उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सूबे के सभी राजनीतिक दलों में उठापटक का दौर तेज हो गया है, सभी राजनीतिक दल अपने गुणा-भाग में लगे हुए हैं। अपना वजूद बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस भले ही यूपी में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही हो, लेकिन वह अपनी स्थिति को लेकर बहुत अधिक आश्वस्त नहीं है।

  • सूत्रों के हवाले से खबर है कि अंदरखाने कांग्रेस मायावती की बीएसपी से तालमेल बिठाने की कोशिशे कर रही है।
  • कहा जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद को यूपी कांग्रेस का प्रभारी बनाया जाना भी कांग्रेस की इसी रणनीति का हिस्सा है। मालूम हो कि आजाद और मायावती के आपसी रिश्ते काफी अच्छे हैं।
  • इससे पहले जब 1996 में बसपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ था, तब आजाद यूपी के प्रभारी थे और उन्होंने इसमें अहम भूमिका निभाई थी।
  • पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि बिहार की तर्ज पर ही यूपी में भाजपा के कदम रोकने के लिए चुनाव पूर्व गठबंधन फायदे का सौदा हो सकता है।
  • लेकिन पार्टी समेत खुद आजाद इस बात को मानते हैं कि जब तक मायावती को यह एहसास नहीं हो जाता कि वो अकेलेदम सत्ता नहीं पा सकती है, समझौते के लिए तैयार नहीं होंगी।
  • इसी क्रम में कांग्रेस बसपा सुप्रीमो को अपनी ताकत का एहसास कराना चाहती है।
  • कांग्रेस पूरे सूबे में अपनी उपस्थिति दिखाकर मायावती को यह एहसास कराना चाहती है कि यदि गठजोड़ नहीं हुआ तो वह सत्ता से दूर रह सकती हैं।
  • बताया जा रहा है कि कांग्रेस नेता बसपा को बीजेपी के हाईटेक प्रचार अभियान और हिन्दु- मुस्लिम सियासत से भी बीएसी बास को आगाह कर रहें है।

सीटों का बंटवारा आ रहा आड़ेः

  • कांग्रेस की यह कोशिशे इस लिए भी परवान नहीं चढ़ रहीं हैं क्योंकि उसे डर है कि कहीं जिद में आकर मायावती ने समझौता करने से इंकार कर दिया तो उसकी फजीहत हो जाएगी।
  • राहुल गांधी अब तक आपसी बैठकों में यह कहते रहे हैं कि कांग्रेस की यूपी में बुरी हालत की बड़ी वजह 1996 विधानसभा में बीएसपी के साथ समझौता था।
  • वहीं मायावती का मानना है कि गठजोड़ करने पर कांग्रेस को तो बीएसपी को वोट ट्रांसफर होता है, लेकिन बीएसपी को कांग्रेस का वोट ट्रांसफर नहीं होता है।
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