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उत्तर प्रदेश में अब सवर्णों को लुभाने चली भाजपा : Mission 2019

Upper Caste

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लखनऊ : छत्तीसगढ़, राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की पराजय के पीछे कारण तो कई गिनाए जा रहे हैं लेकिन, एक प्रमुख वजह एससी-एसटी एक्ट में संशोधन भी माना जा रहा है। केंद्र सरकार के इस फैसले से सवर्णों  ( Upper Caste Vote ) में देशव्यापी नाराजगी बढ़ी और भाजपा के लोग भी इसका विरोध करते नजर आए। अब 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा दलितों-पिछड़ों के साथ ही सवर्णों ( Upper Caste Vote )का दिल जीतने के लिए अभियान चलाएगी।

उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव में सहयोगी समेत 73 सीटें जीतने वाली भाजपा के रणनीतिकार सवर्णों ( Upper Caste Vote ) की नाराजगी दूर करने पर केंद्रित हो गए हैं। बलिया में बैरिया से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने कल दो टूक कह दिया ‘सवर्णों को नाराज कर भाजपा सत्ता में नहीं आ सकती।’ यह अकेली सुरेंद्र सिंह की आवाज नहीं है। पिछड़ों को भी यह फैसला रास नहीं आया। भाजपा के और भी नेता हैं जो अब यह कहने लगे हैं।

निगम, निकायों में समायोजन

लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने में करीब दो माह का समय बचा है, इसलिए उससे पहले ही संगठन और सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर समायोजन के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साहवद्र्धन करेगी। सरकार में निगम, बोर्ड, निकायों में बहुत से पद खाली हैं। कुछ आयोगों को छोड़ दें सरकार ने अभी तक समायोजन किया नहीं है। अधिसूचना जारी होने से पहले निगम और बोर्डों में समायोजन होगा। इसके अलावा 16 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद और 438 नगर पंचायतों में पार्षदों का मनोनयन भी होना है। कुछ महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं को संगठन में भी पद दिए जाएंगे। इनमें पिछड़ों के साथ सवर्णों ( Upper Caste Vote ) को भी भरपूर महत्व मिलेगा।

सवर्ण समीकरण पर जोर

भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में उप्र में 42.3 फीसद जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में करीब 40 फीसद मत मिले। इतना बड़ा वोट हासिल करने में भाजपा इसलिए कामयाब हुई क्योंकि सवर्ण ( Upper Caste Vote ) बहुत तेजी से भाजपा के पक्ष में खड़े हुए। उधर, पिछड़ों के बीच मोदी तुरुप का इक्का साबित हुए। केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाकर विधानसभा चुनाव की कमान सौंपी और इसमें भी सफलता मिली। दलितों में भी गैर जाटव मसलन, धोबी, खटिक, पासी, वाल्मीकि, धानुक, कोरी आदि जातियों को सहेजने में भाजपा सफल रही। पहली बार मत प्रयोग करने वाले 18 से 22 वर्ष के युवा भी कारगर साबित हुए। अब भाजपा फिर से उसी तरह के समीकरण बनाने में जुटेगी।

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