भारतीय संस्कृति दुनिया की एकमात्र ऐसी (Congress mla Aditi singh) संस्कृति है जिसमें पेड़-पौधों की पूजा की जाती है। पेड़ों को भगवान का दर्जा दिया गया है। इसे आज की युवा पीढ़ी एक प्रकार का अंधविश्वास भी मानती है लेकिन पेड़ों की पूजा करने के पीछे के तार्किक कारण ऐसे हैं, जो मानव सभ्यता के जीवन से जुड़े हैं।

100 लाख वर्ग किलोमीटर ऐसी धरती खारे समुद्र में बह जाएगी

इनके बगैर जीवन की कल्पना करना मुश्किल

  • दरअसल पेड़- पौधे हमारे जीवन के लिए बहुत आवश्यक हैं।
  • इनके बगैर जीवन की कल्पना करना मुश्किल है।
  • इसलिए भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों को आस्था का रूप दिया गया ताकि कोई व्यक्ति इनको नुकसान पहुंचाने से पहले दस बार सोचें।
  • लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध की ओर बढ़ती दुनिया में पता नहीं किस वक्त आस्था हाशिये पर आ गयी और हम अंधा-धुंध पेड़ों की कटाई में जुट गये।
  • जो मानव सभ्यता को विनाश की तरफ धकेल रहा है।
  • पिछले कुछ सालों में प्राकृतिक आपदाएं तेजी से बढ़ी हैं।
  • पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है।
  • प्रदूषण अपने चरम पर है। जो मानव सभ्यता के लिए बहुत बड़ा संकट है।
  • इसको लेकर अगर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो आने वाला समय हमारे और आने वाली पीढ़ियों के लिए विनाशकारी साबित होगा।
  • विकास का मतलब ये नही है कि हम भावी पीढ़ी के लिए मौत का रास्ता खोद दें।

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हरियाली मुहिम की शुरुआत

  • मानव सभ्यता को बचाने के उद्द्येश्य से मैंने अपने निर्वाचन क्षेत्र से एक हरियाली मुहिम की शुरुआत की है।
  • जिसका नाम रखा है ‘रायबरेली गोज ग्रीन’।
  • जिसके अन्तर्गत हम शहर से लेकर गांवों तक, सरकारी अधिकारियों की मीटिंग से लेकर गांव की चौपाल तक, स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों और अध्यापकों , किसान, व्यापारी, नेता सहित हर आम आदमी को इस अभियान से जोड़ेंगे।
  • मशहूर शायर मुनव्वर राना साहब कहते हैं कि रायबरेली की मिट्टी में सियासत है।
  • लेकिन अब इस लाइन में बहुत जल्द एक और लाइन जुड़ेगी जिसमें लिखा होगा ‘रायबरेली की मिट्टी में सियासत के साथ हरियाली भी है ‘।
  • मैं ये नहीं कहती कि मेरे ‘रायबरेली गोज ग्रीन’ अभियान से पर्यावरण की सूरत के साथ लोगों की सोच एकदम से बदल जाएगी।
  • लेकिन हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से भी तो कुछ भला नही होगा।
  • ये अभियान किसी के लिए प्रेरणा बन सकता है, किसी की सोच बदल सकता है, पेड़ -पौधों के प्रति पुरानी आस्था को वापस ला सकता है।

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मानव जीवन को प्रभावित करते पहलू भी शामिल

  • ‘रायबरेली गोज ग्रीन’ अभियान के तहत उन सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। जो मानव जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित करते हैं।
  • इस अभियान के तहत स्वच्छता, पवित्रता, सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल के प्रति लोगों को जागरूक किया जाएगा।
  • गांव और वार्डों में एम्बुलेंस, पुलिस, सफाईकर्मी, जिम्मेदार अधिकारियों के नम्बरों की एक-एक लिस्ट चस्पा कराई जाएगी।
  • जिससे लोग इन सरकारी (Congress mla Aditi singh) सुविधाओं के प्रति जागरूक हो सकें और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ सकें।
  • साथ ही जिम्मेदारी से दूर भागने वाले अधिकारियों की शिकायत को ऊपर तक पहुंचा सकें।
  • इस अभियान में हर व्यक्ति की सहभागिता जरूरी है।
  • जिससे हम रायबरेली को एक प्रेरणास्रोत के रूप में देश के सामने खड़ा कर सकें।
  • इसी को देखते हुए आगामी स्वतंत्रता दिवस के दिन ‘रायबरेली गोज ग्रीन’ अभियान के तहत एक मेगा रैली निकाली जायेगी।
  • जिसके तहत अस्वच्छता, प्रदूषण से पूरी तरह स्वतंत्र होने के बारे में जागरूक किया जाएगा।
  • ‘रायबरेली गोज ग्रीन ‘ अभियान उस भारतीय संस्कृति को बचाने की ओर पहला कदम है जिसे वेदों में अरण्य संस्कृति के नाम से जाना जाता था।
  • क्योंकि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की शुरुआत ही पेड़ -पौधों से हुई।
  • भारतीय ऋषि-मुनियों, दार्शनिको ने लोकमंगल की भावना को ध्यान में रखते हुए रखते हुए अरण्य (वनों) में ही वेद-वेदांगों, उपनिषदों आदि की रचना की।

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वृक्षों की महिमा का जबर्दस्त उल्लेख

  • भारतीय संस्कृति (Congress mla Aditi singh) में वृक्षों की महिमा का जबर्दस्त उल्लेख देखने को मिलता है।
  • जो किसी और देश की संस्कृति में नहीं है।
  • वृक्षों को देवतुल्य माना गया।
  • प्रत्येक पेड़-पौधों, वनस्पतियों में प्रकृति की एक अनुपम शक्ति और रहस्य छुपा हुआ है।
  • जिसका उल्लेख वेदों, उपनिषदों, पुराणों, शास्त्रों व हमारी परम्पराओं में बारम्बार होता रहता है।
  • भारतीय संस्कृति में वृक्ष मानव के लिए स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के प्रमुख घटक के रूप में माने जाते हैं।
  • आयुर्वेद में इनकी विशेषता का उल्लेख मिलता है और इन पौधों के गुण-धर्म के आधार पर इनका औषधि रूप में एवं पर्यावरण के लिए उपयोग किया जाता है।
  • ऋग्वेद में पेड़-पौधों को लेकर कहा गया है – भूर्जज्ञ उत्तान पदो … यानि हमारी पृथ्वी वृक्ष से उत्पन्न हुई है।
  • यह भी माना गया है कि सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी ने जल में बीज बोया और वनस्पति उपजी।
  • ये मान्यताएं सृष्टि में वृक्षों के प्रथम आगमन की सूचनाएं ही नहीं देती, बल्कि इन्हें आदिशक्ति से भी जोड़ती हैं।

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मेनका गांधी ने लिखी ‘वृक्ष खेती’ पुस्तक

  • भारत सरकार में (Congress mla Aditi singh) केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने अपनी पुस्तक ‘वृक्ष खेती’ में लिखा है कि चाहे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हो या महात्मा गौतम बुद्ध।
  • दोनों ने ही अपने आहार को पेड़ों से मिलने वाले उत्पादों या फलों तक सीमित किया था।
  • इन दोनों महान व्यक्तियों ने वनों से उत्पन्न होने वाले उत्पादों को अपना आहार बनाया, जिसके पीछे का सबसे महत्वपूर्ण कारण था कि वह अपने अनुयायियों को सन्देश देना चाहते थे कि अधिक से अधिक पेड़ लगायें।
  • पेड़ पहाड़, पथरीली जमीन सहित ऊसर में भी लग सकता है।
  • वह जहाँ भी अपनी जड़े फैलाएगा, समृद्धि, शांति व सुख लेकर आता है।
  • पुस्तक के पहले अध्याय में बताया गया है कि दुनिया के सूखे या बारानी इलाके, जहाँ मौत नाचती है, वहाँ भी पेड़ किस तरह लोगों की भूख मिटाते हैं।
  • फिर वर्षा वन का पानी से घिरा इलाका हो या फिर गर्म देश की नम भूमियाँ, ऊँचे पहाड़ हों या फफूंदी के जंगल, सुमद्र या अन्य कोई इलाका।
  • सहजीवन और जीव-जीवन का आधार पेड़ ही होते हैं।
  • पेड़ केवल मानव जीवन की भूख मिटाने का ही माध्यम नहीं है बल्कि ये गर्माती धरती का बढ़ता पारा रोकने में भी उनकी अहम भूमिका है।
  • कार्बन डाईआक्साईड, मीथेन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा सीमा से ज्यादा बढ़ने के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है।

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100 लाख वर्ग किलोमीटर धरती खारे समुद्र में बह जाएगी

  • ताप के साथ ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं व उसके कारण समुद्रों का जल स्तर भी बढ़ रहा है।
  • यदि पानी का स्तर ऐसे ही बढ़ता रहा (Congress mla Aditi singh) तो आने वाले 500 सालों में समुद्र का जल स्तर 13 मीटर बढ़ सकता है और इसके चलते 100 लाख वर्ग किलोमीटर ऐसी धरती खारे समुद्र में बह जाएगी, जहाँ आज खेत हैं।
  • अब पूरी पृथ्वी पर जो संकट मंडरा रहा है, तो इसका निदान भी मात्र अधिक से अधिक पेड़ लगाना ही है जो कार्बन डायआक्साईड को सोखने की क्षमता रखते हैं।
  • पेड़ों की अधिकता खेतों में फसल उत्पाद को बढ़ाती है।
  • मेनका जी की इस पुस्तक में सैकड़ों पेड़ों की प्रजाति, उनके गुणों, उनको उगाने के तरीकों, उनसे प्रकृति व जीव-जगत को लाभ पर प्रकाश डाला गया है।
  • इसमें ताड़, नारियल, इमली, अंजीर, कटहल, बरगद, चिनार, टीक, केला रतालू, पपीता, नागफनी जैसे ऐसे पेड़ों की चर्चा है जिनका बाकायदा जंगल सजाया जा सकता है।
  • इन पेड़ों का इतिहास, विकास यात्रा, परम्पराओं में महत्त्व, इन्हें उगाने के सलीके व तरीके आदि को भी इसमें समझाया गया है।
  • कुल मिलाकर रायबरेली गोज ग्रीन अभियान का उद्देश्य लोगों में पेड़-पौधों के प्रति ख़त्म होती आस्था को दोबारा वापस लाना है।
  • साथ में हर स्तर पर हरियाली को लेकर लोगों को जागरूक करना है।
  • हो सकता है कि पर्यावरण (Congress mla Aditi singh) संरक्षणक के क्षेत्र में मेरा ये प्रयास बहुत छोटा हो लेकिन मैं ये मानती हूँ कि इससे कुछ लोगों की जिंदगी तो संवर ही जायेगी।
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