नगर निगम का भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले साल भी मच्छरों ने शहर वासियों को सताया था, तो इस बार भी उनका कहर जारी है। सड़क से लेकर कमरों तक में मच्छरों ने लोगों की नींद उड़ा रखी है, लेकिन मच्छरों से राहत दिलाने के लिए खर्च हुए छह करोड़ की रकम पर अब विवाद हो गया है। शासन ने भी खर्च रकम पर सवाल खड़ा करते हुए इसका हिसाब मांगा है। अब नगर निगम मच्छर विवाद पर खुद बचाव की मुद्रा में दिख रहा है।

अब देखना है कि इतनी बड़ी खर्च रकम को लेकर मच्छरों के डंक का असर किस अधिकारी पर होता है। इस संबंध में पर्यावरण अभियंता नगर निगम पंकज भूषण ने बताया शासन से मिली 10.23 करोड़ में से 6,60,85,360 रुपये खर्च किए गए थे, जिसमे से फॉगिंग मशीनों को खरीदने के साथ ही डीजल और केमिकल पर रकम खर्च की गई थी। खर्च रकम का ब्योरा शासन को भेजा जा चुका है।

अधिकारी जांच के कठघरे में खड़े

दरअसल, पिछले साल नगर निगम ने शहर वासियों को मच्छरजनित बीमारियों से बचाने के लिए करीब छह करोड़ खर्च करने का दावा किया था। नगर निगम ने वित्तीय वर्ष के अंतिम दिनों में जब शासन से शेष रकम करीब सवा चार करोड़ दिए जाने की मांग की तो शासन ने मना कर दिया, बल्कि यह टिप्पणी भी कर दी कि जब 6,60,85,360 रुपये खर्च का ब्योरा नहीं दिया गया तो शेष 4,12,14,680 रुपये मांगने का क्या औचित्य बनता है। लिहाजा शेष सवा चार करोड़ की रकम तो नगर निगम के हाथों से निकल गई, वहीं खर्च रकम का ब्योरा न दिए जाने पर अधिकारी जांच के कठघरे में खड़े हो गए हैं।

फॉगिंग के लिए नगर निगम ने 10.60 करोड़ मांगे

चालू वित्तीय वर्ष में फॉगिंग के लिए नगर निगम ने 10.60 करोड़ मांगे हैं। नगर निगम के इस पत्र पर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं के महानिदेशक पद्माकर सिंह ने शासन को एक रिपोर्ट भेजी है। इसमें शासन की उस रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है, जिसमें खर्च की गई करीब छह करोड़ की रकम का कोई ब्योरा न दिए जाने का जिक्र है। लखनऊ में मच्छर जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए हाईकोर्ट के आदेश पर शासन ने यह रकम नगर निगम को उपलब्ध कराई थी। वर्ष 2017-18 में 10.23 करोड़ रुपये नगर निगम को दिए गए थे। इसमें फॉगिंग मशीनों की खरीद के साथ ही डीजल और केमिकल पर रकम खर्च की जानी थी। नगर निगम इसमे 4,12,14,680 रुपये खर्च नहीं पाया था। खर्च रकम के हिसाब पर ही विवाद है।

बिना लॉगबुक भरे ही तेल का खर्च दिखाया

नगर निगम में फॉगिंग के लिए दिए जा रहे डीजल में भी खेल हो रहा था। बिना लॉगबुक भरे ही तेल का खर्च दिखाया जा रहा था। फॉगिंग पर खर्च का ब्योरा मांगा गया तो यह मामला भी सामने आया। नगर निगम की केंद्रीय कार्यशाला के प्रभारी कमलजीत सिंह ने तेल वितरण का काम देख रहे अवर अभियंता अशोक श्रीवास्तव और लिपिक इमरान अहमद से जवाब मांगा। जिसमे कहा गया कि बिना सक्षम अधिकारी से सत्यापन कराए बिना ही तेल वाहनों को दिया गया। दरअसल, लॉगबुक के परीक्षण में पाया गया था कि वाहनों को दिए गए डीजल का उपयोग फॉगिंग के लिए किया गया था या नहीं? तेल के इस खेल में नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में फॉगिंग का काम देख रहे कर्मचारियों की भूमिका पर भी सवाल खड़ा हो गया है।

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