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बलिया की माटी से जुड़े कवि केदारनाथ सिंह नहीं रहे

छोटी-छोटी चीजों में ज़िन्दगी तलाशने वाले मानवीय संवेदनाओं के कवि केदारनाथ सिंह का सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया। परिजनों ने बताया कि 84 वर्षीय डॉ. केदारनाथ सिंह को करीब डेढ़ महीने पूर्व कोलकाता में निमोनिया हो गया था। जिसके कारण वह बीमार चल रहे थे। सोमवार रात करीब साढ़े आठ बजे एम्स में निधन हो गया। उनके परिवार में एक पुत्र और पांच पुत्रियां हैं। बता दें कि कवि केदारनाथ सिंह बलिया की माटी से जुड़े थे। छोटी-छोटी चीजों में ज़िन्दगी तलाशने वाले मानवीय संवेदनाओं के कवि केदारनाथ सिंह का नाम हिन्दी जगत में कोई अपरिचित नाम नहीं है।

शैक्षिक सफरनामा

डाॅ. केदारनाथ सिंह का जन्म बलिया जिले के चकिया गाँव में सन् 1934 में हुआ था। आरंभिक शिक्षा गाँव से ही पूरी करने के बाद आगे की शिक्षा बनारस में पूरी की। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. उत्तीर्ण किया और वहीं से सन्1964 में ‘आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्ब विधान’ विषय पर पी-एच०डी०की उपाधि प्राप्त की। 1952-53 के आस-पास उन्होंने काव्य-रचना की शुरुआत की थी। सन् 1954 में पाल एलुअर की चर्चित कविता का ‘स्वतंत्रता’ शीर्षक से हिन्दी में अनुवाद किया और इस प्रकार उसके माध्यम से नयी सौन्दर्य-दृष्टि तथा समकालीन काव्य-चेतना से प्रथम परिचय हुआ। शिक्षा जगत में एक अध्यापक के रूप में सेवा करते हुए उन्होंने उदय प्रताप काॅलेज वाराणसी, सेण्ट एण्ड्रूज काॅलेज गोरखपुर, उदित नारायण काॅलेज पडरौना तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर और अन्त में सन् 1976 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली तक का सफ़र तय किया।

‘अकाल में सारस’ के लिए मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार

जानकारों के का कहना है कि बलिया के टी०डी०काॅलेज में किसी कारण से उनकी नियुक्ति न हो सकी। अपनी कृति ‘अकाल में सारस’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। केरल का ‘कुमारन आशान’ कविता पुरस्कार प्राप्त हुआ तथा मध्य प्रदेश का ‘जाशुआ’ सम्मान और ‘मैथिली शरण गुप्त सम्मान’ के साथ ‘व्यास सम्मान ‘ भी मिला। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने सन् 2009 में अपने सर्वोच्च सम्मान ‘भारत भारती’ से इन्हें समादृत किया है। सन् 2014 में भारत सरकार ने केदार जी को हिन्दी के सर्वोच्च सम्मान ‘ज्ञानपीठ’ से पुरस्कृत किया है।

लिखित पुस्तकें

पुस्तकों में ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘जमीन पक रही है ‘, ‘यहाँ से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ’ तथा ‘बाघ’ नाम से कविता-संग्रह प्रकाशित हैं। ‘कल्पना और छायावाद’, ‘आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्ब विधान’, ‘मेरे समय के शब्द’ आलोचना तथा शोध की पुस्तकें हैं तथा ‘कब्रिस्तान में पंचायत’ निबन्ध-संग्रह है। संपादित पुस्तकों में ‘कविता दशक’, ‘समकालीन रूसी कविताएँ’ तथा ‘ताना-बाना'(भारतीय कविताओं का संकलन) है। ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ उनकी चुनी हुई कविताओं का संग्रह है।

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