसके कारण वहीं सूत 5 हजार रुपये से ज्यादा की कीमत पर कारोबारियों को खरीदने की नौबत आ गयी है.

बनारसी साड़ी की कीमत 10 से 15 डॉलर बढ़ी:

इससे साड़ी की कीमत में भी इजाफा हुआ. विदेशी बाजार में एक साड़ी की कीमत दस से पंद्रह डॉलर तक बढ़ गयी है.

अब जिन कारोबारियों ने पहले से आर्डर ले रखा है उनपर उसी दाम में माल निर्यात करने का दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन कच्चे माल के महंगे होने के चलते कारोबारी के लिए साड़ी पुराने दाम पर देना नुकसान दायक हो गया है.

बनारसी साड़ी कारोबारियों को मुनाफा तो हो नहीं रहा लेकिन सामान के निर्यात में खुद की जेब से पैसा लगाना पड़ रहा है. जिसके चलते कारोबारियों को साफ़ तौर पर 10 से 20 डॉलर तक का नुक्सान भुगतना पड़ रहा है.

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