बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नोटबंदी के दौरान अचानक पार्टी के दिल्ली स्थित बैंक खाते में 104 करोड़ रुपये जमा हुए थे। इसको लेकर बसपा की मान्यता रद्द करने के लिए एक याचिका दायर की गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को तीन माह के अंदर अंतिम निर्णय लेने के आदेश दिए हैं।

बसपा का भविष्य आयोग के हाथ में

  • नोटबंदी के दौरान बसपा ने दिल्ली के करोलबाग स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में पार्टी अकाउंट में 104 करोड़ रूपये जमा कराये थे।
  • यह रूपये 2 दिसंबर से 9 दिसंबर 2016 के बीच पुराने नोटों के रूप में जमा हुई थी।
  • इसके विरोध में याचिकाकर्ता प्रताप चंद्र ने हाईकोर्ट लखनऊ बेंच में एक जनहित याचिका दायर की थी।
  • इस याचिका पर बुधवार कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसके बाद निर्वाचन आयोग को तीन माह में निर्णय लेने के आदेश दिए गए।

मान्यता रद्द करने से जुड़े कानून

  • याचिकाकर्ता की अधिवक्ता डॉ.नूतन ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि निर्वाचन आयोग ने 29 अगस्त 2014 को वित्तीय पारदर्शिता संबंधी कई निर्देश पारित किए थे।
  • जिन्हें आयोग ने अपने आदेश दिनांक 19 नवंबर 2014 द्वारा और अधिक स्पष्ट किया था।
  • इन निर्देशों के अनुसार किसी भी राजनैतिक दल को चंदे में प्राप्त नकद धनराशि प्राप्ति के 10 कार्यकारी दिन में पार्टी के बैंक अकाउंट जमा करना होता हैं।
  • कोई पार्टी इन निर्देशों का उल्लंघन करती है तो उसके खिलाफ निर्वाचन चिह्न (आरक्षण एवं बटाई) आर्डर 1968 के प्रस्तर 16ए में पार्टी की मान्यता रद्द करने सहित तमाम कार्यवाही की जा सकती है।

चुनाव आयोग ने मांगा समय

  • वहीं निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता ने कहा कि आयोग को प्रताप चंद्रा की शिकायत मिल गई है।
  • लेकिन वर्तमान में विधानसभा चुनाव कराने की व्यस्तता के कारण आयोग को कुछ समय चाहिए।
  • इस दलिल पर कोर्ट शिकायत पर तीन महीने के अंदर कार्रवाई करने के आदेश दिए।
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