उत्तर प्रदेश के गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव की सुबह से शुरू हुई मतगणना पर आखिरकार विराम लग गया। भाजपा की जीत के सारे दावे उस वक्त खोखले साबित हुए जब समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ला को भारी मतों से पराजित कर दिया। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की जीत से पूरे प्रदेश के सपाइयों में खुशी की लहर दौड़ गई है। सपाई एक दूसरे को मिठाई खिलाकर ढोल नगाड़े बजाकर एक दूसरे को जीत की बधाई दे रहे हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रवीण को जीत की बधाई दी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी सपा प्रत्याशियों को जीत की बधाई दी है।

एनआईईटी ग्रेटर नोएडा से बीटेक हैं प्रवीण

गोरखपुर में उपचुनाव आगे बढ़ा तो बसपा ने भी प्रवीण निषाद को समर्थन का ऐलान कर दिया। धीरे-धीरे मुकाबला बीजेपी बनाम प्रवीण निषाद होता गया और सीएम योगी द्वारा ताबड़तोड़ जनसभाओं, प्रत्याशी उपेंद्र दत्त के लिए वोट मांगने का असर जनता पर नहीं पड़ा। आखिरकार प्रवीण निषाद ने बीजेपी के कई दिग्गजों को पसीना छुड़ाते हुए जीत हासिल कर ली। प्रवीण कुमार निषाद की अभी तक राजनीतिक तौर पर पहचान उनके पिता निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद के पुत्र के रूप रही। प्रवीण कुमार निषाद उर्फ संतोष ने वर्ष 2009 में एनआईईटी ग्रेटर नोएडा से बीटेक (मैकेनिकल ब्रांच) की है. यही नहीं वह इंडो एलोसिस इंडस्ट्रीज लिमिटेड भिवाड़ी, राजस्थान में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर तकरीबन तीन वर्षों तक काम कर चुके हैं। इस नौकरी के दौरान ही उन्होंने सिक्किम मनीपाल यूनिवर्सिटी से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में एमबीए की डिग्री हासिल की।

प्रवीण के परिवार में हैं तीन भाई

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय कुमार निषाद को 3 पुत्र और एक पुत्री हैं। पहले पुत्र डा.अमित कुमार निषाद दिल्ली में प्रेक्टिस करते हैं। वहीं प्रवीण कुमार निषाद उर्फ संतोष निषाद दूसरे पुत्र हैं। तीसरे पुत्र इंजीनियर श्रवण कुमार निषाद भी राजनीति में सक्रिय हैं। राजनीति में आने के बाद प्रवीण कुमार निषाद ने राष्ट्रीय एकता परिषद और अन्य कई संगठनों में जिम्मेदारी निभाई। 2016 में निषाद पार्टी बनने के बाद से ही प्रवीण इस प्रदेश प्रभारी की हैसियत से जिम्मेदारी संभाल रहे थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वीकार की हार

उधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी लोकसभा उपचुनाव में पार्टी की हार स्वीकार कर ली है। सीएम योगी ने कहा कि जनता ने जो फैसला दिया है, उसे हम स्वीकार करते हैं। हमारे लिए ये परिणाम अप्रत्याशित हैं। हम लोगों ने कड़ी मेहनत की थी लेकिन कहां कमी रह गई। हम जल्द ही इसकी समीक्षा करेंगे। सीएम ने कहा मैं गोरखपुर और फूलपुर से विजयी प्रत्याशियों को बधाई देता हूं और विश्वास करता हूं कि वे जनता के लिए काम करेंगे। इस दौरान विजयी प्रत्याशियों को बधाई दी। साथ ही कहा कि प्रदेश के अंदर राजनीतिक सौदेबाजी का जो दौर शुरू हुआ है, उसे हम रोकने का हम रणनीति बनाकर प्रयास करेंगे।

प्रवीण कुमार का यह था पहला चुनाव

29 साल के प्रवीण कुमार निषाद, समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में यह चुनाव लड़ रहे थे। पिछले साल उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई और आदित्यनाथ योगी को उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया जिसके बाद गोरखपुर लोकसभा सीट खाली हो गई थी। इस सीट पर अब उप-चुनाव के नतीजे आए हैं और जो शख़्स लोकसभा में गोरखपुर की नुमाइंदगी करेगा वो भी एक युवा चेहरा ही है। इस सीट पर ख़ुद यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी थी।

चुनाव में नगदी कम थी लेकिन वोटरों का समर्थन ज्यादा

जब गोरखपुर उप-चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो निषाद बहुल इस सीट पर उनकी सक्रियता को देखते हुए सपा ने निषाद पार्टी को विलय का प्रस्ताव दिया था, लेकिन संजय कुमार निषाद ने ऐसा करने से मना कर दिया। बहरहाल इसके बाद संजय निषाद ने पीस पार्टी के साथ तालमेल बरक़रार रखते हुए अपना सफ़र जारी रखा। बाद में समाजवादी पार्टी ने उनको तवज्जो देते हुए उनके बेटे प्रवीण कुमार निषाद को अपने प्रत्याशी के तौर पर इस चुनाव में उतारा। अपनी उम्मीदवारी के समय दिए गए हलफ़नामे में प्रवीण कुमार ने अपने पास कुल 45,000 रुपये और सरकारी कर्मचारी पत्नी रितिका के पास कुल 32,000 रुपये नकदी होने का ब्यौरा दिया था। उनके पास नकदी भले ही कम हो लेकिन अब उन्होंने समर्थकों और वोटरों की बड़ी संपत्ति हासिल कर ली है।

गलत साबित हुए भाजपा के सभी दावे

मतगणना से पहले तक बड़े राजनीतिक पंडित और विश्लेषक भी यह मानकर चल रहे थे कि आख़िरकार ये सीट भाजपा के खाते में ही जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब इसे साल 2018 का सबसे बड़ा उलटफेर कहा जा रहा है। पहले राउंड की मतगणना के बाद से ही नतीजे समाजवादी पार्टी के पक्ष में जाते दिख रहे थे। हालांकि काउंटिंग के आख़िरी चरण में एक बार को भाजपा और सपा के बीच वोटों का अंतर कम होता दिखा था। लेकिन समाजवादी पार्टी ने अंतत: इस सीट पर कब्ज़ा कर लिया।

प्रवीण निषाद को विरासत में मिली राजनीति

प्रवीण निषाद के पिता, डॉक्टर संजय कुमार निषाद राष्ट्रीय निषाद पार्टी के संस्थापक हैं। साल 2013 में उन्होंने इस पार्टी को खड़ा किया था। उस वक़्त प्रवीण कुमार निषाद उस पार्टी के प्रवक्ता बनाए गए थे। साल 2008 में बी.टेक करने के बाद 2009 से 2013 तक उन्होंने राजस्थान के भिवाड़ी में एक प्राइवेट कंपनी में बतौर प्रोडक्शन इंजीनियर नौकरी की थी। लेकिन 2013 में अपने पिता के राजनैतिक सपनों में रंग भरने के लिए वो वापस गोरखपुर लौट आए। उन्हीं की तरह उनके पिता डॉक्टर संजय कुमार निषाद भी राजनीति में आने से पहले कई अन्य कार्यों से जुड़े रहे हैं। प्रवीण कुमार निषाद के पिता डॉक्टर संजय कुमार निषाद राजनीति में लंबे अरसे से सक्रिय हैं।

पिता ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता दिलाने के लिए किया संघर्ष

साल 2002 और 2003 तक गोरखपुर के अख़बारों के दफ़्तरों में डॉक्टर संजय कुमार इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता दिलाने के लिए बयान देते और विज्ञप्तियां बाँटते नज़र आते थे। साल 2002 में उन्होंने पूर्वांचल मेडिकल इलेक्ट्रो होम्योपैथी एसोसिएशन का गठन भी किया। डॉक्टर संजय इसके अध्यक्ष थे। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की शुरुआत 2008 में हुई जब उन्होंने ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी वेलफ़ेयर एसोसिएशन का गठन किया। लेकिन सात जून 2015 को वो पहली बार सुर्ख़ियों में तब आये, जब गोरखपुर से सटे सहजनवा के कसरावल गांव के पास निषादों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की माँग को लेकर उनके नेतृत्व में ट्रेन रोकी गई।

80 विधानसभा सीटों पर लड़ा था चुनाव

उस दिन हिंसक प्रदर्शन के बीच एक आंदोलनकारी की पुलिस फ़ायरिंग में मौत के बाद आंदोलनकारियों ने बड़ी तादाद में गाड़ियों को आग लगा दी थी। साल 2016 में संजय कुमार निषाद ने निषाद पार्टी का गठन किया। इसके बाद डॉक्टर संजय कुमार निषाद पर तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने कई मुक़दमें दायर कराए थे। यहां ‘NISHAD’ का विस्तार ‘निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल’ था। पिछले विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पिछड़े मुसलमानों पर अच्छी पकड़ रखने वाली पीस पार्टी के साथ मिलकर प्रदेश की 80 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। ख़ुद संजय कुमार निषाद ने भी गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वो हार गए थे। उनकी पार्टी को ज्ञानपुर सीट से जीत हासिल हुई थी जहां से विजय मिश्रा चुनाव जीते थे।

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