प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने एक दिवसीय दौरे पर कबीर की मरणस्थली संत कबीरदास नगर में मगहर में रैली कर रहे हैं। कबीरपंथी आरोप लगा रहे हैं कि चार साल मोदी अपने संसदीय क्षेत्र काशी कई दफे आए लेकिन कबीर की जन्मस्थली आने का वक्त नहीं निकाल पाए और चुनावी साल में कबीर की याद मोदी को आई है। इस आरोप में चाहे सच्चाई हो या नहीं हो लेकिन यह बात जरूर सच है कि चुनावी साल में बीजेपी को यूपी में खासतौर से कबीर में संभावना दिखने लगी है। यहां प्रधानमंत्री संत कबीर की समाधी पर श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे साथ ही जनसभा को भी सम्बोधित करेंगे।

दरअसल कबीर गरीबों, दलितों, पिछड़ों, शोषितों के मसीहा माने जाते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में कबीर की पहचान है, सामाजिक न्याय के लिए कबीर का नाम बड़े आदर से लिया जा सकता है। कबीर को दुनिया का पहला सच्चा समाजवादी भी कहा जा सकता है। अब अगर मोदी के भाषणों की तुलना कबीरदास के दोहों से की जाए तो एक गजब की समानता दिखती है। (सांप्रदायिक सौहार्द को कुछ कुछ छोड़कर), मोदी कहते रहे हैं कि उनकी सरकार गरीबों के लिए है, पिछड़ों के लिए है, वंचितों के लिए है, कतार में खड़े आखिरी आदमी के लिए है।

दरअसल यह सारा ऐसा वोटबैंक है जो आसानी से सत्ता तक ले जाता है, पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ यूपी की 80 में से 73 सीटों पर कब्जा किया था। उस समय विपक्ष बिखरा था, गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों के बीच संघ का किया काम कमल के काम आ गया था, लेकिन पिछले एक साल में कहानी बदल गई है। ऐसे में दलितों और ओबीसी को अपने पाले में लाने पर मोदी पूरा जोर दे रहे हैं। मोदी जानते हैं कि हिंदुत्व की हांडी बार बार नहीं चढ़ाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के पक्ष में नहीं आया तो उन्हें बड़े हिंदू वर्ग को जवाब देना पड़ सकता है।

ऐसे में दलित ओबीसी वोट की पूंछ सत्ता की वैतरणी को पार करने में सहायक साबित हो सकती है, मायावती और अखिलेश के गठबंधन में सेंध लगाई जा सकती है और इस सबके महासेतु कबीरदास साबित हो सकते हैं। कहा जाता है कि काशी में मरने से स्वर्ग मिलता है और मगहर में मरने से नर्क मिलता है, कबीरदास ने खुद लिखा था-

क्या काशी क्या ऊसर मगहर , राम ह्दय बस मोरा
जो कासी तन तजै कबीरा , रामे कौन निहोरा ।

कबीर के दिल में तो राम बसे थे लिहाजा उनके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह काशी में शरीर त्यागते हैं या मगहर में, लेकिन सियासी जन्म मरण को देखते हुए काशी और मगहर अचानक से महत्वपूर्ण हो चुके हैं। वैसे मोदी ऐसे पहले नेता नहीं है जो कबीरदास के नाम पर सियासत करने निकले हों, इससे पहले सभी अन्य दल भी अपने अपने तरीके से कबीरदास का नाम लेते रहे हैं और सियासत चमकाने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन यूपी में नये चुनावी समीकरण और नई तरह की सोशल इंजिनियरिंग को देखते हुए कबीरदास का नाम और काम या यूं कहा जाए कि उनकी पहचान को नये सिरे से चमकाना जरुरी हो गया है। यूपी को सिर्फ सवर्ण वोटों के सहारे जीता नहीं जा सकता।

सीएम योगी ने टोपी पहनने से किया इंकार

पीएम मोदी के दौरे से पहले सीएम योगी आदित्यनाथ बुधवार को पीएम मोदी के कार्यक्रम का जायजा लेने पहुंचे। यहां सीएम ने संत कबीर की मजार पर सीएम योगी को खादिम ने टोपी पहनाने की कोशिश की लेकिन योगी ने टोपी पहनने से इंकार कर दिया। दरअसल, पीएम मोदी कबीरदास की 500वीं पुण्यतिथि के मौके पर गुरुवार को मगहर पहुँच रहे हैं। यहां पीएम मोदी जनसभा को संबोधित करेंगे और कबीर की मजार पर भी जाएंगे। इसी के चलते सीएम योगी बुधवार को खुद मगहर पहुंचे और तैयारियों का जायजा लिया। इसी दौरान वो संत कबीर की मजार पर भी पहुंचे लेकिन जैसे ही अंदर आए वहां मौजूद खादिम ने उन्हें टोपी ऑफर कर दी। सीएम योगी ने यही टोपी पहनने से इनकार कर दिया। हालांकि जब विनती की गई कि कम से कम टोपी हाथ में ले लीजिए तब योगी ने टोपी हाथ में पकड़ ली।

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