स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों के नकारेपन से प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था खस्ताहाल होती जा रही है। एक वर्ष पूर्व सरकारी अस्पतालों में ब्लड स्टोरेज यूनिट के नाम पर शुरू की जाने वाली योजना कागजों में दम तोड़ रही है। हालात यह है कि एक साल पहले ब्लड स्टोरेज यूनिट के लिए अस्पतालों में लैब टेक्नीशियनों व लैब अटेंडेंटों की तैनाती भी की जा चुकी है। ये सभी कर्मचारी अस्पतालों की पैथालॉजी में काम करने को मजबूर है,जबकि इनकी तैनाती ब्लड स्टोरेज यूनिट के नाम पर की गयी थी।

महिला अस्पतालों ने पहले ही कर दिया इंकार

  • नेशनल हेल्थ मिशन की तरफ से सरकारी अस्तालों में ब्लड स्टोरेज यूनिट खोले जाने की योजना एक वर्ष पहले बनायी गयी थी।
  • इसके जरिए सरकार की मंशा थी कि खून की कमी से होने वाली मौतों पर अंकुश लगाया जा सके।
  • लेकिन अधिकारियों की लचर सोच व सरकारी व्यवस्था इसके आंड़े आ गयी।
  • एनएचएम निदेशक ने ब्लड स्टोरेज यूनिट को एक सप्ताह के भीतर शुरू करने की बात कही थी।
  • लेकिन एक महीने से ज्यादा का समय होने को आया ब्लड स्टोरेज यूनिट शुरू नहीं हो सकी।
  • जबकि राजधानी के सीएमओ अस्पतालों में सामान पंहुचाने की बात एक महिना पहले हो चुकी है।
  • ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि ब्लड स्टोरेज यूनिट के लिए जब करोड़ों की लागत का सामान खरीदा जा चुका है.
  • तो अस्पतालों में अभी तक इसे पहुंचाया क्यों नहीं गया।
  • डफरिन व झलकारीबाई अस्पताल ने एनएचएम के प्रस्ताव को पहले ही सिरे से खारिज कर दिया है।
  • अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि उनके नजदीक के अस्पताल में ब्लड स्टोरेज यूनिट है।
  • लिहाजा उन्हें यूनिट खोलने की जरूरत नहीं है।
  • नेशनल हेल्थ मिशन प्रोग्राम के तहत प्रदेश के 148 अस्पतालों में ब्लड स्टोरेज यूनिट खोले जाने की योजना है।
  • जिसमें से 40 अस्पतालों का चयन भी हो चुका है।जिसमें लखनऊ के 12 अस्पताल शामिल हैं।
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