प्रदेश के मेरठ जिले के किसान बरसों से अपनी जमीन अधिग्रहण के बढ़े हुए मुआवजे की मांग कर रहे है। किसानों की जमीनों को मेरठ विकास प्राधिकरण ने कब्जे में ले लिया है। करीब 30 साल पहले कौड़ियों के भाव में किसानों की जमीनें प्राधिकरण ने अधिग्रहण कर ली थी। किसान बरसों से प्रतिकर और फिर नई अधिग्रहण नीति के मुताबिक जमीन की कीमत की मांग रहे थे। अधिग्रहण के बाद से ये जमीनें किसानों के कब्जे में थी।

मेरठ के गंगानगर में 208 एकड़ जमीन पर कब्जा लेने के लिए जिले की पुलिस, पीएसी की फौज ने दो दिन पहले किसानों को जमकर पीटा। किसानों के उपर पथराव औऱ गोली चलाने के आरोप लगाकर फर्जी केस दर्ज करा दिये।

करोड़ों रूपये कीमत की खड़ी फसल पर बुलडोजर और ट्रैक्टर चलाकर उजाड़ दिए।

नई अधिग्रहण नीति के मुताबित दशकों से जो जमीन मौके पर कब्जे में नही है।

उसका मूल्य नये कानून के हिसाब से देना होगा।

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लेकिन सरकार और प्राधिकरण की दादागीरी ने कानून को ठेंगा दिखाकर किसानों की जमीन बंदूक की नोंक पर छीन ली है।

ये किसान 30 साल से अपनी जमीन की मुनासिब कीमत मांग रहे थे।

1992 में मेरठ विकास प्राधिकरण ने गंगानगर के किसानों की जमीन 210 रूपये वर्ग मीटर के मुआवजा में उनकी रजामंदी के बगैर अधिग्रहण की थी।

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कुछ ने मुआवजा लिया तो कुछ ने कीमत बढ़ाने की मांग के चलते मुआवजा नही लिया।

आंदोलन हुए, किसानों की छाती गोलियों से भेदी गयी।

लेकिन किसानों ने जमीन से कब्जा नही छोड़ा ।

अफसरों से लेकर सरकार तक से मुआवजा और प्रतिकर बढ़ाने की मांग करते रहे।

साल 2017 के अंत में किसानों ने कड़कड़ाती ठंड में दिन-रात आंदोलन किये।

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बीजेपी के विधायक सोमेन्द्र तौमर ने किसानों का आंदोलन तुड़वाया और शासन से बढ़े हुए प्रतिकर की फाइल भेजी।

इसी बीच वायदे से मुकरे प्राधिकरण ने किसानों की जमीन पर बुलडोजर चला दिया।

प्राधिकरण वाले साहब कह रहे है कि सरकार अगर खैरात देगी तो किसानों को बांट दी जायेगी।

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