इंसान का सबसे हसीन लमहों में से एक बचपन होता है। इस उम्र में ना ही किसी बात की चिन्ता रहती है और ना ही किसी भी जिम्मेदारी का एहसास। हर समय पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने एवं मौज मस्ती में लगा रहता है। परन्तु कुछ बच्चों के नसीब गरीबी व परिवार की तंगी हालत के कारण मजदूरी करने पर विवष कर देते हैं, तो बहुत सारे बच्चों को जबरदस्ती बाल श्रमिकों के रूप में उनका बचपन झोंक दिया जाता है।

प्रदेश सरकार भले ही बच्चों की शिक्षा के लिए बड़े-बड़े दावे करते हो लेकिन हकीकत कुछ और ही है। जिन बच्चों के हाथ में खिलौने व कॉपी किताब होने चाहिए उन बच्चों के हाथ में टोकरियां हैं और भट्ठा मालिक इन मासूम बच्चों से काम कराने में जरा भी हिचक महसूस नहीं कर रहे हैं। फैजाबाद में खुलेआम बाल श्रम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही है और श्रम विभाग बेखबर होकर जांच की बात कर रहा है। अयोध्या कोतवाली क्षेत्र के तकपुरा ईट भट्ठे का जहां पर मासूम बच्चे बच्चियां कोयला ढो रहे हैं। जिन हाथों में बस्ते का बोझ होना चाहिए उन हाथों में कोयले का बोझ उठा रहे है। जिन मासूम बच्चे के हाथों में खिलौने व पेन कॉपी किताब होनी चाहिए उन बच्चों के हाथों में टोकरी थमा दी गई है। जब इन बच्चों से पूछा गया तो जवाब मिला कि पहले स्कूल जाते थे लेकिन अब स्कूल नहीं जा रहे हैं।

 

 

ऐसे में प्रदेश सरकार ऐसे निरंकुश ईट भट्ठा मालिकों पर क्या कार्रवाई करेगी। साथ ही जिले का श्रम विभाग आंख मूंदे बैठा हुआ है और जब इनसे बात की गई तो अब जांच की बात कर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि श्रम विभाग के अधिकारी अपनी ड्यूटी कब निभाएंगे और इनके खिलाफ भी कार्रवाई कब होगी। कम आयु के बच्चों को काम करते देखकर ऐसा प्रतित हो रहा है कि भारत देश का बचपन ही जब बालश्रम की चपेट में है तो इनका भविष्य कैसा होगा।

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