प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों को नए शैक्षिक सत्र में निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, यूनिफार्म, जूते, मोजे और स्कूल बैग समय पर मिलना मुश्किल है। निदेशालय की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को करीब 2 महीने बाद भी शासन की मंजूरी नहीं मिलने से डेढ़ करोड़ से अधिक विद्यार्थियों को सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का लाभ समय पर नहीं मिल सकेगा।

बेसिक शिक्षा के 58000 से अधिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के करीब 1.53 करोड़ विद्यार्थियों को शैक्षिक सत्र 2018-19 में नि:शुल्क स्कूल यूनिफार्म के लिए निदेशालय ने करीब 450करोड़ रुपए का प्रस्ताव शासन को दिसंबर में भेजा था। इसी प्रकार नि:शुल्क पाठ्य पुस्तक वितरण के लिए 350 करोड़, स्कूल बैग के लिए 250 करोड़ और जूते मोजे के लिए करीब 300 करोड़ का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। डेढ़ करोड़ से अधिक विद्यार्थियों के लिए करीब 10.50 करोड़ किताबें प्रकाशित कराकर स्कूलों में वितरित वितरण कराना है।

अफसरों का कहना है कि शासन की स्वीकृति मिलने के बाद ही टेंडर करने के लिए एक महीना चाहिए। टेंडर के बाद फर्म को किताबें प्रकाशित कराकर वितरित करने के लिए 3 महीने का समय देना होगा। ऐसे में अप्रैल में शैक्षिक सत्र शुरू होने तक किताबों का वितरण मुश्किल है। स्कूल यूनिफार्म वितरण के लिए भी विद्यालय प्रबंध समितियों को 2 महीने का समय देना होगा। फरवरी-मार्च में शिक्षक परीक्षाएं कराने और परिणाम जारी करने में व्यस्त रहेंगे। ऐसे में 1 अप्रैल तक बच्चों की नई यूनिफॉर्म वितरित होना भी संभव नहीं है। नि:शुल्क जूते-मोजे और स्कूल बैग वितरण के लिए टेंडर से लेकर वितरण तक में 3 महीने लगेंगे। 28 जनवरी तक शासन की ओर से स्वीकृति नहीं मिलने से बच्चों को 1 अप्रैल से इस नि:शुल्क सुविधाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा।

गौरतलब है कि योगी सरकार ने स्कूली बच्चों को स्वेटर भी बांटने का दावा किया था। ठंड बिताने को है लेकिन मासूम बच्चों को स्वेटर अभी तक नसीब नहीं हो सका है। पूरे प्रदेश में स्वेटर का वितरण नहीं हो पाया है। हां एक बात जरूर है कि सरकार के निर्देश पर कुछ विद्यालयों में कुछ स्वेटर बांटकर मीडिया में दिखा दिया गया कि स्वेटर बांटे जा रहे हैं लेकिन असलियत इससे कोसों दूर है।

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