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मिर्ज़ापुर में बना घंटाघर सरकारी उपेक्षा का हो रहा शिकार

भारत का बेजोड़ कहा जाने वाला उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में बना घंटाघर सरकारी उपेक्षा का शिकार हो गया है. करीब डेढ़ सौ साल पूर्व बने घंटाघर के मीनार पर लगी गुरुत्वाकर्षण बल से चलने वाली लन्दन की घड़ी भी उतनी ही बेजोड़ है .सैकड़ो साल नगर को जगाने व समय बताने वाली घड़ी का तीन सौ किलो का घंटा व बीस फीट लम्बे पेंडुलम वाली घड़ी भी रख रखाव के अभाव में कबाड़ बन कर रह  गया है.

जनता के चंदे से करीब डेढ़ सौ साल पूर्व पत्थरों पर बेजोड़ कलाकृति व उत्कृष्ट नक्काशी के कारण नगर के मध्य पत्थरों को तरासकर बना आलीशान घंटाघर की इमारत एशिया का बेजोड़ इमारत के नाम से विख्यात है .दरकते इमारत को संरक्षित रखने की कवायद जुबानी वर्षो से की जा रही है.

 

मजदूरों ने अपनी कला को छेनी हथौड़ी के द्वारा पत्थरों पर उकेरा

मिर्ज़ापुर नगर के मध्य महीन नक्काशीदार पत्थरों को तरास कर इमारत बनाने का काम 1886  में आरम्भ हुआ.सैकड़ो मजदूरों ने अपनी कला को छेनी हथौड़ी के द्वारा पत्थरों पर उकेरा. घंटाघर के निर्माण का काम. ठेकेदार प्रभाकर लाल दुबे की देखरेख में छ: वर्ष तक चला. इस बेमिशाल इमारत के निर्माण में  (18) अठारह हजार रूपये का खर्च आया. धन के अभाव में इमारत के निर्माण का काम रुकने के कगार पर पहुंचने वाला था तब नागरिकों ने चंदा करके भव्य भवन के बनवाने में अपना खुले हाँथो से सहयोग किया.

मीनार के चारो ओर लगे घड़ी को तत्कालीन सदस्य ने दान किया था .कहा जाता है कि पुरे भारत वर्ष में इतना सुन्दर घंटाघर कही नही है. कारीगरों की मेहनत और नगर पालिका के तत्कालीन सदस्यों के प्रयास से खड़ा तीन मंजिला. एक सौ फीट का घंटाघर सर्वश्रेष्ठ होने का गौरव प्राप्त कर रहा है.भवन में संचालित नगर पालिका परिषद के कार्यालय को अन्यत्र स्थानांतरित करने की योजना बनाई जा रही है.इसके बाद आलिशान भवन को संग्रहालय का रूप दिया जायेगा.

डेढ़ सौ साल से समय बता रही घड़ी अपने आप में बेमिसाल

डेढ़ सौ साल से अधिक समय तक लोगों को समय बताने वाली घड़ी अपने आप में बेमिशाल है. मीनार के चारो तरफ लगी चार घडियो की मशीन व पेन्डुलम एक है .20  फीट लम्बे पेन्डुलम के घंटे  का वजन तीन सौ किलो है. इस घड़ी
में कोई जटिल उपकरण व स्प्रिंग नही है .यह घड़ी गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा चलती है. 1866  में लन्दन के मेसर्स  मियर्स  स्टेंन बैंक कम्पनी की बनाई घड़ी आज गूंगी हो गयी है.

विशाल घंटे वाले इस घड़ी की आवाज 20  किलोमीटर चतुर्दिक परिधि में सुनाई देती थी. घड़ी की मान्यता थी कि  जब घर – घर में घड़ी नही थी तब सरकारी कर्मचारी एवं व्यापारी  इस घड़ी के गूजने वाली  आवाज को सुनकर समय जानते थे और कामकाज शुरू करते थे.सौ वर्ष से अधिक समय तक लोगों को जगाने व समय बताने वाली घंटाघर की घड़िया बंद पड़ी है. बेजोड़ घड़ी को चालू करने के नाम पर अधूरा काम करने वाले कारीगर को बुलावा भेजा गया है.

धरोहर बन चुकी इमारत ओर उसकी घड़ी का निर्माण जनता के सहयोग से होने के साथ ही यह जनपद के दिल की धड़कन भी है. बेजोड़ इमारत की देखभाल में बरती जा रही प्रशासनिक उदासीनता से लोगों में नाराजगी है. नगर में सफाई की व्यवस्था संभालने वाले नगर पालिका का इसी भवन में कार्यालय चल रहा है जिले की शान को बचाने की जरूरत है 

घड़ी अपने दिन लौटने का इंतजार कर रही है

पत्थर पर बेलबूटो से सजी बेजोड़ शैली में बना इमारत एवं दुर्लभ घड़ी को संजोये घंटाघर वक्त के थपेड़ो से मर्माहत है.धरोहर  बन चुके इमारत और उसकी घड़ी अपने दिन लौटने का इंतजार कर रहे है.पुरातत्व विभाग  ने जन सहयोग  से बने इस इमारत को संरक्षित करने के लिए प्रयास किया था, परउसकी माँग कागज की फाईलो में दब कर रह गया है .पूर्वजो ने दान करके गुलाम भारत में इसे बनवाया पर नई पीढ़ी आज़ाद होने के बाद भी अपनी धरोहरों के प्रति उदासीन बनी है.अब प्रश्न उठता है कि आखिर इस धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास कब होगा?

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