भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा है कि गांव गांव में अंग्रेजी मीडियम के पांच हजार स्कूल खोलने और प्रदेश में 68,500 सहायक अध्यापकों की भर्ती करने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फैसला सराहनीय और ऐतिहासिक है। ब्लाक स्तर पर ऐसे स्कूलों के खुलने से गांवों के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षा का स्तर और बेहतर होगा और ये बच्चे देश और दुनिया के बाकी बच्चों से मुकाबला कर पाएंगे। इसके साथ ही प्रदेश में 41 केंद्रीय विद्यालय खोलने और अगले वर्ष से यूपी बोर्ड में एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करने के फैसले के भी दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से ये फैसला यूपी बोर्ड में पढ़ने वाले बच्चों के लिए काफी मददगार साबित होगा।

शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि प्रदेश सरकार शिक्षा में सुधार के लिए ऐतिहासिक और बड़े कदम उठा रही है। परीक्षाओं में शुचिता लाने के लिए नकलविहीन परीक्षा कराने के इंतजाम कर दिए गए हैं। दागी परीक्षा केंद्रों को खत्म कर ऐसे परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं जहां नकलविहीन परीक्षा संपन्न हो सके। यही नहीं 50 संवेदनशील जिलों में परीक्षा केंद्रों पर बार कोड वाली कापियां दी जाएंगी। परीक्षा के दौरान किसी तरह की गड़बड़ी न हो सके, इसके लिए नौवीं और ग्यारहवीं के परीक्षार्थियों के पंजीकरण को आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है।

शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि पूर्व की सरकारों की नीतियों के चलते पिछले पंद्रह सालों में प्रदेश का शिक्षा का स्तर बेहद खराब होता चला गया था। इसके चलते ना सिर्फ परीक्षाओं की शुचिता गिरी थी बल्कि प्रदेश का शैक्षिक माहौल भी काफी खराब हुआ था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार शिक्षा का स्तर बेहतर करने और इस बिगड़े हुए शैक्षिक माहौल को बेहतर करने की पुरजोर कोशिश कर रही है।

प्रदेश प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि अंग्रेजी स्कूल खोलने के लिए सरकार प्रत्येक ब्लाक और नगर क्षेत्र में पांच-पांच प्राथमिक विद्यालयों का चयन कर रही है। इन स्कूलों में अंग्रेजी के एक्सपर्ट अध्यापक रखे जाएंगे। इन विद्यालयों में पहली से तीसरी तक अंग्रेजी मीडियम में और चौथी-पांचवी में दोनों मीडियम से पढ़ाई होगी। ऐसे स्कूल खोलने का मकसद खासतौर पर देहात में रहने वाले आर्थिक तौर पर कमजोर परिवारों के बच्चों को बेहतर और आधुनिक शिक्षा देने का है। उन्होंने कहा कि इससे पूर्व प्रदेश सरकार मदरसों में भी आधुनिक शिक्षा देने का फैसला ले चुकी है। सरकार चाहती है कि मदरसों में पढ़ने वाले आर्थिक तौर पर गरीब परिवारों के बच्चों का भी शैक्षिक स्तर बाकी बच्चों के मुकाबले का हो।

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