उत्तर प्रदेश के प्रथम कोऑपरेटिव बैंक दि देवरिया-कसया जिला सहकारी बैंक का हालत और खराब होता जा रहा है। अगस्त 2016 में बैंक को नया लाइसेंस और 251.33 करोड़ रुपये बजट मिल जाने से जिले के ढाई लाख खातेदारों की उम्मीदें जगी थी। सहकारी बैंकों के चालू होने से न सिर्फ ढाई लाख लोगों को अपना अपना डूब चुका धन वापस मिलने की उम्मीद जग गई थी, बल्कि आगे भी खेती के लिए सहजता से ऋण मिलने की खुशी किसानों को हुई थी, लेकिन 10 माह बीत जाने के बाद भी हालात वहीं है।

बेटी की शादी के लिए भी नहीं मिल रहा पैसा

देवरिया जिले के सलेमपुर इलाके के मोसिमपुर गांव के रहने वाले दिलीप कुमार मिश्रा ने अपने बेटी की शादी के लिए 70 हजार रुपए बैंक में पैसे फिक्स डिपॉजिट किया था। अब बेटी की शादी सिर पर है, बैंक के चक्कर लगा-लगा कर दिलीप थक चुके हैं, लेकिन बेटी की शादी के लिए बैंक पैसा नहीं दे रहा है। दिलीप एक उम्मीद लेकर रोज बैंक जाते हैं। बैंक कर्मचारी बैंक में पैसा न होने का कारण बता, उन्हें वापस लौटा देते हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी

Uttarpradesh.org को जैसे ही मामले की जानकारी हुई, फौरन राजधानी लखनऊ में बैंक के बड़े अधिकारियों से हमारी टीम ने संपर्क किया। बैंक के महाप्रबंधक अशोक दुबे को हमारी टीम ने मामले से अवगत कराया। जिसके बाद उन्होंने देवरिया-कसया के सचिव दीपनाराणय यादव से फोन पर बात कर जानकारी ली, लेकिन सचिव ने उन्हें भी बैंक में पैसा न होने का कारण बताया। जिसके बाद हमारी टीम बैंक के प्रबंधक आलोक दीक्षित से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वो ऑफिस में नहीं मिले, उनके ऑफिस में मौजूद कर्मचारियों ने उनके किसी मीटिंग में जाने की बात बताई।

क्या है नियम

दरअसल, लगभग आठ साल पहले बैंक में पैसा न होने के कारण बैंक को बंद कर दिया गया। जिसके बाद नियम बना कि जितने भी ग्राहकों का पैसा बैंक में उन्हें लौटा दिया जाएगा। बैंक के नियम के मुताबिक, सामान्य मामलों में ग्राहक के कुल पैसे का पांच प्रतिशत हर महीने उन्हें लौटाया जाएगा। जबकि विशेष परिस्थियों में उन्हें 50 प्रतिशत तक एक बार में लौटाने का प्रावधान बनाया गया था। नियम तो अधिकारियों ने बना दिया, लेकिन बैंकों में अबतक पैसा नहीं पहुंचा।

ऐसे और भी बैंक हैं सूबे में

सूबे में सिर्फ देवरिया-कसया ही नहीं बल्कि 16 कोऑपरेटिव बैंक पैसे के अभाव में बंद पड़े हैं। जहां रोज हजारों लोग उम्मीद लिए जाते हैं कि उनके पैसे उन्हें वापस मिल जाए, लेकिन उनका सुनने वाला कोई नहीं है। सूबे के बंद पड़े 16 कोऑपरेटिव बैंक से लाखों लोग प्रभावित हैं।

योगी सरकार ने अभी तक नहीं लिया कोई निर्णय 

सूबे में सत्ता बदलने के बाद लोगों को उम्मीद जगी कि सालों से बंद पड़े इस बैंक के ग्राहकों का भी कुछ कल्याण होगा, लेकिन सरकार बने दो माह से भी ज्यादा बीत जाने के बाद भी इस बैंक के लिए नियम नहीं बना। मुख्यमंत्री जी ऐसे हजारों पिता हैं जो अपनी बेटी की शादी के लिए, अपने बेटे की पढ़ाई के लिए इस बैंक पैसा जमा कर रखे हैं और अब उन्हें जरुरत हैं तो बैंक में पैसा नहीं है।

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