फैजाबाद अपनी विविधताओं के लिए हमेशा से ही लोकप्रिय रहा है. शहर के
उत्तरी छोर पर पावन सलिला सरयू इसके सौन्दर्य को चार चांद लगा रही है. एक मध्यम स्तर का शहर अपने गौरवशाली इतिहास के साथ गर्व से हर आगंतुक के लिए
अपने रंगीन अतीत को प्रस्तुत कर रहा है. uttarpradesh.org टीम अयोध्या फ़ैजाबाद पहुंची और वहां नगर निगम बनाये जाने को लेकर क्या प्रतिक्रिया हैं और वहां इसके पहले क्या हालात रहे, सभी मुदों पर बात कर उनका पक्ष जानने की कोशिश की. आइये, आपको अयोध्या और फ़ैजाबाद के इलाकों की जमीनी हकीकत से रूबरू कराते हैं.

1857 की क्रांति में हिस्सेदार रहा है फैजाबाद:

फ़ैजाबाद: सन् 1857 की क्रांति के समय अयोध्या हनुमान गढ़ी के पुजारी बाबा राम चरण दास, बेगमपुरा के अच्छन खान व हस्नू कटरा के अमीर अली का जिक्र मिलता है. अंग्रेजों ने इनको बागी लीडर करार दिया था. हिंदु व मुस्लिम एकता को मजबूत करने के लिए 26 जून सन् 1857 को फैजाबाद की
बादशाही मस्जिद में दोनों संप्रदाय के लोगों की बैठक बुलाई गई थी. इस बैठक में अंग्रेजों की हिमायत करने पर बहादुरशाह जफर के दामाद मिर्जा इलाही बख्श पर क्रांतिकारियों की भीड़ ने हमला कर दिया.  यह स्थल धार्मिक स्थल के तौर पर भी प्रसिद्ध रहा. पर्यटन विभाग ने इसे प्रमुख पर्यटन के केंद्र के रूप में विकसित किया. अब यह स्थान रामजन्मभूमि अधिग्रहीत स्थल पर पडऩे के कारण आम आदमी की पहुंच से दूर हो चुका है. 

क्या है गुप्तार घाट की मान्यता

  • श्री राम की नगरी अयोध्या की चर्चाएँ तो हमेशा होती हैं.
  • अयोध्या और अयोध्यावासियों पर चर्चाएँ आज भी लगातार जारी हैं.
  • लेकिन अब आर्मी कैंप की जद में गुप्तार घाट जिसकी अपनी अलग मान्यताएं हैं.
  • यहाँ का मंदिर 400 वर्षों पुराना बताया जाता है.
  • कहा जाता है कि उस वक्त के राजा रघुबर दयाल द्वारा ये मंदिर बनवाया गया था.
  • यहीं इस गुप्तार घाट को लेकर मान्यता है कि यहाँ प्रभु राम अयोध्या वासियों संग बैकुंठ गए थे.
  • ये प्रभु राम की तपोभूमि है जहाँ प्रभु राम आखिरी बार आये.
  • यहाँ प्रतिदिन घाट पर पूजा पाठ के अलावा दिन भर भजन-कीर्तन होता है.
  • यहाँ का पूरा क्षेत्र आर्मी बेस कैंप के पीछे है.  

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