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लखनऊ चिड़ियाघर: बुजुर्ग गैंडा लोहित की मौत

elderly Rhino Lohit died in lucknow zoo

राजधानी लखनऊ में स्थित नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर) में वन्य जीवों की मौतों का सिलसिला लगातार जारी है। आज चिड़ियाघर के इकलौते और खूंखार गैंडा में शुमार बुजुर्ग लोहित की मौत हो जाने से जू प्रशासन को तगड़ा झटका लगा है। जू प्रशासन की माने तो लोहित के दांत गिर गए थे। वह पिछले 2 हफ्ते से बीमार था। सुबह तड़के लोहित ने अंतिम सांस ली। गैंडा लोहित का डॉक्टरों की निगरानी में पोस्टमॉर्टम किया गया।

lucknow zoo

23 साल से चिड़ियाघर में था लोहित

जानकारी के मुताबिक, लखनऊ चिड़ियाघर में गैंडा लोहित का स्वास्थ्य काफी दिनों से बिगड़ा हुआ था। चिड़ियाघर के अकेले गैंडा लोहित ने गुरुवार को खाना बंद कर दिया था। वह पानी और गन्ना के रस पर ही रह रहा था। लोहित का इलाज लखनऊ और कानपुर चिड़ियाघर के विशेषज्ञों की निगरानी में चल रहा था। उसके इलाज के लिए केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजीएए), नई दिल्ली और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) बरेली से भी परामर्शकर्ता आये हुए थे। लोहित का जन्म 1984 में हुआ था। वर्तमान में उसकी उम्र 34 वर्ष थी। बुढ़ापे के कारण वह काफी कमजोर हो गया था। लोहित पिछले एक महीने से अच्छी तरह खाना नहीं खा पा रहा था क्योंकि उसके दांत गिर गए थे। वह भूखा भी रहता था और उसका पाचन भी सही से नहीं हो पा रहा था इसके कारण वह काफी कमजोर हो गया था।

अकेलेपन में जी रहा था जिंदगी

लोहित अकेलापन में ही अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। के साथ मिल गया है क्योंकि बदनामी की वजह से उसने अपने आक्रामक और अप्रत्याशित व्यवहार के लिए कमाया। महिला सहानुभूति ने हमेशा अकेले का संकेत दिया है कि लोहित हो चुके हैं। न केवल प्रजनन के उद्देश्य के लिए, बल्कि पशु के कल्याण के लिए भी सहकारी होना चाहिए। चिड़ियाघर प्रशासन के मुताबिक, लोहित ने 19 दिसंबर 1995 को अपने पशुचिकित्सक में डॉ. दास की जान ले ली थी। इसके चलते उसे कभी जीवनसाथी नहीं मिला। उसने एक अन्य युवक को भी पतंग लूटने के दौरान मार डाला था। लोहित की 45 किलो भोजन की खुराक थी। कुछ दिनों से 3-4 किलो खुराक और गन्ने के रस पर ही वह जी रहा था।

करीब 35 साल होती है गैंडा की उम्र

पशु चिकित्सकों की माने तो गैंडों की उम्र 11 साल से 35 साल के बीच है। लखनऊ चिड़ियाघर के लोहित को 6 अप्रैल, 1995 को लाया गया था तब से उसे जीवनसाथी नहीं मिल सका। हालांकि लखनऊ चिड़ियाघर ने पटना चिड़ियाघर के अधिकारियों को कई बार अपने छह मादा गैंडों (2008-09 तक) के साथ भाग लेने के लिए लिखा था, लेकिन यह काम नहीं कर रहा था।

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